लंबित मांगों को लेकर भोजन माताओं ने खोला मोर्चा देहरादून: प्रदेश भर की भोजन माताओं ने अपनी लंबित मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इसी कड़ी में प्रगतिशील भोजन माता संगठन ने आगामी 27 जून को अपनी मांगों को लेकर सचिवालय कूच किए जाने का ऐलान किया है. संगठन ने साफ तौर पर सरकार को चेताया कि सरकार ने उनकी मांगों को अनदेखा किया तो उन्हें आगामी समय में उग्र आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी.
25000 भोजन माता सरकारी विद्यालयों में कार्यरत:संगठन से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उत्तराखंड में मिड डे मील योजना के तहत करीब 25000 भोजन माता सरकारी विद्यालयों में कार्यरत हैं. जिनसे विद्यालयों में खाना बनाने के अलावा विद्यालय खोलना और बंद करना, कमरों से लेकर पूरे प्रांगण की साफ-सफाई ,क्यारियां बनवाना, चाय पानी पिलाना जैसे अनेकों काम कराए जाते हैं. ऐसे में एक भोजन माता करीब 4 कर्मचारियों के बराबर काम करती हैं, लेकिन इतना काम करने के बावजूद उन्हें मात्र ₹3000 मानदेय प्रतिमाह दिया जा रहा है.
भोजन माताओं को नौकरी जाने का सता रहा डर:प्रगतिशील भोजन माता संगठन की महामंत्री रजनी जोशी का कहना है कि सरकार मिड डे मील योजना को एक एनजीओ को दे रही है. जिससे भोजन माताओं को अपनी नौकरी जाने का मानसिक तनाव भी झेलना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने भोजन माताओं को 5 हजार रुपए मानदेय दिए जाने की घोषणा की थी, जबकि विधानसभा चुनाव के बाद हाल ही में शिक्षा सचिव ने सरकार को भोजन माताओं के मानदेय को 5 हजार किए जाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है. जिस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ऐसे में उन्होंने मांग उठाई कि भोजन माताओं का न्यूनतम वेतन लागू करने के साथ ही उन्हें स्थाई किया जाए.
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सरकारी विद्यालयों में गैस की नहीं कोई व्यवस्था:प्रगतिशील भोजन माताओं ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि उज्जवला गैस योजना लागू होने के बावजूद सरकारी विद्यालयों में गैस की कोई व्यवस्था लागू नहीं है. ऐसे में उन्हें चूल्हे में भोजन बनाने के लिए विवश होना पड़ रहा है. जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन सरकार उनका स्वास्थ्य बीमा कराने को लेकर भी गंभीर नहीं दिखाई दे रही है.
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