ऋषिकेश: जहां एक ओर संस्कृत भाषा को बढ़ावा (promotion of sanskrit language) देने की बात होती रहती है. वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय की संख्या करीब 90 हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश की स्थिति बेहद बदहाल है. अधिकतर विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे हैं. जिससे छात्रों को भविष्य की चिंता सती रही है.
संस्कृत भाषा को लेकर भले ही राजनीतिक मंचों से बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाती हो, लेकिन उत्तराखंड में हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. अधिकतर संस्कृत विद्यालय जर्जर हालत में है,जहां छात्रों के बैठने के लिए जगह नहीं है. जर्जर भवन के कारण शिक्षक और छात्र छत के नीचे बैठने से घबराते हैं. कई शिक्षक विहीन चल रहे कई विद्यालय बंदी की कगार पर हैं. शिक्षक भी इस आस में पढ़ाने के लिए मजबूर है की जब सरकार नियुक्ति करेगी तो उन्हें मौका मिलेगा. लेकिन सरकार की उपेक्षा इन पर भारी पड़ रही है.