देहरादून:पहाड़ के जैविक उत्पाद पौष्टिकता के साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर माने जाते हैं. जिनकी मांग समय के साथ मार्केट में बढ़ती जा रही है. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत पहाड़ी उत्पादों के महत्व को भली भांति जानते हैं. क्यों कि वे पहाड़ से ही आते हैं और पहाड़ी उत्पादों को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करते दिखाई देते हैं. साथ ही वो कभी हाशिए पर गए इन उत्पादों को बढ़ावा देते दिखाई देते हैं.
हरीश रावत को पहाड़ी आलू की आई याद, कहा-गेठी के अपमान से होता है दर्द - hill potatoes of Uttarakhand
पूर्व सीएम हरीश रावत पहाड़ों उत्पादों को समय-समय पर प्रोमोट करते रहते हैं. जिससे पहाड़ी उत्पादों की मांग मार्केट में लगातार बढ़ रही है. हरीश रावत ने लिखा कि उन्होंने अपनी राजनीतिक जीवन की मर्यादाओं को भी दांव पर लगाया था, जब कोई थोड़ा सा गेठी और इसका अपमान करता है तो दर्द होता है.
पूर्व सीएम हरीश रावत मंडुआ, कोदा, झंगोरा जैसे उत्पादों को हमेशा प्रमोट करते हैं. हरीश रावत कभी काफल फल तो कभी पहाड़ी ककड़ी के स्वाद के बारे में लोगों को बताते रहते हैं. यही नहीं पूर्व में हरीश रावत घर पर पहाड़ी गेठी के फायदे गिनाते दिखाई दिए थे. इसी कड़ी में वो अब सीमांत तहसील मुनस्यारी के आलू की तारीफ करते दिखाई दे रहे हैं. जिन्हें उन्होंने अमृतमय आलू बताया है. साथ ही वो कभी गेठी को महत्व ना दिए जाने पर वर्तमान में उपयोगिता और बढ़ती दामों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं.
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हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि 'अरे बहुत अच्छी कही आलू- किचालू की, गेठी की! आलू क्षमा करना! डायबिटीज के डर के मारे मैं पैनखंडा, घेस, बाण, मुनस्यारी, बोना, तौमिक, गुंजी के उस अमृतमय आलू को भी भूल गया, जरूर एक दिन आग में भूंजे हुए आलू का भरता मुझे जरूर खाना चाहिए. मगर सलाह है मेरी, उत्तराखंड में आज हजारों गेठी उत्पादक हैं उनको साधारणतम मत आको, ₹6 किलो बिकने वाली गेठी, आज 60, ₹70 किलो भी नहीं मिल रही है, मैंने गेठी और बब्बूगोशा के लिए अपनी ये राजनीतिक जीवन की मर्यादाओं को भी दांव पर लगाया था, जब कोई थोड़ा सा गेठी और इसका अपमान करता है तो दर्द होता है.'