देहरादून: उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां दैवीय आपदाएं हर साल कई जिंदगियां लील लेती हैं, वहां पर आकाशीय बिजली हर साल घटने वाली घटनाओं में से एक बड़ी वजह है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में जानते हैं कि आकाशीय बिजली जिसे की वज्रपात भी कहते हैं. आखिर क्यों होता है वज्रपात ? और उत्तराखंड में पिछले पांच साल में आकाशीय बिजली से कितनी घटनाएं हुई हैं ?
उत्तराखंड में दैवीय आपदाओं का इतिहास पुराना है. हर साल सैकड़ों लोग दैवीय आपदाओं में अपनी जान गंवा देते हैं. बीते कुछ सालों की बात करें तो साल 2015 से लेकर अब तक प्रदेश में दैवीय आपदा की कुल 7,829 से ज्यादा घटनाएं हुई है, जिसमें 169 घटनाएं बिजली गिरने की हुई हैं.
उत्तराखंड में 2015 से अबतक बिजली गिरने की घटनाएं-
साल 2015 से आज की तारीख तक उत्तराखंड में 7,829 दैवीय आपदाएं की घटनाएं घटी हैं, जिनमें से अगर आकाशीय बिजली या फिर वज्रपात की बात करें तो कुल 169 घटनाएं केवल आकाशीय बिजली गिरने की हुई है. जिसमें भारी जानमाल का नुकसान प्रदेशवासियों को उठाना पड़ा है.
क्या होती है आकाशीय बिजली और कब गिरती है जमीन पर ?
राष्ट्रीय क्लाइमेट रेसिलिएंट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष कर्नल संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि आसमान में मौजूद बादलों के घर्षण से जो बिजली उतपन्न होती है. उसे आकाशीय बिजली कहते हैं. इसमें नेगेटिव चार्ज होता है, जबकि हमारी धरती में पॉजिटिव चार्ज होता है. ऐसे में नेगेटिव चार्ज पॉजिटिव चार्ज की ओर आकर्षित होता है. अगर एक कंडक्टर दोनों माध्यमों के बीच में आता है तो इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज होता है. सामान्यतः वातावरण में नमी आने पर बादल और धरती के बीच में नमी एक कंडक्टर का काम करती है, जिसके कारण आकाशीय बिजली जमीन पर गिरती है.
कहां गिरती है आकाशीय बिजली ?
संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि बिजली गिरने की सबसे ज्यादा संभावना ऊंचे इलाकों में होती है. जैसे कि पहाड़ की ऊंची चोटी पर या फिर अकेला ऊंचा पेड़ आकाशीय बिजली के लिहाज से खतरनाक माना जाता है. इसके साथ ही जहां पर पानी की अधिकता है यानी तालाब या झील होती है. वहां पर भी बिजली गिरने का खतरा अधिक होता है. इसका कारण यही है कि पानी इलेक्ट्रिसिटी का एक सुगम चालक माना जाता है.