मसूरी:पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजों के शासनकाल में बनाये गये दो उप-डाकघरों को बंद करने की बात चल रही है. इसमें एक लंढौर स्थित डाकघर है, जिसका जिक्र रस्किन बांड की कई कहानियों और किस्सों में मिलता है. वहीं दूसरा उप-डाकघर सवॉय सब-पोस्ट ऑफिस है. जहां प्रसिद्ध शिकारी जिम काॅर्बेट के पिता पोस्ट मास्टर का काम करते थे. इन दोनों उप-डाकघरों के इतिहास को देखते हुए इन्हें संरक्षित करने की मांग उठने लगी है.
डाकघरों के संरक्षण की उठने लगी मांग. देहरादून के डकरा, नैशविला रोड, दिलाराम चौक में दो और मसूरी के लंढौर और सवॉय होटल में तीन उप-डाकघरों को बंद करने की बात चल रही है, जिसको लेकर स्थानीय लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि मसूरी के दोनों उप-डाकघर ऐतिहासिक हैं. इन डाकघरों को अंग्रेजों ने स्थापित किया था. इन डाकघरों के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इन्हें संरक्षित किया जाये.
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बता दें मसूरी के दोनों उप-डाकघरों का समृद्ध इतिहास रहा है. 1837 में जब पोस्ट ऑफिस एक्ट लागू किया गया था तब मसूरी के संस्थापक कैप्टन यंग ने लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस स्थापित किया था. लंढौर चौक से शुरू होकर इसे 1909 में मॉल केरोर्लटन हाउस में स्थानांतरित कर दिया गया,जिसके बाद लंढौर, लाइब्रेरी, चार्लीविले, बार्लोगंज और झालानी के उप-डाकघरों के आसपास विकसित हुआ.
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आज लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस का न केवल मसूरी लैंग्वेज स्कूल और वुडस्टाक स्कूल से अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट प्रयोग कर रहे हैं बल्कि 26 देशों के छात्रों के इन उप डाकघरों में खाते हैं. ये उप डाकघर मसूरी के किमोटी, कोल्टी, कांडा, मथोली, मौद, खतापानी, तुनेता, जूडी, सैंजी, लुदुर, गिन्सी और कई अन्य दूरस्थ गांव के लोगों को सेवाएं दे रहा है.
शहर के दूसरे छोर पर प्रतिष्ठित सवॉय सब-पोस्ट ऑफिस 1902 से ऐतिहासिक होटल सवॉय से जुड़ा हुआ है. प्रसिद्ध शिकारी जिम काॅर्बेट के पिता ने पोस्ट मास्टर के तौर पर यहां काम किया था. मसूरी में लंढौर और सवॉय स्थित डाकघर करीब 125 साल से स्थानीय निवासियों को सेवाएं देता आ रहा है. ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने इन्हें अपनी सुविधा के लिए शुरू किया था.
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विधायक गणेश जोशी और स्थानीय निवासियों ने मसूरी के उप-डाकघरों को बंद किये जाने पर विरोध दर्ज कराया है. गणेश जोशी ने कहा कि डाकघरों को बंद किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में वह डाकघर के उच्च अधिकारियों से लगातार इस मामले को लेकर बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा इन उप-डाकघरों के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इन्हें संरक्षित करने के लिये कार्य योजना बनाये जाने का भी उन्होंने आग्रह किया है.