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बदरी-केदार के पौराणिक पैदल मार्ग को तलाशने निकली एसडीआरएफ की टुकड़ी

बदरी और केदारनाथ धाम जाने के लिए पहले श्रद्धालु इसी मार्ग का इस्तेमाल करते थे. हालांकि पिछले कई सालों से इस मार्ग का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.

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Published : Apr 24, 2019, 11:30 PM IST

Updated : Apr 25, 2019, 8:20 AM IST

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देहरादून:करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र बदरी-केदार धाम के पौराणिक पैदल मार्ग को तलाशने और उसे पुनर्जीवित करने का काम शुरू हो गया है. एसडीआरएफ के 15 सदस्य दल की दो टुकड़ियां इस काम को पूरा करने में लगी हुई हैं. ये दल बीती 20 अप्रैल को पैदल यात्रा पर निकला है.

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एसडीआरएफ के इस दल ने अपने अभियान की शुरुआत एवरेस्ट पर्वतारोही निरीक्षक संजय उप्रेती के नेतृत्व में 20 अप्रैल को ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला से की थी. इस दल में दो महिला जवान भी शामिल हैं. दुर्गम पहाड़ियों में विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए इस दल ने कई प्राचीन मंदिरों स्थानों को चिन्हित किया है. 23 अप्रैल को ये दल यमकेश्वर ब्लॉक अमोल गांव पौड़ी और देवप्रयाग-बागवान के पैदल मार्ग से होता हुआ खंडूखाल, पौड़ी गढ़वाल पहुंचा था.

पौराणिक पैदल मार्ग पर एसडीआरएफ की टुकड़ी

रुद्रप्रयाग पहुंचने के बाद 30 लोगों का ये दल 15-15 की टुकड़ियों में बंट जाएगा. इसके बाद एक दल केदारनाथ धाम के पौराणिक पैदल मार्ग पर निकल जाएगा. जबकि दूसरा दल बदरीनाथ धाम जाएगा. ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 250 से 280 किमी है. वहीं, ऋषिकेश से बदरीनाथ की दूरी करीब 300 किमी है. दोनों दल कपाट खुलने से पहले धाम में पहुंच जाएंगे.

इस पैदल मार्ग को तलाशने का उद्देश्य जहां पर्यटन का बढ़ावा देना है तो वहीं यहां से गुजरने वाले ट्रेक रूटों पर पर्यटकों को आकर्षित करना भी है. इसके अवाला आपदा और विषम परिस्थितियों में इन रास्तों का प्रयोग वैकल्पिक मार्ग के तौर भी किया जा सके. इसकी भी तैयारी की जा रही है.

जानकारों के मुताबिक पौराणिक काल में इसी पैदल मार्ग से श्रद्धालु बदरी और केदारनाथ धाम में दर्शन के लिए जाया करते थे. एसडीआरएफ एक बार फिर इस रास्तों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है, ताकि यहां आने वाले समय में पर्यटक अद्भुत ट्रेकिंग के साथ बदरी और केदारनाथ धाम की सांस्कृतिक धरोहर का दीदार कर सकें.

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1946 तक इसी मार्ग से होती थी यात्रा
टीम का नेतृत्व कर रहे संजय उप्रेती ने बताया कि बदरी और केदारनाथ जाने के लिए पहले श्रद्धालु इसी मार्ग का इस्तेमाल करते थे. हालांकि पिछले कई सालों से इस मार्ग का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. जंगलों का विस्तार और भूस्खलन समेत अन्य दैवीय आपदाओं के कारण ये मार्ग पूरी तर धूमिल हो चुके हैं. ये मार्ग कई स्थानों पर टूटे हुए हैं. मार्ग का भौगोलिक स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है.

इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए पुलिस महानिदेशक लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार ने बताया कि पौराणिक धरोहर व पर्यटन को जिंदा रखने की दिशा में यह कार्य किया जा रहा है. इसी साल मार्ग की सर्वे रिपोर्ट संबंधित विभाग को दी जाएगी.

Last Updated : Apr 25, 2019, 8:20 AM IST

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