देहरादून: उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों पर घातक बीमारी का खतरा हर पल मंडराता रहता है. ऐसा प्रदेश की जेलों के हालात और यहां की व्यवस्थाओं को देखकर कहा जा सकता है. हालांकि पिछले दिनों हुए कुछ अध्ययनों ने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर की जेलों के लिए चिंता को बढ़ा दिया है. लेकिन उत्तराखंड इस लिहाज से डेंजर जोन में नजर आता है. उत्तराखंड में बंद कैदियों और जेल के हालात पर आधारित ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
जेलों में क्षमता से 2 गुना ज्यादा कैदी: उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग प्रदेश की जेलों और नारी निकेतन को लेकर कुछ खास अभियान चलाता रहा है. ऐसा यहां मौजूद कैदियों और संवासिनियों के स्वास्थ्य की चिंताओं को देखते हुए किया जाता है. हालांकि इसका मकसद कैदियों की स्वास्थ्य स्थितियों पर नज़र रखना भी है. बहरहाल उत्तराखंड की जेलें कई लिहाज से घातक बीमारियों को लेकर डेंजर जोन में नजर आती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदेश की जेलों में ठसा ठस भरे कैदी हैं, जो जेलों की क्षमता से 2 गुना ज्यादा हैं.
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कैदियों को इस घातक बीमारी का डर: ऐसे हालात में सबसे ज्यादा खतरा उन संक्रमण से जुड़ी बीमारियों का है, जो तेजी से फैलती हैं. कोरोना काल के दौरान भी इसी खतरे को भांपते हुए कई कैदियों को जेलों से बाहर भी भेजना पड़ा था, लेकिन बात केवल कोरोना की नहीं है, समय समय पर ऐसी कई घातक बीमारियां विकराल रूप ले लेती हैं जो कैदियों के लिए भी चिंता बन जाती हैं. इन्हीं में से एक घातक बीमारी है Tuberculosis, जिसे सामान्य भाषा में हम TB नाम से जानते हैं.
चिंता पैदा करने वाला विषय:एक अध्ययन के अनुसार देश की जेलों में टीबी के मरीजों की संख्या सामान्य जनसंख्या की तुलना में 5 गुना अधिक है. अब ये आंकड़ा उत्तराखंड के लिए इसलिए भी चिंता पैदा करने वाला है, क्योंकि यहां की जेलें भारी अव्यवस्थाओं से जूझ रही हैं. उत्तराखंड की जेलों में किस तरह की हैं परेशानियां जानिए.
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उत्तराखंड में जेलों के हालात: उत्तराखंड में कुल 11 जेलें मौजूद हैं, जिसमें 9 जिला जेल और 02 उप जेल हैं. इन जेलों में कैदियों के लिहाज से क्षमता कुल 3700 कैदी है. राज्य की इन जेलों में बंद हैं करीब 6 हज़ार कैदी. ठसाठस भरी जेलों में चिकित्सकों की भी भारी कमी है. अव्यवस्थाओं के चलते जेलों में एमबीबीएस चिकित्सकों की तैनाती भी नहीं हो पाती है, विशेषज्ञ तो दूर की बात है. जेलों में साइकेट्रिस्ट का भी कोई इंतजाम नहीं है. नियमित चेकअप के लिए कैदियों को सरकारी अस्पताल ले जाना पड़ता है. जांच के दौरान कैदी कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित मिलते हैं.
उत्तराखंड की जेलों में मानक के अनुसार कैदियों की संख्या के लिहाज से कई चिकित्सकों की जरूरत है, लेकिन जिलों में कई जगह केवल एक चिकित्सक या बिना चिकित्सक के भी काम चलाना पड़ रहा है. इस स्थिति में सरकारी अस्पतालों में कैदियों को अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ ले जाना होता है.
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