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फिर थर्राएगी देवभूमि! मॉनसून के बाद बढ़ेगी भूकंप आने की आशंका - Earthquake in Uttarakhand

मॉनसून सीजन के बाद उत्तराखंड में भूकंप आने की आशंका बढ़ जाएगी. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने यह बात कही है. इसके पीछे उनके ठोस तर्क हैं.

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उत्तराखंड में बढ़ जाएगी भूकंप आने की संभावना

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Published : Aug 8, 2021, 3:50 PM IST

Updated : Aug 11, 2021, 11:54 AM IST

देहरादून:उत्तराखंड में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते भूकंप और आपदा जैसे हालात बनना आम बात है. यही वजह है कि भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड को जोन चार और पांच में रखा गया है. ऐसे में अब मॉनसून सीजन के बाद हिमालयी क्षेत्रों में भूकम्प के आने की आशंका है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूकंप वैज्ञानिक ने इस बात की पुष्टि की है कि मॉनूसन सीजन के बाद हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आने की आशंका है.

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रुहेला ने बताया कि अभी तक जो ऑब्जर्व किया गया है, उसके तहत मॉनसून सीजन के बाद सर्दियों का मौसम शुरू होने के दौरान भूकंप आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है, जिसकी कई वजह हैं.

डॉ. सुशील ने बताया कि सर्दियों के मौसम की शुरुआत में भूकंप आने की संभावना पर रिसर्च किया गया, जो हिमालयन जियोलॉजी में पब्लिश हुआ है. जिसके अनुसार सर्दियों का मौसम शुरू होने के दौरान हिमालई क्षेत्रों में भूकंप के झटके महसूस होते रहे हैं. ऐसे में इस मॉनसून सीजन के बाद सर्दियों के मौसम शुरू होने के दौरान भूकंप के झटके महसूस किए जा सकते हैं.

उत्तराखंड में बढ़ जाएगी भूकंप आने की संभावना

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उन्होंने बताया इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिलीमीटर तक मूव कर रहा है. इंडियन और यूरेशियन प्लेट के घर्षण से एनर्जी उत्पन्न होती है, जो एक सीमा तक एकत्र होती रहती है. मॉनसून सीजन के दौरान हिमालयन फ्रंट बारिश की वजह से लोडेड हो जाता है. विंटर आते-आते, इससे जो स्ट्रेस उत्पन्न होता है, वह प्लेट के मूवमेंट से ऐडअप हो जाता है. जिसके चलते प्लेट के मूवमेंट से ज्यादा एनर्जी उत्पन्न होती है. लिहाजा, अर्थक्वेक आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है. यही वजह है कि सर्दियों की शुरुआत में हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आने की आशंका जताई जा रही है.

आखिर हिमालयी क्षेत्रों में क्यों होती है हलचल ?

हिमालय एक डायनेमिक सिस्टम है ना कि एक स्टैटिक्स बेस्ड सिस्टम है. दरअसल हिमालय के स्वरूप में अक्सर कुछ ना कुछ हलचल होती रहती है. समय-समय पर हिमालय के स्वरूप में बदलाव भी देखने को मिलते रहते हैं. नतीजा जिसके चलते इसका अन्य चीजों पर भी प्रभाव साफ-साफ दिखाई दे रहा है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. वाडिया भू विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं के मुताबिक हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते ही लैंडस्लाइड होता है. भूकंप की गतिविधियां भी हिमालय के बदलते स्वरूप का ही नतीजा मानी जा सकती हैं.

कब हुई हिमालय की उत्पत्ति ?

फिर थर्राएगी देवभूमि!

डॉ कालाचंद साईं ने बताया कि 50 मिलियन साल पहले इंडियन प्लेट यानी टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने से हिमालय की उत्पत्ति हुई थी. हालांकि वर्तमान समय में भी इन दोनों प्लेट के टकराने का सिलसिला जारी है. इसके चलते हिमालय का एवोल्यूशन चल रहा है. अभी भी हिमालय की हाइट उतनी ही बनी हुई है जिसकी मुख्य वजह है कि हिमालय से इरोजन लगातार होता रहा है.

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बड़ा भूकंप आया तो प्रदेश के 59 प्रतिशत आवासीय भवनों पर असर

वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट की स्टडी के अनुसार उत्तराखंड में यदि बड़ा भूकंप आया तो राज्य में बड़े स्तर पर जनहानि होने के साथ ही सालाना 2,480 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि बड़े भूकंप का असर ट्रांसपोर्ट और पावर प्रोजेक्ट पर भी काफी पड़ेगा. इसके साथ ही बड़े भूकंप का असर राज्य के 59 प्रतिशत आवासीय भवनों पर पड़ेगा. उत्तराखंड के हरिद्वार में लालगढ़ के पास दो बड़े भूकंप आ चुके हैं. हालांकि, इस बात को सैकड़ों साल हो गए हैं, क्योंकि साल 1344 और फिर 1505 में 8 रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता के भूकंप आए थे. जिसके बाद से राज्य में कोई इतना बड़ा भूकंप नहीं आया है. यही वजह है कि वैज्ञानिक राज्य में बड़े भूकंप की आशंका जता रहे हैं.

इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिमी मूव कर रही है

वैज्ञानिक सुशील कुमार के अनुसार इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिलीमीटर तक मूव कर रही है. इससे उत्पन्न होने वाली एनर्जी, किसी न किसी माध्यम से रिलीज होगी. ऐसे में अब वो इस बात पर स्टडी कर रहे हैं कि साल 1897 से 1950 तक यानी इन 53 सालों में चार बड़े भूकंप देखे गए.

इसमें 1897 में असम, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में 8 मेग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप आये थे. लेकिन 1950 के बाद अभी तक यानी इन 71 सालों में एक भी इतना बड़ा भूकंप नहीं आया है. ऐसे में एक आशंका यह भी है कि बड़ा भूकंप आ सकता है. वहीं, दूसरी ओर इस बात की भी संभावना है कि इन 71 सालों के भीतर स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज होती रही हो.

स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी हो सकती है रिलीज

इन 71 सालों के भीतर कई जगहों पर सैकड़ों भूकंप आए लेकिन वह सभी भूकंप पांच मेग्नीट्यूड से भी कम तीव्रता के रहे हैं. यह भूकंप सैलो भूकंप में काउंट किये जाते हैं. ऐसे में यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्लो अर्थक्वेक के माध्यम से एनर्जी रिलीज हो जाती है. क्योंकि दो तरीके से ही एनर्जी रिलीज होती है. इसमें फास्ट अर्थक्वेक और स्लो अर्थक्वेक शामिल हैं. सुशील कुमार के अनुसार पिछले 71 सालों में बड़ा भूकंप ना आना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि इन 71 सालों में स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज हो रही हो.

हिमालय के दक्षिण क्षेत्र की ओर भी बढ़ रहा है भूकंप का दायरा

वैज्ञानिक मानते हैं कि 50 मिलियन साल पहले जब प्लेट टकरायी थी, उसके बाद से ही सभी मूवमेंट इंटरफ़ेस की तरफ ही हो रहे हैं. इस इंटरफेस में होने वाली हलचल से उत्पन्न हो रही एनर्जी भूकंप के माध्यम से निकलती रही है. लेकिन रीसेंट अध्ययन में सामने आया है, कि अभी तक जो देखा जा रहा था कि टेक्टोनिक और यूरेशियन प्लेट्स के मूवमेंट के चलते हिमालय के बदलते स्वरूप के कारण जो बाहरी क्षेत्रों में भूकंप के तौर पर या अन्य रूप में बदलाव देखे जा रहे थे, वह सिर्फ और सिर्फ भारत के उत्तर भारत क्षेत्र में ही देखे जा रहे थे. लेकिन अब वैज्ञानिकों का दावा है कि अब हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते इसका असर हिमालय के दक्षिण क्षेत्र की ओर भी बढ़ने लगा है.

हिमालयन मैकेनिज्म से भिन्न है दिल्ली-एनसीआर रीजन में भूकंप आने का मैकेनिज्म

दिल्ली-एनसीआर रीजन के भूकंप आने का जो मैकेनिज्म है वह हिमालयन बेल्ट में आने वाले भूकंप के मैकेनिज्म से बिल्कुल भिन्न है. क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में आने वाला भूकंप इंटीरियर क्षेत्र में आता है. हिमालयन रीजन में आने वाला भूकंप बाउंड्री क्षेत्र में आता है. ऐसे में जब हिमालयन रीजन में कम मेग्नीट्यूड या मीडियम मेग्नीट्यूड के भूकंप आते हैं, तो ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि इंटीरियर क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने वाला है.

उत्तराखंड में 2017 के बाद नहीं आये हैं मॉडरेट अर्थक्वेक

उत्तराखंड में साल 2017 के बाद कोई बड़ा भूकंप महसूस नहीं किया गया है. हालांकि इन 4 सालों के भीतर हजारों सैलो भूकंप आए हैं जिनकी तीव्रता 1.5 मेग्नीट्यूड से कम रही है. इसकी वजह से ये भूकंप महसूस नहीं होते हैं. यही नहीं इन 4 सालों के भीतर कई मॉडरेट अर्थक्वेक भी आए हैं, साल 1991 में उत्तरकाशी में 6.5 मेग्नीट्यूड, साल 1999 में चमोली में 6.0 मेग्नीट्यूड के साथ ही साल 2017 में रुद्रप्रयाग में करीब 6.0 मैग्नीट्यूड के भूकंप आए थे. ये मॉडरेट अर्थक्वेक थे और सैलो डेप्थ से आये थे.

पिछले 5 सालों के अध्ययन से मिली ये जानकारी

वाडिया के वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रुहेला ने बताया कि पिछले 5 सालों में आए भूकंप का अध्ययन किया गया था. हालांकि, उसमें मुख्य रूप से विंटर और समर सीजन के दौरान आने वाले भूकंप पर अध्ययन किया गया. रिसर्च में यह बात निकलकर सामने आयी की विंटर सीजन की शुरूआत में भूकंप आने की संख्या समर सीजन में आने वाले भूकंप की संख्या से अधिक रही है. लिहाजा यह अनुमान लगाया गया कि हर साल विंटर सीजन के दौरान अधिक संख्या में भूकंप आते रहे हैं. साथ ही बताया कि ऐसा ही एक रिसर्च नेपाल के एक वैज्ञानिक ने किया था. उनकी रिसर्च में भी यह बात सामने आई कि विंटर सीजन के दौरान भूकंप आने की फ्रीक्वेंसी काफी अधिक रही है.

Last Updated : Aug 11, 2021, 11:54 AM IST

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