देहरादून:सर्दीकी रात का सितम कितना कष्टदायक होती है, इसे खुले आसमान में रात गुजारने वाले से ज्यादा कौन समझ सकता है. खुले आसमान के नीचे ठंड में ठिठुरते लोगों को देख कर आप सिहर उठेंगे. जिनके पास ठंड से बचने के लिए एक कंबल के सिवा कुछ नहीं होता. जिनका हाल शहर के चौक-चौराहों पर अमूमन देखने को मिल जाता है. वहीं, प्रदेश सरकार गरीबों की मदद के लिए आगे तो आती है, लेकिन बहुत कम लोग ही इन सुविधाओं का लाभ उठा पाते हैं. अब सवाल ये उठता है कि आखिर सरकार के द्वारा पर्याप्त सुविधाओं के दावे के बाद भी लोग उनका लाभ क्यों नहीं ले पाते हैं, देखिए रैन बसेरों पर ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट.
रैन बसेरों के हालात पर ईटीवी भारत का REALITY CHECK. ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के घंटाघर, सहस्त्रधारा, ट्रांसपोर्ट नगर और पटेलनगर इलाके के लालपुर के करीब बनाए गये रैन बसेरों के हालातों का जायजा लिया. टीम ने जब राजधानी के रैन बसेरों का रुख किया तो काफी चौंकाने वाले मामले सामने आए.
दून के पटेलनगर क्षेत्र में नगर निगम द्वारा संचालित रैन बसेरा में भले ही डेढ़ सौ से अधिक लोगों के रहने की ठंड में पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन इसके बावजूद प्रचार-प्रसार व जानकारियों के अभाव में इस रैन बसेरे में बमुश्किल ही 5 से 10 लोग ही कड़ाके की ठंड में रात को छत का सहारा ढूंढते हुए पहुंचते थे.
पटेलनगर इलाके के रैन बसेरे का हाल. वहीं, जब हमारी टीम लालपुल के समीप स्थित रैन बसेरे में पहुंची तो हैरान करने वाली बात सामने आई. यहां एक बड़े हॉल में खानाबदोश लोगों का सामान तो कई दिनों से रखा मिला, लेकिन वो यहां रहते हुए नहीं दिखाई दिए. जब इस बारे में कर्मचारी से बात की गई तो पता लगा कि पिछले 3 महीने से रैन बसेरे के एक बड़े हॉल पर सड़क किनारे रहने वाले बागड़ियों का सामान मेयर की अनुमति से रखा गया है, लेकिन वो न तो सामान यहां से हटाते हैं और न ही यहां रात गुजारने आते हैं. इस तरह के कब्जों से भी रैन बसेरे में साफ-सफाई को लेकर अन्य तरह भी समस्याएं आ रही हैं.
रैन बसेरे के बाहर आग सेकते जरूरतमंद. ये भी पढ़ें:REALITY CHECK 1: दून में रैन बसेरों के हालात तो बेहतर लेकिन महिलाओं के लिये जगह नहीं
साथ ही वहां लोगों से न रहने का कारण पूछा तो पता चला कि ठंड से बचने के लिए बिस्तर और अन्य व्यवस्था तो जरूर हैं, लेकिन यहां न रहने का प्रमुख कारण नहाने के लिए गर्म पानी न होना और लोगों में जागरुकता की कमी है. वहीं, शहर के अन्य 3 रैन बसेरों की तरह यहां भी महिलाओं और बच्चों के लिए अलग से रात गुजारने की व्यवस्था नहीं है. इस कारण कई गरीब लोग इन सुविधाओं का लाभ न लेकर सड़क किनारे रात गुजारने को मजबूर हैं.
इसके बाद टीम ने रैन बसेरों में काम करने वाले कर्मचारियों से बात की तो उनका कहना है कि पिछले साल तक यहां बाहरी राज्य से आने वाले यात्री, स्टूडेंट्स, मजदूर लोग रात गुजारने पहुंचते थे. लेकिन इस बार कम ही लोग यहां ठंड से बचने के लिए पहुंच रहे हैं. नगर निगम द्वारा रैन बसेरा की देखभाल कर रहे कर्मचारी ने ये भी बताया कि गर्म पानी को छोड़कर यहां सभी तरह की पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं. उसके बावजूद ये समझ से परे है कि क्यों लोग यहां पहुंच नहीं पा रहे हैं.