देहरादून: आगामी 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार अपने कार्यकाल के 4 साल पूरे करने जा रही है. जिसे लेकर सरकार 'बातें कम, काम ज्यादा' कार्यक्रम करने जा रही है. इस कार्यक्रम को लेकर तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार लगातार प्रदेश में दायित्वों को भी बांट रही है. जिससे की सरकार की जनता के बीच पहुंच बढ़ सके. इन 4 सालों के भीतर उत्तराखंड राज्य सरकार ने करीब 105 लोगों को दायित्व सौंपे हैं. हाल ही में 17 नेताओं को भी दायित्व सौंपे गये हैं. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर राज्य सरकार इस चुनावी वर्ष में नेताओं को दायित्व क्यों सौंप रही है?
सत्ता पर काबिज होने के बाद सरकारें अपने संगठन के नेताओं को दायित्व सौंपती है. यह वही नेता होते हैं जो सरकार बनाने में एक अहम भूमिका निभाते हैं. उन्हें यह उम्मीद रहती है कि जब उनकी सरकार बनेगी, तो उस सरकार में इन्हें अहम जिम्मेदारी भी दी जाएगी. इसी क्रम में बात अगर उत्तराखंड की करें तो उत्तराखंड में 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इन चारों विधानसभा चुनाव में एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी सत्ता पर काबिज रही है. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई थी. सत्ता पर काबिज होने के करीब पौने दो साल बाद नेताओं को दायित्व सौंपने की पहली लिस्ट जारी की थी.
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आगामी 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. इसी बीच हाल ही में त्रिवेंद्र सरकार ने 17 नेताओं को दायित्व सौंपे हैं. जिसके बाद दायित्व सौंपने की टाइमिंग पर सवाल खड़े उठने शुरू हो गया हैं. हाल ही में सौंपे गए दायित्व से विवाद इस वजह से उत्पन्न हो रहा है क्योंकि, राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, बावजूद इसके राज्य सरकार लोगों को दायित्व सौंपकर जनता की गाढ़ी कमाई अपने नेताओं पर लुटा रही है. यही नहीं, इस चुनावी वर्ष में नेताओ को दायित्व सौंपा जाने के कई और मायने भी निकाले जा रहे हैं.
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अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की है कोशिश
राज्य में चल रहे दायित्व के दंगल के बार में वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि चुनावी साल में त्रिवेंद्र सरकार ने न सिर्फ दायित्व बांटे हैं, बल्कि सीएम भी आश्चर्यजनक तरीके से सक्रिय हो गए हैं. जिसे देखकर यही लग रहा है कि पिछले साल आए सर्वे से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहीं न कहीं परेशान हैं. वे एक्टिव होकर अपनी इस छवि को बदलना चाहते हैं. इसके साथ ही पार्टी के भीतर भी यह स्थिति बन रही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव नहीं जीता जा सकता. पार्टी के भीतर कई नेता नाराज नेता हैं, जिन्हें मनाने की वजह भी दायित्व देना हो सकता है. यही नहीं, अगर आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नेतृत्व परिवर्तन हो भी जाता है तो उससे पहले ही मुख्यमंत्री अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.
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