देहरादूनः भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार यानी कॉम्प्ट्रॉलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट आने के बाद प्रदेश में कई वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं हैं, जिससे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सरकार के खिलाफ आक्रमक हो गई है. विपक्ष का कहना है कि ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा का नारा देने वाली भाजपा सरकार यदि लोकायुक्त की नियुक्ति करती तो प्रदेश में ऐसी वित्तीय अनियमितताएं नहीं पाई जातीं.
कैग की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि समाज कल्याण विभाग में भी कई गंभीर वित्तीय अनियमितताएं की गईं हैं. आमतौर पर समाज कल्याण विभाग लोगों की आर्थिक मदद के लिए जाना जाता है पर उत्तराखंड का समाज कल्याण विभाग मुर्दों तक की सहायता के लिए तैयार रहता है.कैग की रिपोर्ट ने आजकल लोगों को हैरान कर रखा है, जहां समाज कल्याण विभाग मुर्दों के खातों में भी पेंशन के पैसा जमा करता रहा. इतना ही नहीं इस विभाग ने मरे लोगों पर इतनी मेहरबानी की कि मुर्दों के खातों से ही पेंशन निकाल ली और पूरा विभाग मौन रहा. विभाग में करीब 5 करोड़ रुपये लगभग सरकार का पानी की तरह बहाया गया, जबकि गलत रिपोर्ट पेश करने पर सरकारी खजाने को 87 करोड़ का चूना लग गया है. इस रिपोर्ट में उत्तराखंड सरकार और समाज कल्याण विभाग की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है जिसने मरे हुए लोगों को पेंशन के रूप में 87 करोड़ रुपए बांट दिए गए.
रिपोर्ट के अनुसार कई जगह पर मरे हुए लोगों के खातों में पेंशन डाली गई और वह भी एक नहीं बल्कि पूरे 74 लोगों के और एक 2 महीने नहीं पूरे 6 साल 6 महीने तक डाली गई. विभाग का कमाल तब काबिले तारीफ और हो गया जब मृतकों के खाते से पैसे भी निकाल लिए गए और किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई. कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2018 के बीच 11,000 से ज्यादा पेंशन धारकों को तय सीमा से ज्यादा पेंशन भी दी गई.कई पेंशन धारकों को थोड़ी पेंशन दी गई. साथ ही बिना किसी जांच के जो लोग इस पेंशन के पात्र भी नहीं थे उनको भी पेंशन भोगी बनाया गया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कैग की इस रिपोर्ट के आने के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अगर प्रदेश में कोई वित्तीय अनियमितताएं जानबूझकर की गईं तो उन पर कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि वे स्वयं इसको देखेंगे और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. वहीं कैग की रिपोर्ट आने के बाद विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया है. विपक्ष का कहना है कि यदि सरकार प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति करती तो ऐसी नौबत नहीं आती.