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पिघलते ग्लेशियर पर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, केदारनाथ आपदा पर होगा शोध

देहरादून सिंचाई भवन में आयोजित ग्लेशियर बैठक में जनशक्ति विभाग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, वाडिया इंस्टिट्यूट, वाटर एंड शोल कंजर्वेशन इंस्टीट्यूट, यूसेक और इसरो के वैज्ञानिक शामिल रहे. बैठक में हिमालय क्षेत्र में पिघल रहे ग्लेशियर और वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी पर विशेष चर्चा की गई.

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Published : Sep 18, 2019, 9:54 PM IST

देहरादूनःसाल 2013 में केदारनाथ में आई भीषण त्रासदी से सबक लेते हुए सिंचाई और बाढ़ मंत्री सतपाल महाराज ने वैज्ञानिकों की बैठक ली. बैठक में उन्होंने हिमालय क्षेत्र में पिघल रहे ग्लेशियर और वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी पर विशेष चर्चा की. इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड में हो रही दैवीय आपदा पर वैज्ञानिकों को विशेष अध्ययन करने के निर्देश दिए.

पिघलते ग्लेशियर को लेकर सिंचाई भवन में आयोजित बैठक.

देहरादून स्थित सिंचाई भवन में आयोजित ग्लेशियर बैठक में जनशक्ति विभाग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, वाडिया इंस्टिट्यूट, वाटर एंड शोल कंजर्वेशन इंस्टीट्यूट, यूसेक और इसरो के वैज्ञानिक शामिल रहे. इस दौरान पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने बताया कि बैठक के माध्यम से जानकारियां और टेक्नोलॉजी का आदान प्रदान किया जा रहा है. साथ ही ग्लेशियर की जानकारी इकट्ठा की जा रही है.

उन्होंने कहा कि हिमालय में ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड राज्य के लिए ग्लेशियर काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. क्योंकि, सारी नदियों का उद्गम इन्हीं ग्लेशियरों से होता है. लिहाजा, इन ग्लेशियरों का शोध किया जा रहा है. साथ ही कहा कि इस शोध से सबका ज्ञानवर्धन होगा.

जिससे हर साल प्रदेश में दैवीय आपदा से होने वाली क्षति को कम किया जा सके. ग्लेशियर के अध्ययन का मकसद हिमालय क्षेत्रों में बनने वाली ग्लेशियर और झील के बारे में जानकारी जुटाना है. साथ ही मैदानी क्षेत्र में बाढ़ योजनाओं के गठन और जल विद्युत परियोजनाओं के परिकल्प एवं निर्माण में भी मदद मिल सकेगी.

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केदारनाथ आपदा का फिर से किया जाएगा शोधः सतपाल महाराज
पर्यटन मंत्री ने बताया कि बैठक में साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा को लेकर चर्चा की गई है. आपदा के दौरान चोराबाड़ी झील फट गया था और इस झील में ग्लेशियर का एक टुकड़ा भी गिरा था. जिससे काफी तबाही मची थी. इस घटना के बारे में लोगों को पहले से जानकारी नहीं थी. लिहाजा, अब इसका भी अध्ययन किया जा रहा है. साथ ही भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो इसके लिए पुख्ता इंतजामात भी किए जा रहे हैं.

पिघल रहे ग्लेशियर एक चिंता का विषय
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से उत्तराखंड में नहीं बल्कि पूरी दुनिया के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. सबसे ज्यादा पानी ग्लेशियर से ही प्राप्त होता है. ऐसे में अपने नदियों को जीवित रखने के लिए तमाम विभागों के एक्सपर्ट बातचीत कर रहे हैं. जल्द ही इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.

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ग्लेशियर झील से घट चुकी है बड़ी घटनाएं

डोभाल ने बताया कि बीते 10 सालों में राज्य के भीतर दो बड़ी घटनाएं घट चुकी हैं. पहला साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा और साल 2017 में गंगोत्री में आई आपदा. हालांकि, गंगोत्री में साल 2017 में आई आपदा ज्यादा प्रकाश में नहीं आया. क्योंकि, वहां पर जनसंख्या काफी कम थी. ऐसे में ग्लेशियर और झील से बड़ी घटनाएं सामने आ रही हैं.

ग्लेशियर और झील का शोध बेहद जरूरीः डोभाल
वहीं, वैज्ञानिक डोभाल ने बताया कि ग्लेशियर पिघलने से हिमालय पर काफी सारे ग्लेशियर झील बन रहे हैं. ऐसे में ग्लेशियर के टूटने का खतरा बना रहता है. ऐसे में चिंता का विषय ये है कि कहीं झील फटकर फिर से केदारनाथ की तरह आपदा ना ले आए. इसे लेकर भी लगातार झीलों का शोध किया जा रहा है.

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