देहरादून: राजधानी देहरादून में स्थित इंडियन पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट (IIP Dehradun) में SEFCO 2022 यानी शेपिंग द एनर्जी फ्यूचर चैलेंजिस एंड अपॉर्चुनिटी 2022 के 2 दिवसीय कार्यक्रम की शुक्रवार को शुरुआत हो गई है. यह 2017 के बाद से हर साल आयोजित कराया जाता है. इस कार्यक्रम के आयोजन का उद्देश्य भविष्य में होने वाले बदलावों पर युवा वैज्ञानिकों की राय जानना है. साथ ही उस दिशा में किस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर चर्चा की गई.
कार्यक्रम को लेकर जानकारी देते हुए Indian Institute of Petroleum के निदेशक डॉ अंजन रे ने बताया कि इस कार्यक्रम का मूल मकसद भविष्य में ईंधन को कैसे मोड़ें और उसमें हमें क्या-क्या चुनौतियां मिलने वाली हैं, उसमें हमारे लिए कितने अवसर हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले दौर में चाहे बात ग्लोबल वॉर्मिंग की हो या फिर नई पीढ़ी में आने वाले फ्यूचर फ्यूल क्राइसिस की हो, इस सब का सामना युवा पीढ़ी ने करना है. इन्हीं सब चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, इसके लिए युवा वैज्ञानिकों का यह एक बेहद महत्वपूर्ण फ्यूचरिस्टिक कार्यक्रम है.
SEFCO 2022 में पर्यावरण बचाने पर मंथन पढ़ें- काठगोदाम से मुरादाबाद दिल्ली जाने वाले यात्री दें ध्यान, शताब्दी का समय बदला, ये ट्रेन निरस्त उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का पूरा जिम्मा युवा वैज्ञानिकों के ऊपर होता है और वही लोग इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करते हैं, जिसका उभरता हुआ दृष्टिकोण भी स्पष्ट नजर आ रहा है. जिसमें दिखता है कि हर साल कैसे युवा वैज्ञानिकों की सोच वृहद स्तर पर विकसित हो रही है.
उन्होंने कहा कि इसमें खासतौर से सस्टेनेबल एनर्जी, एनर्जी रिफॉर्म और एनर्जी री साइकिल पर चर्चा की जाती है. देश में ईंधन इम्पोर्ट नेट जीरो करने के लिए ऊर्जा के अन्य विकल्प तलाशने जरूरी है. कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए IIP निदेशक डॉ रंजन रे ने बताया कि SEFCO (2022) कार्यक्रम की ओपनिंग में दो वक्ता चीफ गेस्ट के रूप में मौजूद रहे. इन दोनों ने अपने अपने अनुभव और शोध के अनुसार अपने विचारों को रखते हुए कई महत्वपूर्ण तथ्य युवा वैज्ञानिकों के सामने रखे.
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कार्यक्रम में पहले मुख्य वक्ता HMEL के प्रबंध निदेशक प्राभ दास ने युवा वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को सच करने के लिए इसे केवल कहना नहीं बल्कि इसे कारगर साबित करना होगा. जिसके लिए ईंधन आयात को नेटजीरो करने के लिए भले ही हम कितना ही रीसाइक्लिंग कर लें, लेकिन ईंधन के इम्पोर्ट के लिए हमें ऊर्जा के सतत विकल्पों को तलाशना होगा. जिसमें समय लगेगा और तब तक हमें फॉसिल फ्यूल के संरक्षण की बेहद अधिक आवश्यकता है. कार्बन टैक्स, कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए साबित हो सकता है.