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स्थापना दिवस: सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती, राजनीतिक लाभ ने तोड़े प्रदेश के सपने!

उत्तराखंड में सियासी गहमागहमी इस कदर रही कि पहाड़ी जिलों में विकास की बात को राजनीतिक दल भूल ही गए हैं. राजनीतिक अस्थिरता से राज्य को हुए नुकसान के बीच भाजपा पहाड़ों में विकास होने की बात कह रही है और सियासी अस्थिरता के लिए महज कांग्रेस को ही दोष दे रही है. लेकिन, सियासी नूरा-कुश्ती में पहाड़ के लोग अब भी विकास की आस में बैठे हुए हैं.

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सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती

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Published : Nov 7, 2020, 9:00 AM IST

देहरादून: पहाड़ की अपनी सरकार है, मुख्यमंत्री है, राजधानी है, लंबा चौड़ा अधिकारी और कर्मचारी तंत्र है, सत्ता के गलियारों में गढ़वाली और कुमाऊंनी बोली हरदम सुनाई देती है. लेकिन, इन सबके बीच पहाड़ के आम आदमी की जिंदगी बुनियादी विकास की आस में बैठा हुआ है, अपने सपनों के उत्तराखंड की आस में बैठा हुआ है. दरअसल, 9 नवंबर की तारीख इतिहास में उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज हैं. पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को नया उत्तराखंड अस्तित्व में आया. सियासी दांव-पेंच की नूरा कुश्ती के बीच उत्तराखंड अब 20 साल का हो चुका है. 20 साल के सफर में उत्तराखंड में बागडोर 9 मुख्यमंत्रियों के हाथ में रहीं.

सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिए लिए प्रदेश के सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी. लेकिन, सत्ता की भूख ने राज्य की परिकल्पनाओं को कभी पनपने ही नहीं दिया. यूं तो अलग राज्य का मकसद पहाड़ी जिलों के विकास और मूलभूत सुविधाओं को पहुंचा कर पलायन रोकना था. लेकिन सत्ता के चरम पर पहुंचने की लालसा ने इन सपनों को पीछे छोड़ बहुत पीछे छोड़ दिया है, जो प्रदेश में पनपी राजनीतिक अस्थिरता का कारण है.

एक तरह से देखा जाए तो उत्तराखंड की स्थिति कमोबेश वैसी ही हो गई है, जैसी अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय थी. 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड को लेकर अब ये सवाल उठते हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए ही क्या राज्य का गठन आनन-फानन में हुआ, भले ही इसके पीछे लोगों का बहुत लंबा और ऐतिहासिक संघर्ष रहा हो.

सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती.

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बता दें कि, तब उत्‍तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्‍व करने वाले 30 सदस्‍यों को लेकर अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया. इस अंतरिम विधानसभा में भाजपा का बहुमत था, तो पहली अंतरिम सरकार बनाने का अवसर भी भाजपा को ही मिला. नित्‍यानंद स्‍वामी को अं‍तरिम सरकार का मुख्‍यमंत्री बनाया गया. इसके साथ ही नवगठित राज्‍य में सियासी अस्थिरता की बुनियाद भी पड़ गई. पार्टी में गहरे अंतरविरोध के कारण स्‍वामी अपना एक साल का कार्यकाल भी पूर्ण नहीं कर पाए और उन्‍हें पद छोड़ना पड़ा.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों का सफर

  • नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री थे. राज्य का गठन होने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने यूपी विधान परिषद के तत्कालीन सदस्य नित्यानंद स्वामी को नए राज्य के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के लिए कहा. हालांकि स्वामी ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं बचा पाए. पार्टी के कहने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. स्वामी का कार्यकाल 9 नवम्बर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक चला.
  • भाजपा ने नित्यानंद स्वामी से इस्तीफा लेने के बाद कैबिनेट मंत्री भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया. साल 2002 में राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव कराए गए. चुनाव में भाजपा की हार के चलते कोश्यारी को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. कोश्यारी 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री रहे.
  • साल 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बंपर जीत मिली. कांग्रेस के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके एनडी तिवारी राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बने. एनडी तिवारी राज्य के पहले और फिलहाल आखिरी नेता हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. हालांकि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के कारण उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. एनडी तिवारी 24 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
  • साल 2007 में राज्य विधानसभा के दूसरे चुनाव हुए, जिसमें भाजपा को जीत मिली. पार्टी ने कड़क मिजाज के लिए जाने वाले मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूडी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. खंडूडी 8 मार्च 2007 को राज्य के चौथे मुख्यमंत्री बने. लेकिन भाजपा विधायकों के विरोध के चलते खंडूडी ने 23 जून 2009 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.
  • वर्ष 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक राज्य के नए मुख्यमंत्री बने. लेकिन उन पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से पार्टी की लगातार गिरती साख के कारण भाजपा ने चुनाव से ठीक छह महीने पहले दोबारा खंडूडी पर दांव लगाया और उन्हें सीएम बनाया. हालांकि खंडूरी भाजपा को 2012 के विधानसभा चुनाव में जीत नहीं दिला पाए. चुनाव में भाजपा और खंडूडी दोनों की हार हुई.
  • साल 2012 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद स्वतंत्रता सेनानी और मशहूर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने. लेकिन, 2014 में उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद राहत और पुनर्वास कार्यों को लेकर बहुगुणा की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे. जिसकी वजह से कांग्रेस को बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा.
  • बहुगुणा को हटाकर कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन रावत के लिए भी मुख्यमंत्री का सफर आसान नहीं था. सत्ताधारी दल कांग्रेस के 9 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. केंद्र सरकार ने कैबिनेट की आपात मीटिंग बुलाकर यहां राष्ट्रापति शासन लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुए फ्लोर टेस्ट में कांग्रेस पास हुई और फिर 11 मई को केंद्र ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा लिया.
  • वहीं, वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने राज्य के इतिहास में पहली बार 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनाई और त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य के 9वें मुख्यमंत्री बनें.

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सबसे लंबे कार्यकाल में दूसरे नंबर पर सीएम त्रिवेंद्र

राज्य के 9वें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कार्यकाल के लिहाज से कांग्रेसी दिग्‍गज एनडी तिवारी (जो अब तक उत्‍तराखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री) के बाद उत्‍तराखंड के सबसे सफलतम मुख्‍यमंत्री साबित हुए. सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का सफर अब भी जारी है. इस बात में अब संदेह नहीं कि वह एनडी तिवारी के बाद उत्तराखंड के दूसरे मुख्‍यमंत्री बनने जा रहे हैं, जिन्‍होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. ऐसे में यदि किसी पार्टी के साथ जनमत होती है तो प्रदेश की सियासी अस्थिरता खुद-ब-खुद खत्‍म हो जाती है. अलग राज्य का सपना आंदोलनकारियों की शहादत से पूरा तो हुआ. लेकिन राज्य गठन से पूर्व देखे गए सपने धरे के धरे रह गए.

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