देहरादून:गैरसैंण विधानसभा भवन में बीते दिनों चल रही कैबिनेट बैठक में सीएम त्रिवेंद्र अपने विधायकों को सरकार के चार साल पूरे होने पर 18 मार्च को अपनी-अपनी विधानसभा में कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दे रहे थे. लेकिन नियति को कुछ ओर ही मंजूर था. दो दिनों में उत्तराखंड की राजनीति में उथल-पुथल हो गई. नौबत यहां तक आ गई कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. ऐसे में जनता त्रिवेंद्र से पूछ रही है कि 'क्या हुआ तेरा वादा, बातें कम काम ज्यादा'.
बीते सोमवार को दिल्ली दरबार में दी गई हाजिरी भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम नहीं आई. मीडिया हलकों में उनके इस्तीफे की खबर आज सुबह से ही तैर रही थी. प्रदेश बीजेपी के अंदर ही अंदर जो कुछ घट रहा था. उससे त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अंजान नहीं थे. लिहाजा, आलाकमान के आदेश के बाद मंगलवार को राज्यपाल से मिलकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपना इस्तीफा सौंप दिया.
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इस्तीफा सौंपने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत जब मीडिया से मुखातिब हुए तो मासूसी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी. उनकी जुबां कुछ और बोल रही थी और आंखे कुछ और... उनकी झुंझलाहट मीडियाकर्मी के पूछ गए सवाल के जवाब के रूप में साफ दिखती है. जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत कह रहे हैं कि मैंने इस्तीफा क्यों दिया इसका जवाब आप दिल्ली जाकर पूछिये.
इस्तीफे के बाद क्या बोले त्रिवेंद्र-
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि लंबे समय से पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहा हूं. विगत चार वर्ष पार्टी ने मुझे मुख्यमंत्री के रूप में देवभूमि की सेवा करने का मौका मिला. मैं अपने को बहुत भाग्यशाली मानता हूं, यह मेरे जीवन का स्वर्णिम काल रहा. छोटे से गांव में एक सैन्य परिवार में मेरा जन्म हुआ था. मैंने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि पार्टी मुझे ये अवसर देगी.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पिछले चार में हमने महिलाओं के लिए, किसानों के लिए, नौजवानों के लिए बहुत से कार्य किये हैं. अब पार्टी आलाकमान ने संयुक्त रूप से ये फैसला लिया है कि मुझे अब ये जिम्मेदारी किसी और को सौंपनी चाहिए. जैसे कि महिलाओं का पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी और मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याणकारी योजना. ये सब हमारी सरकार की उपलब्धि रही है. मुझे आशा है कि पार्टी जिसे भी नई जिम्मेदारी सौंपती हैं, उन्हें मेरी शुभकामनाएं हैं. सीएम पद से इस्तीफे को लेकर पूछे गए सवाल पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि इसका जवाब आपको दिल्ली जाकर पूछना चाहिए.
चार साल पूरा करने के लिए बचे थे नौ दिन
18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार अपने चार साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही थी. लेकिन नौ दिन पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा.
स्लोगन भी नहीं बचा पाया कुर्सी
स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दें तो कोई भी मुख्यमंत्री प्रदेश में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. ये मिथक त्रिवेंद्र सिंह रावत तोड़ते हुए दिखाई दे रहे थे. लेकिन उन्हें भी एक साल पहले अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड, जीरो टॉलरेंस और बातें कम, काम ज्यादा जैसे स्लोगन भी उनकी सरकार नहीं बचा पाए.