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खेल रत्न अवॉर्ड का नाम बदलने पर सियासी 'खेल' शुरू, मचा हंगामा

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Published : Aug 7, 2021, 7:52 PM IST

Updated : Aug 7, 2021, 9:51 PM IST

राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने के बाद देश में एक अलग ही बहस शुरू हो गई है. वहीं, उत्तराखंड में भी इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कांग्रेस जहां इसे दुराग्रह से ग्रसित फैसला बता रही है. वहीं, बीजेपी इसे खेल रत्न पुरस्कार के साथ इंसाफ बता रही है.

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khel Ratna Award के बदले नाम पर शुरू हुआ सियासी खेल

देहरादून: केंद्र सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया है. जिसके बाद से ही विपक्षी दलों ने इसे लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले को द्वेष भावना से उठाया गया कदम बताया है. वहीं, जानकारों की मानें तो इस फैसले से लोकतंत्र में एक नई परिपाटी शुरू हो गई है, जो आने वाले समय के लिए ठीक नहीं है. नाम बदलने के बाद से ही खेल रत्न को लेकर विवाद शुरू हो गया है.

खेल जगत में उत्कृष्ट प्रदर्शन और नाम कमाने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कृत करने के लिए साल 1991 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार की शुरुआत की गई थी. इस पुरस्कार को शुरू करने का मकसद खेल जगत से जुड़े खिलाड़ियों को न सिर्फ इसके माध्यम से पुरस्कृत किया जाना रहा. बल्कि अन्य खिलाड़ियों को भी खेलों के लिए प्रोत्साहित करना रहा है. खेल रत्न तीन दशकों से दिया जा रहा है. खेल रत्न अवॉर्ड के विजेता को सम्मान में एक पदक, एक प्रमाण पत्र और 25 लाख रुपये की राशि मिलती है. सबसे पहला खेल रत्न पुरस्कार भारतीय ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद को दिया गया था. अब तक 45 लोगों को ये अवॉर्ड दिया जा चुका है. अब इस पुरस्कार का नाम बदलकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम से कर दिया गया है.

khel Ratna Award के बदले नाम पर शुरू हुआ सियासी खेल

कौन हैं मेजर ध्यानचंद: हॉकी के जादूगर के नाम से जाने जाने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को यूपी के प्रयागराज में हुआ था. ध्यानचंद सिर्फ 16 साल की उम्र में भारतीय सेना (ब्रिटिश काल) में भर्ती हो गए थे. कहा जाता है कि वे ड्यूटी के बाद चांद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस करते थे, इसलिए उन्हें ध्यानचंद कहा जाने लगा. उनके खेल की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 में ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था. यही, नहीं, 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे. खेल जगत में एक अच्छा नाम कमाने वाले ध्यानचंद के जन्म दिवस (29 अगस्त) को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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मेजर ध्यानचंद के नाम पर पहले से ही है एक पुरस्कार: खेल-कूद में जीवनभर आजीवन उपलब्धि के लिए साल 2002 में खेल एवं युवा मंत्रालय ने ध्यानचंद पुरस्कार की शुरुआत की. ये एक सर्वोच्च पुरस्कार है. यह ध्यानचंद पुरस्कार, महान भारतीय हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के नाम पर है. ध्यानचंद पुरस्कार अपने शानदार खेल में खेल-कूद के क्षेत्र में योगदान करने और सक्रिय खेल जीवन से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी खेल-कूद को बढ़ावा देने के लिए योगदान जारी रखने के लिए दिया जाता है. ध्यानचंद पुरस्कार प्राप्त करने वालों को एक प्रतिमा, प्रमाणपत्र, पारंपरिक पोशाक और पांच लाख रुपये नकद दिये जाते हैं. अभी तक इस पुरस्कार से करीब 60 से अधिक लोगों को नवाजा जा चुका है.

