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लालढांग-चिल्लरखाल रोड निर्माण का मामला, ब्लैक टॉपिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का पैनल

सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लालढ़ाग-चिल्लरखाल मार्ग पर सिगड्डी स्रोत से चमरिया मोड़ तक का हिस्सा राजाजी और कॉर्बेट बाघ अभयारण्यों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण गलियारा है. जिसमें बाघ और हाथी जैसे जानवर बड़े पैमाने आवाजाही करते हैं. ऐसे में इस सड़क पर ब्लैक टॉपिंग नहीं होनी चाहिए.

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Published : Nov 29, 2022, 8:19 PM IST

ऋषिकेश: उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष और कोटद्वार विधायक ऋतु खंडूड़ी की उम्मीदों को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. लालढांग-चिल्लरखाल रोड को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने कोर्ट में ब्लैक टॉपिंग के खिलाफ अपनी रिपोर्ट पेश की है. जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड में लालढांग-चिल्लरखाल सड़क मार्ग खासकर सिगड्डी स्रोत से चमरिया मोड़ तक इस रोड पर ब्लैक टॉपिंग नहीं की जानी चाहिए.

सीईसी ने जो रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है, इस तथ्य पर आधारित थी कि लालढ़ाग-चिल्लरखाल मार्ग पर सिगड्डी स्रोत से चमरिया मोड़ तक हिस्सा राजाजी और कॉर्बेट बाघ अभयारण्यों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण गलियारा है. जिसमें बाघ और हाथी जैसे जानवर बड़े पैमाने आवाजाही करते हैं. अधिवक्ता और वन्यजीव संरक्षणवादी गौरव कुमार बंसल ने सुप्रीम कोर्ट में लालढांग चिल्लरखाल सड़क पर ब्लैक टॉपिंग करने को चुनौती दी थी.

पढ़ें- लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग निर्माण पर CEC ने जताई आपत्ति, कहा- SC के आदेशों का हुआ उल्लंघन

वहीं, नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ से क्लीयरेंस लेकर इस सड़क पर ब्लैक टॉपिंग की गई है. अधिवक्ता बंसल ने अपनी याचिका कहा है कि लालढांग-चिल्लरखाल सड़क एक वन्यजीव गलियारा है. ऐसे में राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के वन्यजीव आवाजाही के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसलिए, इस गलियारे को सुरक्षित, संरक्षित और संरक्षित करना बहुत आवश्यक है. उन्होंने कहा कि सड़क पर ब्लैक टॉपिंग कॉरिडोर के प्राकृतिक माहौल को खराब कर देगी.

बरसों पुरानी है मांग:लंबे समय से उठ रही है मांग गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार को हरिद्वार-देहरादून सहित देश-प्रदेश के दूसरे हिस्सों से जोड़ने के लिए चिलरखाल-लालढांग रोड (कंडी रोड) के निर्माण की मांग बहुत ही लंबे समय से उठाई जाती रही है. इसके लिए क्षेत्र की जनता ने कई बार आंदोलन भी किए. जनता की इस मांग पर भाजपा सरकार ने इस मोटरमार्ग का निर्माण करने की कवायद भी शुरू कर दी थी, लेकिन सख्त वन कानून का अड़ंगा लग जाने से इसका निर्माण अधर में लटक गया था.

कहां फंसा था पेच: दरअसल, कंडी मार्ग को राष्ट्रीय बोर्ड ने 56वीं बैठक में अनुमति दी थी, लेकिन इसमें दो शर्तें रखी थी. एक शर्त यह थी कि 710 मीटर की एलिवेटेड रोड होगी, जिसकी ऊंचाई आठ मीटर होनी चाहिए. इस पर राज्य सरकार सहमत नहीं थी. राज्य सरकार का तर्क था कि चूंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं है तो यहां एनएच की गाइडलाइन क्यों थोपी जा रही हैं. लिहाजा, राज्य सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही थी कि ऊंचाई छह मीटर हो और एलिवेटेड रोड की लंबाई 470 मीटर ही हो. हालांकि, बाद में इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पास कर दिया था.

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