देहरादून: उत्तराखंड की सियासत कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन इस बार बीजेपी इस इतिहास को बदलने की कोशिश में जुटी हुई है, तो वहीं कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए उत्सुक है. लेकिन उत्तराखंड राजनीति में मिथक भी जुड़े हुए हैं, ऐसे में इन मिथकों से राजनीति दल पार पा पाएंगे या नहीं ये तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. आइए आपको बताते हैं उन मिथकों के बारे में...
प्रदेश में कड़ाके की ठंड के बाद भी सियासी कोयला सुलगा हुआ है. गली-चौराहों से लेकर खेत ही पगडंडियों तक सियासत तेज हो गई है. इस दौरान राजनीतिक गलियारों में इन विधानसभा सीटों से जुड़े मिथक भी खासे चर्चा में बने हुए हैं. जहां प्रत्याशियों के जीत पर सरकार बनती आई है. ये मिथक दशकों से चले आ रहे हैं और हर पार्टी इनकों हलके में लेने की भूल नहीं करती है.आइए आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड की राजनीति के उन बड़े मिथकों से, जिन्होंने सियासत की तस्वीर साफ की है.
गंगोत्री सीट से तय होती है सरकार: उत्तराखंड में गंगोत्री सीट को लेकर अपना एक पुराना मिथक है. इस मिथक के अनुसार जो भी विधायक गंगोत्री सीट पर चुनकर आता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है.खास बात यह है कि ये मिथन यूपी के समय से देखने को मिल रहा है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले भी गंगोत्री क्षेत्र से जो विधायक जीतता था, यूपी में उसी की सरकार बनती थी, जो आजतक बरकरार है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के लिए गंगोत्री सीट काफी अहम रहती है और इस सीट पर अपने मजबूत प्रत्याशी को उतारने की कोशिश राजनीतिक दल करते हैं.
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साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण जीते, उन्होंने 7878 वोट हासिल किए जबकि सीपीआई के कमला राम नौटियाल यहां 7268 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. तब कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2007 विधानसभा चुनाव की करें तो यहां भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत जीते थे और उन्हें 24250 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहने वाले कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने 18704 वोट मिले थे. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी, उन्हें 20246 मत मिले थे. जबकि भाजपा के गोपाल सिंह रावत 13223 वोटों के साथा दूसरे स्थान पर रहे थे. तब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी. साल 2017 के चुनाव में भाजपा के गोपाल सिंह रावत जीते थे. उन्होंने 25683 वोट हासिल किए थे जबकि 16073 वोटों के साथ कांग्रेस के विजयपाल सजवाण दूसरे नंबर पर रहे थे. तब सूबे में भाजपा की सरकार बनी.
बदरीनाथ सीट पर रहती है सबकी नजर: बदरीनाथ सीट से भी मिथक जुड़ा हुआ है, यहां से कहा जाता है कि जिसका विधायक बनता है उसकी ही सरकार बनती है. इसलिए राजनीतिक दल इस सीट को गंभीरता से लेते हुए जिताऊ प्रत्याशी को ही खड़ा करते हैं. यहां से साल 2002 में कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. अनुसूइया प्रसाद मैखुरी जीते थे उन्हें तब 11145 मत पड़े थे. जबकि 10154 वोटों के साथ भाजपा के केदार सिंह फोनिया को दूसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था.
साल 2007 में भाजपा के केदार सिंह फोनिया 16607 वोटों के साथ जीते थे, जबकि 12742 वोटों के साथ कांग्रेस के अनुसुईया प्रसाद मैखुरी दूसरे नंबर पर रहे थे. फोनिया के जीत के साथ ही ही भाजपा सत्ता पर काबिज हुई थी. साल 2012 की बात करें तो यहां से कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी 21492 वोटों के साथ जीते थे, तब उन्हें 11291 मत पड़े थे. वहीं भाजपा के प्रेम बल्लभ भट्ट दूसरे नंबर पर रहे थे और कांग्रेस की सरकार बनी थी. 2017 में भाजपा के महेंद्र भट्ट 29676 वोटों के साथ जीते जबकि 24042 वोटों के साथ कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी दूसरे नंबर पर रहे. सरकार भाजपा की बनी.