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राज्य स्थापना दिवस पर शिक्षकों को दिया जाएगा शैलेश मटियानी पुरस्कार, तैयारियां तेज

राज्य स्थापना दिवस के मौके पर शिक्षकों को शैलेश मटियानी पुरस्कार से नवाजा जाएगा. इसके लिए विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. आगामी 10 अक्टूबर तक जिला स्तर पर शिक्षकों के आवेदन लिए जा रहे हैं.

shailesh matiyani award
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Published : Sep 30, 2021, 5:36 PM IST

देहरादून:राज्य सरकार की ओर से प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे शिक्षकों को दिए जाने वाले 'शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार' को लेकर आवेदन की प्रक्रिया जारी है. इसके तहत वर्तमान में आगामी 10 अक्टूबर तक जिला स्तर पर शिक्षकों के आवेदन लिए जा रहे हैं, जिसके बाद इन सभी आवेदनों को मंडल स्तर पर भी लिया जाएगा. मंडल स्तर पर सभी आवेदनों की स्क्रूटनी के बाद चयनित शिक्षकों की अंतिम सूची राज्य शिक्षा निदेशालय को भेजी जाएगी.

निदेशक माध्यमिक शिक्षा सीमा जौनसारी ने बताया कि शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार को लेकर आवेदन प्रक्रिया जारी है. वहीं, अक्टूबर माह के अंत तक पुरस्कृत होने वाले शिक्षकों की सूची तैयार कर 9 नवंबर यानी कि राज्य स्थापना दिवस के मौके पर शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार समारोह का आयोजन किया जाएगा. इस अवस पर खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे चयनित शिक्षकों को शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित करेंगे.

राज्य स्थापना दिवस पर शिक्षकों को दिया जाएगा शैलेश मटियानी पुरस्कार.

बता दें, शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षकों के साथ ही डायट में कार्यरत शिक्षकों और संस्कृत शिक्षा के शिक्षकों को दिया जाता है. इसके तहत प्रारंभिक व माध्यमिक के 13-13 शिक्षक, संस्कृत शिक्षा के 2 शिक्षक और डायट के 01 शिक्षक को शैलेश मटियानी पुरस्कार से नवाजा जाएगा. इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए शिक्षकों का चयन जिला मंडल और राज्य स्तरीय चयन समिति द्वारा किया जा रहा है, जिसमें आवेदनकर्ता शिक्षक को मानकों के आधार पर न्यूनतम 60 अंक हासिल करने होंगे.

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शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार से नवाजे जाने वाले प्रत्येक शिक्षक को राज्य सरकार की ओर से दो साल का सेवा विस्तार दिया जाएगा. ऐसे में जो शिक्षक 58 साल की आयु पूरी कर चुके हैं. इस बार राज्य सरकार उन शिक्षकों को भी शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए आवेदन का मौका दे रही है.

कौन थे शैलेश मटियानी:शैलेश मटियानी (14 अक्टूबर 1931 - 24 अप्रैल 2001) आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत में नयी कहानी आन्दोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे. उन्होंने 'बोरीवली से बोरीबन्दर' तथा 'मुठभेड़', जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं. उनके हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेरणादायक समर्पण व उत्कृष्ट रचनाओं के फलस्वरूप आज भी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में पुरस्कार का वितरण होता है.

अल्मोड़ा जिले में जन्मे थे मटियानी: शैलेश मटियानी का जन्म उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना नामक गांव में 14 अक्टूबर 1931 में हुआ था. उनका मूल नाम रमेशचन्द्र सिंह मटियानी था. बारह वर्ष की अवस्था में उनके माता-पिता का देहांत हो गया था. तब वे पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे. तदुपरान्त अपने चाचा लोगों के संरक्षण में रहे. किन्हीं कारणों से निरन्तर विद्याध्ययन में व्यवधान पड़ गया और पढ़ाई रुक गई. इस बीच उन्हें बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का काम करना पड़ा. पांच साल बाद 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने फिर से पढ़ना शुरु किया.

हाईस्कूल पास कर पहुंचे दिल्ली: विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की तथा रोजगार की तलाश में पैतृक गांव छोड़कर 1951 में दिल्ली आ गये. यहां वे 'अमर कहानी' के संपादक, आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहां रहने लगे. तबतक 'अमर कहानी' और 'रंगमहल' से उनकी कहानी प्रकाशित हो चुकी थी. इसके बाद वे इलाहाबाद गये. उन्होंने मुजफ्फरनगर में भी काम किया. दिल्ली आकर कुछ समय रहने के बाद वे बंबई चले गए. फिर पांच-छह वर्षों तक उन्हें कई कठिन अनुभवों से गुजरना पड़ा. 1956 में श्रीकृष्ण पुरी हाउस में काम मिला जहां वे अगले साढ़े तीन साल तक रहे और अपना लेखन जारी रखा. बंबई से फिर अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वे इलाहाबाद आ गये और कई वर्षों तक वहीं रहे. 1992 में छोटे पुत्र की मृत्यु के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया. जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए.

शैलेश मटियानी का रचना कर्म: 1970 से ही उन्होंने कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू कर दी थीं. शुरु में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखते थे. उनकी आरंभिक कहानियां 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में प्रकाशित हुईं. उन्होंने 'अमर कहानी' के लिए 'शक्ति ही जीवन है' (1951) और 'दोराहा' (1951) नामक लघु उपन्यास भी लिखे. उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियां' 1961 में प्रकाशित हुआ. उनकी कहानियों में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख' (1966), 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य' और 'मिट्टी' आदि विशेष उल्लेखनीय हैं. कहानी के साथ ही उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखे. उनके कई निबंध संग्रह एवं संस्मरण भी प्रकाशित हुए. उन्होंने 'विकल्प' और 'जनपक्ष' नामक दो पत्रिकाएं निकालीं. उनके पत्र 'लेखक और संवेदना' (1983) में संकलित हैं.

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