देहरादून: भारत में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में ये संख्या और बढ़ सकती है. कोरोना वायरस संक्रमण से लोगों को बचाने और इसके प्रसार को रोकने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोतरी की जा रही है. उत्तराखंड में भी कोरोना वायरस मरीजों की संख्या लगातर बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं.
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रदेश सरकार निजी पैथोलॉजी लैब में भी कोरोना सैंपल की जांच कराने की अनुमति दे चुकी है. लेकिन फिलहाल देहरादून के दो-तीन लैब ही होम सैंपलिंग के जरिए कोरोना की जांच कर रहे हैं.
प्राइवेट लैब कोरोना टेस्ट से दूर हो रहे. देहरादून के निजी लैब संचालक राजेश रावत ने बताया कि राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक कोरोना संक्रमण की पीसीआर (पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) जांच संभव है. क्योंकि पीसीआर महंगा टेस्ट है और इसके लिए बड़े संसाधन और परिसर की जरूरत होती है. ऐसे में छोटे पैथोलॉजी लैब इस पीसीआर जांच को कराने में असमर्थ साबित हो रहे हैं. उत्तराखंड में कोरोना वायरस मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच यदि सरकार निजी लैब संचालकों को रैपिड टेस्ट की अनुमति प्रदान करती है तो यह मरीजों के साथ-साथ लैब के लिए भी फायदेमंद साबित होगा.
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देहरादून की वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. शक्तिबाला दत्ता के अनुसार कोविड-19 की टेस्टिंग को गति देने पर ही कोरोना संक्रमित मरीजों का वास्तविक आंकड़ा सामने आ पाएगा. ऐसे में निजी पैथोलॉजी लैब को भी कोरोना टेस्टिंग शुरू कर देनी चाहिए. लेकिन इस टेस्टिंग के लिए सभी निजी लैब संचालकों को अनिवार्य रूप से नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की शर्तों का पालन करना होगा.
ईटीवी भारत से बातचीत में हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. श्रीहरि दत्ता ने कहा कि निजी पैथोलॉजी लैब के माध्यम से कोरोना टेस्टिंग को और गति देने की जरूरत है. इसके साथ ही लोगों को भी कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए शारीरिक दूरी के साथ ही अपनी स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि कोरोना संक्रमण से बचाव की सबसे बड़ी दवा सोशल डिस्टेंसिंग ही है.
क्या है पीसीआर टेस्ट
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) आधारित टेस्ट संभवत: यह निर्धारित करने का सबसे सटीक तरीका है कि कोई कोविड-19 से संक्रमित है या नहीं. ऐसे में डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों को विशेष रूप से पीसीआर आधारित परीक्षण या सक्रिय संक्रमण का पता लगाने वाले किसी भी परीक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. पीसीआर आधारित परीक्षण ये बताने के लिए बेहतर है कि कोई संक्रमित है या नहीं. वहीं सीरोलॉजी टेस्ट यह पता लगाने के लिए बेहतर है कि आप हाल ही में संक्रमित हुए हैं या पहले से ही संक्रमित हैं.
कोरोना वायरस की जांच में दो टेस्ट का नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है. पहला रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और दूसरा पीसीआर टेस्ट है. इनमें सबसे बड़ा फर्क यह है कि जब किसी व्यक्ति को कोई बीमारी होती है तो शरीर उससे लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडी बना लेता है. पॉलीमरेज चेन रिएक्शन या पीसीआर टेस्ट कोरोना टेस्टिंग में महत्वपूर्ण है. पॉलीमर ऐसे एंजाइम होते हैं, जो डीएनए की नकल बनाते हैं. इसमें कोरोना संक्रमित व्यक्ति के स्वैब सैंपल से डीएनए की नकल तैयार कर संक्रमण की जांच की जाती है. इसके लिए व्यक्ति के स्वांस नली स्वैब, थ्रोट स्वैब या नाक के पीछे वाले गले के हिस्से से सैंपल लिया जाता है.
वहीं, दूसरी तरफ रैपिड एंटीबॉडीज टेस्ट कम खर्चीला है और इसके नतीजे सिर्फ 20 से 30 मिनट में आ सकते हैं. इस टेस्ट में यह जांचा जाता है कि कोरोना वायरस संक्रमण के प्रति शरीर के एंटीबॉडीज रिस्पॉन्स कर रहे हैं या नहीं. अगर एंटीबॉडी का रिस्पॉन्स दिखता है तो इसका मतलब है कि शरीर में वायरस का संक्रमण है.