देहरादून: उत्तराखंड में कांग्रेस की हार के बाद इस्तीफों का दौर शुरू हो चुका है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने सोनिया गांधी को इस्तीफा सौंप दिया है. वहीं, अब कार्यकारी अध्यक्षों पर इस्तीफे का भारी दबाव है. वैसे आपको बता दें कि राज्य बनने के बाद अब तक कांग्रेस को पांच प्रदेश अध्यक्ष मिल चुके हैं. अब पार्टी अपने छठे प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में जुट गई है.
हार के बाद कांग्रेस में इस्तीफे का दौर: उत्तराखंड में कांग्रेस सह प्रभारी दीपिका पांडे के इस्तीफे के बाद ही यह तय हो गया था कि जल्द ही राज्य में दूसरे कई इस्तीफे भी हो सकते हैं. तमाम संभावनाओं के बीच एक दिन पहले ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उधर हरीश रावत खेमे के माने जाने वाले गणेश गोदियाल के इस्तीफे के बाद प्रीतम खेमे के कार्यकारी अध्यक्षों पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा है.
कार्यकारी अध्यक्षों पर भी दबाव: स्थिति यह है कि पार्टी के संगठन महामंत्री ने भी सभी कार्यकारी अध्यक्षों को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने तक की बात कह दी है. दरअसल, राज्य में कांग्रेस की हार के बाद प्रीतम सिंह और हरीश रावत खेमे में जबरदस्त गुटबाजी चल रही है. इस हार के लिए दोनों ही खेमे से जुड़े नेता एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में जुटे हुए हैं.
कांग्रेस में नए अध्यक्ष की तलाश: गणेश गोदियाल के इस्तीफे के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी पार्टी में कसरत शुरू होने जा रही है. वैसे तो कांग्रेस के संगठनात्मक रूप से चुनाव जल्द ही होने जा रहे हैं, लेकिन इससे पहले ही किसी एक चेहरे पर भी सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है. आपको बता दें कि प्रदेश में अब तक पांच कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बन चुके हैं. जिसमें सबसे कुशल प्रदेश अध्यक्ष के रूप में यशपाल आर्य का ही कार्यकाल रहा है.
हरीश रावत बने पहले पहले कांग्रेस अध्यक्ष: राज्य स्थापना के बाद सबसे पहले हरीश रावत उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे. करीब 6 साल तक हरीश रावत ने इस पद को संभाला. इस दौरान 2002 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 36 सीटें लाकर पूर्ण बहुमत हासिल किया और उत्तराखंड में सरकार बनाने में कामयाबी रही. लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में हरीश रावत के अध्यक्ष रहते पार्टी 5 में से केवल एक ही सीट जीत पाई. यही नहीं इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा ने प्रदेश में सरकार बना ली. इस तरह हरीश रावत के इस कार्यकाल में एक कामयाबी मिली तो दो चुनाव में भाजपा से पिछड़ना पड़ा.