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नाम बदलने पर हरीश रावत ने पीएम मोदी पर साधा निशाना: हरीश रावत की मानें तो भाजपा और आरएसएस यह चाहते हैं कि किसी न किसी तरीके से गांधी-नेहरू परिवार का नाम हर जगह से हटाया जाये. उन्हें पता है कि जब तक गांधी-नेहरू परिवार रहेगा तब तक देश की राजनीति भाजपा के अनुकूल नहीं चल सकती. हरीश रावत ने कहा देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाने में गांधी-नेहरू परिवार मुख्य स्तंभ है. अगर इस स्तंभ को ही हटाया जाएगा तो स्वभाविक है कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस देश में अपने हिसाब से राजनीति कर सकेगी.

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राजीव गांधी ने खेलों के लिए किए अभूतपूर्व प्रयास: हरीश रावत ने कहा खेल रत्न का नाम राजीव गांधी से बदलकर ध्यानचंद करना यह देश और दो लोगों में खटास पैदा करता है. भाजपा की नीति सही नहीं है. हरीश रावत ने कहा इसमें कोई दो राय नहीं है कि ध्यानचंद ने खेलों के लिए बेहद बड़े काम किए हैं, उनको सम्मान मिलना चाहिए. साथ ही हरीश रावत ने कहा राजीव गांधी ने भारतीय खेलों के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए हैं, जो पूर्व से लेकर अब तक देखे जा सकते हैं.

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भाजपा ने शुरू की गलत परिपाटी: इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि नेताओं के नाम पर किसी भी पुरस्कार या फिर जगह का नाम रखना शुरू से ही एक गलत परिपाटी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेल रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम हटाकर एक और परिपाटी शुरू कर दी है, जो आने वाले समय के लिए ठीक नहीं है. अभी फिलहाल केंद्र में भाजपा की सरकार है तो ऐसे में उन्होंने इसका नाम बदल दिया. वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के कई नेताओं के नाम से चीजें मौजूद हैं, ऐसे में अगर कांग्रेस की सरकार आती है तो वह भी उन्हें बदलने का प्रयास करेगी, जो एक गलत परिपाटी होगी.

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राजनीतिक शिष्टाचार के खिलाफ फैसला: जय सिंह रावत के अनुसार केंद्र सरकार ने जो यह नाम बदलने का फैसला लिया है वह राजनीतिक शिष्टाचार के खिलाफ है. अभी तक कई प्रधानमंत्री रहे, लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री के नाम से चल रही योजनाओं या फिर पुरस्कारों को नहीं बदला. यह देश में पहली बार हुआ, जब मौजूदा प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री के नाम से दशकों से चली आ रही पुरस्कार का नाम बदल दिया है. जिसे देखकर यही लगता है कि यह फैसला राजनीतिक दुराग्रह का है.

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बदले की भावना से किया गया नाम परिवर्तन:कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मथुरादत्त जोशी ने बताया कि मेजर ध्यानचंद के नाम पर किसी पुरस्कार का नाम रखना अच्छी बात है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री के नाम को हटाकर मेजर ध्यानचंद का नाम रखना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है. यदि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेजर ध्यानचंद के प्रति इतने संवेदनशील थे तो वो, उनके नाम से कोई और पुरस्कार शुरू कर सकते थे. केंद्र सरकार ने राजनीतिक बदले की भावना और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर यह फैसला लिया है. भाजपा पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा भाजपा सरकार वो है, जो जीते जी लोगों के नाम पर किसी स्मारक या स्टेडियम का नाम रख रहे हैं.

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भाजपा सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार के साथ किया है इंसाफ: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा खेल जगत के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कुछ नहीं किया, बावजूद इसके उनके नाम से पुरस्कार का दिया जा रहा था, जो उस खेल रत्न के साथ नाइंसाफी थी. भाजपा सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार के साथ इंसाफ किया है.

Last Updated : Aug 7, 2021, 9:51 PM IST

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