देहरादून:हिमालयी क्षेत्रों में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से ही एक चिंता का विषय रहे हैं. इस दिशा में वैज्ञानिकों की खोज लगातार जारी है. हाल ही में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून (Wadia Institute of Himalayan Geology, Dehradun) की ओर से किए गए एक रिसर्च में सबित हुआ है कि गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 15 से 20 सेंटीमीटर पिघल रहा है, जो आने वाले समय में एक चिंता का विषय बन सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार अगर ग्लेशियर खत्म भी हो जाते हैं, तो उसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्लेशियर एक तरह से रिजर्व वाटर है, जो नदियों को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाता है. हालांकि, ग्लेशियर का पिघलना और ग्लेशियर का बढ़ना यह एक नेचुरल प्रक्रिया है लेकिन इससे अलग ग्लेशियरों के पिघलने के भी कई कारण भी हैं, जिसमे मुख्य वजह क्लाइमेट चेंज है. तो वही, वाडिया इंस्टीट्यूट के रिसर्च के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर 15-20 सेंटीमीटर हर साल पिघल रहा है. उत्तराखंड में करीब एक हजार ग्लेशियर मौजूद हैं और सभी ग्लेशियरों का यही हाल है.
क्लाइमेट चेंज का ग्लेशियर पर पड़ रहा है असर: क्लाइमेट चेंज का सीधा असर ग्लेशियरों पर पड़ रहा है. उत्तराखंड और हिमाचल दोनों ही जगह के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इनका आकार दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है. ऐसे में जब हिमालय के संरक्षण की बात करते हैं तो मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर भी फोकस करने की जरूरत है. क्लाइमेट चेंज होने की मुख्य वजह मानव जाति ही है, क्योंकि अपनी सुविधाओं और विकास के लिए यह भूल जाते हैं कि जितनी कार्बन डाइऑक्साइड प्रोड्यूस कर रहे हैं. उसका सीधा असर क्लाइमेट पर पड़ रहा है.
नदियों को जीवित रखने में 4 एलिमेंट्स जरूरी:डॉ. कालाचंद साईं के मुताबिक हिमालय में मौजूद ग्लेशियर से नदियों की उत्पत्ति है लेकिन जो नदियां बहती हैं. उसमें सिर्फ ग्लेशियर का ही कंट्रीब्यूशन नहीं है बल्कि अन्य स्रोतों का भी सहयोग है. नदियों ग्लेशियर मेल्ट, बारिश, ग्राउंड वॉटर और स्प्रिंग्स का पानी भी होता है. साईं के मुताबिक जितनी ऊंचाई पर जाएंगे उसी के अनुसार नदियों में इन चारों का सहयोग अलग अलग तरीके से मिलता है. अधिक ऊंचाई पर सबसे अधिक कंट्रीब्यूशन ग्लेशियर का होता लेकिन जैसे-जैसे नदी मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती है तो नदी का पानी और अधिक बढ़ जाता है.
खत्म नहीं होगा नदियों का अस्तित्व:कालाचंद साईं के अनुसार नदियों में ग्लेशियर मेल्टिंग का करीब 10 फीसदी ही सहयोग रहता है. ऐसे में अगर ग्लेशियर खत्म भी हो जाते हैं, तो नदी खत्म नहीं होंगी. हालांकि, लोग ऐसा सोचते हैं कि अगर ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे तो पानी खत्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं है. अगर ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे, तो थोड़ी दिक्कत जरूर होंगी लेकिन लोगों को पानी उपलब्ध होगा, क्योंकि नदियों में आने वाले पानी के कई सोर्स हैं, जिसमें से सबसे बड़ा सोर्स बारिश है. अगर, बारिश बंद हो गई तो सब कुछ खत्म हो जाएगा. बता दें, उत्तराखंड में काली नदी, अलकनंदा, भागीरथी, कौसी, रामगंगा और यमुना प्रमुख नदियां हैं.