ऋषिकेश:कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सिर्फ शिव ही नहीं नारायण भगवान दोनों का फल मिलता है. बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा का शुभ मुहूर्त रविवार शाम 4 बजे से सोमवार शाम 6 बजे तक है. पंडितों की मानें तो खासतौर पर भगवान शिव की पूजा रात के समय ही की जाएगी, क्योंकि रात में ही शिव की पूजा करने पर विशेष फल मिलता है.
बैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा का जानिए शुभ मुहूर्त
बैकुंठ चतुर्दशी के पीछे मान्यता है कि चतुर्मास की शुरुआत में भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं और खुद विश्राम करने चले जाते हैं. इन 4 महीने तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव ही करते हैं. देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव सृष्टि का भार फिर से भगवान शिव को सौंप देते हैं.
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पंडित जनार्दन कैरवान ने बताया कि इस दिन का विशेष महत्व है. बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का फल मिलता है. उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार जब भगवान विष्णु शिव की पूजा करने के लिए पहुंचे तो शिव की पूजा के लिए एक हजार कमल के फूलों की आवश्यकता थी. लेकिन भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेते हुए एक कमल के फूल को छिपा दिया था. एक फूल कम होने पर भगवान विष्णु ने अपने नेत्र को भगवान शिव को अर्पित करने का मन बनाया. जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें सच्चाई से अवगत कराया. उसी दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु से कहा था कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन जो भी पूजा होगी, उसमें शिव की पूजा करने वाले को नारायण की पूजा का फल भी प्राप्त होगा.
पंडित जनार्दन ने बताया कि वैसे भगवान शिव की पूजा प्रातः काल में की जाती है. लेकिन बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव की पूजा रात्रि में की जाती है, जिसका विशेष फल मिलता है. उन्होंने बताया कि रविवार 10 नवंबर की रात 11:32 बजे से मध्य रात्रि 12:40 बजे तक एक विशेष योग है. उन्होंने बताया कि इस एक घंटे में भगवान शिव की पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होंगे. एक घंटे का विशेष मुहूर्त है. साथ ही उन्होंने कहा कि ये दिन विशेष इसलिए भी है क्योंकि बैकुंठ चतुर्दशी रविवार से शुरू होकर सोमवार तक है जो कि भगवान शिव का दिन है.
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पंडित जनार्दन कहते हैं कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सुबह और शाम भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा और शिव की पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु की प्रतिमा को केसर चंदन मिलाकर जल से स्नान कराना चाहिए. इसके बाद चंदन का टीका, पीले वस्त्र और पीले फूल चढ़ाने चाहिए. जबकि शिवलिंग को दूध मिले जल से स्नान के बाद सफेद रंग के फूल, अक्षत और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए. खासतौर दोनों भगवान को कमल का फूल चढ़ाने से विशेष फल मिलता है.
पंडित जनार्दन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में विष्णु और शिव मंत्र का भी जिक्र किया. बताया कि पूजा के दौरान इन मंत्रों का उच्चारण फलदायी होगा.
विष्णु मंत्र-
पद्मनाभोरविन्दाक्ष: पद्मगर्भ: शरीरभूत्। महर्द्धिऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वज:।।
अतुल: शरभो भीम: समयज्ञो हविर्हरि:। सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जय:।।
शिव मंत्र-
वन्दे महेशं सुरसिद्धसेवितं भक्तै: सदा पूजितपादपद्ममम्।
ब्रह्मेन्द्रविष्णुप्रमुखैश्च वन्दितं ध्यायेत्सदा कामदुधं प्रसन्नम्।।