देहरादून: आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का मुख्य सेविका के पद पर पदोन्नति का सपना एक बार फिर से धरा का धरा रह जाएगा. पिछले 10 सालों से बाल विकास विभाग में पदोन्नति की यह प्रक्रिया लटकी हुई है. वहीं पिछले 6 सालों से विभाग रेखा आर्य के पास है. इसके बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.
अधर में लटका आंगनबाड़ी वर्करों का प्रमोशन अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा में लगाने वाली इन आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को केंद्र और राज्य सरकार मिलाकर नाम मात्र का मानदेय देती है, जो महीने भर काम करने वाले एक मजदूर के मानदेय से भी कम है. अगर उनकी जिम्मेदारी की बात करें तो बड़ी-बड़ी योजनाओं को देशभर में धरातल पर उतारने के लिए ये आंगनबाड़ी बहनें ही अपनी चप्पल घिसती हैं. बाल विकास विभाग हो, निर्वाचन हो या कोई भी अन्य विभाग समाज के आखिरी तबके से जुड़ना के लिए इन सभी को आंगनबाड़ी बहनें ही याद आती हैं.
अधर में लटका आंगनबाड़ी वर्करों का प्रमोशन पिछले 30 सालों से ज्यादा समय से काम कर रही आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को दिया जाने वाली प्रमोशन की प्रक्रिया विभागीय लापरवाही और बाल विकास मंत्री की कमजोर इच्छाशक्ति के चलते अधर में लटकी हुई है. दरअसल बाल विकास नियमावली अनुसार मुख्य सेविका के पद पर 50 फीसदी पद इन्हीं आंगनबाड़ी बहनों के अनुभव को देखते हुए मेरिट के आधार पर भरे जाने थे. बाकी 50 फीसदी पदों को आयोग या अन्य सीधी भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से भरने का नियम हैं. आंगनबाड़ी बहनों को आखिरी बार प्रमोशन वर्ष 2012 में किया गया था.
इसके बाद मामला लगातार विभाग की लापरवाही और गड़बड़ी की वजह से लटका रहा. 2017 में भाजपा की सरकार आने के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य को मिली और काफी दबाव के बाद वर्ष 2019 में जाकर एक बार फिर प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन वर्ष 2012 से लेकर 2019 तक की आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की उम्र सीमा के बारे में नही सोचा गया, स्वाभाविक था कि मामला अधिकार से जुड़ा हुआ था तो आंगनबाड़ी वर्कर कोर्ट गईं और कोर्ट ने भी विभाग को फटकार लगाई.
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इसके बाद काफी दबाव के बाद नई नियमावली बना कर उम्र की सीमा को हटा दिया गया और इसे बढ़ा कर 59 तक कर दिया गया. कोर्ट और सरकार के निर्देश थे कि अपना जीवन इस सेवा में घिस चुकी अनुभवी महिलाओं को राहत दी जाए और सभी को पदोन्नति का लाभ मिले, लेकिन नई नियमावली बनाते वक्त विभाग द्वारा फिर से एक बड़ी लापरवाही की गई और इस बार जहां एक तरफ उम्र की सीमा हटा कर प्रमोशन देने की बात की गई. वहीं, दूसरी तरफ प्रमोशन के लिए शैक्षिक योग्यता को ग्रेजुएशन किया गया, जो एक विरोधाभास था.
क्योंकि एक तरफ अनुभवी महिलाओं को लाभ देने की बात कही जा रही है और जो महिला 1990 से पहले सेवा कर रही है. वह कैसे सेवा के दौरान ग्रेजुएशन करेगी. जबकि आंगनबाड़ी में भर्ती की शैक्षिक योग्यता आज भी 10 पास है. प्रमोशन के लिए शैक्षिक योग्यता 12 भी नहीं बल्कि, सीधे ग्रेजुएशन किया गया. मामला वापस कोर्ट में गया जिस पर कोर्ट पहुंची आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को हाईकोर्ट ने प्रमोशन प्रक्रिया में शामिल करने का फैसला दिया. इसके बाद भी प्रक्रिया जारी रही और विभाग द्वारा एक लिस्ट जारी कर सत्यापन के लिए महिलाओं को बुलाया गया. इस लिस्ट में इतनी खामियां थी कि मामला वापस कोर्ट में चला गया और तब से से ये मामला लटका हुआ है.
कुल मिला कर देखा जाए तो नेतृत्व की कमजोर इच्छाशक्ति और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते लगातार आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है. मामले में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य का कहना है कि उनके द्वारा पूरी कोशिश की जा रही है, लेकिन बार-बार आंगनबाड़ी महिलाएं कोर्ट में जा रही है. ऐसे में सवाल है कि विभाग की प्रक्रिया में लापरवाही इतनी क्यों है, जो मामला बार-बार कोर्ट में जा रहा है और कोर्ट उस पर संज्ञान भी ले रही है.