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खलंगा युद्ध के वीर-वीरांगनाओं को किया गया याद, ब्रितानी फौज भी थी बहादुरी की कायल

जंग के मैदान में गोरखा सैनिकों ने हमेशा शौर्य गाथा लिखी है, जिसकी सबसे बड़ी मिसाल देहरादून के खलंगा युद्ध को माना जाता है.

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खलंगा युद्ध

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Published : Nov 29, 2020, 7:29 PM IST

देहरादून:साल 1814-16 में अति शक्तिशाली ब्रितानी फौज को बुरी तरह पराजित करने वाले खलंगा युद्ध की वीर-वीरांगनाओं को बलभद्र खलंगा विकास समिति ने याद किया. सहस्त्रधारा रोड पर स्थित युद्ध स्मारक में बलभद्र खलंगा विकास समिति के अध्यक्ष और पदाधिकारियों ने वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी.

वीर-वीरांगनाओं के अदम्य साहस को याद करते हुए समिति के सदस्यों ने चन्द्रायनी मंदिर नालापानी में यज्ञ और सूक्ष्म पूजा अर्चना का आयोजन किया. समिति के मीडिया प्रभारी प्रभा शाह के मुताबिक, खलंगा युद्ध के सेनानायक वीर बलभद्र थापा और उनके सैनिक चंद्रायनी मंदिर में आकर पूजा अर्चना किया करते थे. यह मंदिर जंगल में खुले स्थान पर स्थित है. आज भी यह मान्यता है कि इस मंदिर पर किसी भी छत का निर्माण किए जाने पर छत नहीं रहती है. फिलहाल, समिति की ओर से मंदिर की चारदीवारी निर्माण के लिए वन विभाग से संपर्क किया गया है.

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बता दें कि खलंगा वीरों की स्मृति में बलभद्र खलंगा विकास समिति की ओर से बीते 45 वर्षों से प्रतिवर्ष सागर ताल नालापानी देहरादून में भव्य मेले का आयोजन किया जाता रहा है. लेकिन इस साल कोरोना की वजह से मेले का आयोजन नहीं किया गया. समिति के सदस्यों ने सीमित संख्या में सोशल डिस्टेंसिंग और प्रशासन के दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सूक्ष्म पूजा-अर्चना और श्रद्धांजलि कार्यक्रम का ही आयोजन किया.

बलभद्र ने अंग्रेजी के किए थे दांत खट्टे

खलंगा को बीते दिनों गोरखा किला के नाम से जाना जाता था. यहां 1814 ईसवीं में अंग्रेजों ने आक्रमण किया, जिसमें गोरखाओं की ओर से बलभद्र थापा सेनानायक के रूप में अंग्रेजों से लड़े थे. बलभद्र ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजों से मुकाबला किया था. युद्ध में अंग्रेजी सेना के जनरल गैलेप्सी मारे गए थे. युद्ध के अंत में गोरखा किले को अंग्रेजों ने अपने आधिपत्य में ले लिया था, लेकिन बलभद्र एवं उनके साथी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे.

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