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26 जनवरी पर पीएम मोदी ने पहनी उत्तराखंडी टोपी, ये है उसका उत्तरकाशी-मसूरी कनेक्शन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी पहनी, जो आकर्षण का केंद्र रही. पीएम मोदी के उत्तराखंडी टोपी पहनने के बाद सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा हो रही है और कई लोगों के मन में इस टोपी के बारे में जानने की इच्छा है.

PM Narendra Modi wore Uttarakhandi cap
PM मोदी के सिर पर पहाड़ी टोपी

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Published : Jan 26, 2022, 5:37 PM IST

Updated : Jan 26, 2022, 6:17 PM IST

उत्तरकाशी: गणतंत्र दिवस समारोह हो या स्‍वतंत्रता दिवस समारोह, ऐसे मौकों पर जहां आकर्षण का मुख्‍य केंद्र राजपथ और लाल किले पर होने वाला आयोजन होता है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेश-भूषा और परिधान भी खूब सुर्खियां बटोरते हैं. बुधवार को 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर एक बार फिर ऐसा ही हुआ, जब प्रधानमंत्री की टोपी ने सबका ध्‍यान खींचा. राजपथ पर आयोजित समारोह में पीएम मोदी न साफा में पहुंचे, न पगड़ी में, बल्कि इस बार वे अलग ही अंदाज में नजर आए.

73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर ब्रह्मकमल लगी पहाड़ी टोपी खासा आकर्षण का केंद्र रही. सोशल मीडिया पर इसकी खासी चर्चा हो रही है. आज के तकनीकी युग के समय पहाड़ी परंपरा और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए इस टोपी के प्रचलन की शुरुआत बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी से हुई है.

ब्रह्मकमल टोपी का उत्तरकाशी कनेक्शन.

उत्तरकाशी में बन रही टोपी: उत्तरकाशी में अनघा माउंटेन एसोसिएशन की मदद से मसूरी निवासी और सोहम हिमालयन म्यूजियम के संस्थापक समीर शुक्ला ने इस तरह की टोपी का निर्माण कार्य शुरू किया है. आज यह पहाड़ी टोपी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाए हुए है. इस पहाड़ी टोपी को बनाने में उत्तरकाशी के जाड़ समुदाय की काती गई ऊन के कपड़े का प्रयोग होता है. इस टोपी का निर्माण पहाड़ों में अपने समय के पुराने टेलर बाजगी समुदाय के लोग करते हैं. जो पहाड़ी टोपी बनाने में पारंगत होते हैं.

इस टोपी में क्या है खास?इस टोपी में एक तो ब्रह्मकमल लगा हुआ है, जो उत्तराखंड का राज्य फूल है. इसके अलावा इसमें चार रंग की एक पट्टी बनी हुई है. जो जीव, प्रकृति, धरती, आसमान के सामंजस्‍य का संदेश देती है. वैसे तो इस टोपी में भूटिया रिवर्स का कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अगर नहीं मिलता है तो वूलन के लिए ट्वीड का कपड़ा इस्तेमाल होता है और गर्मी के लिए खादी का कपड़ा इस्तेमाल होता है.

पहाड़ी टोपी बनी आकर्षण का केंद्र.

ईटीवी भारत की टीम ने पहाड़ी टोपी के नए क्लेवर के साथ पुनर्जीवित करने की कहानी पर पड़ताल की. इस नए पारांपरिक फैशन की पहचान बन चुकी ब्रह्मकमल लगी पहाड़ी टोपी के बारे में पौराणिक परंपरा और त्यौहारों के सरक्षंण और संवर्धन का कार्य कर रही अनघा माउंटेन एसोसिएशन उत्तरकाशी के संयोजक और बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी से ईटीवी भारत ने बातचीत की और इसके बारे में जानने की कोशिश की.

ये भी पढ़ें: गणतंत्र दिवस परेड: ब्रह्मकमल वाली उत्तराखंडी टोपी में नजर आए पीएम मोदी, दिया ये संदेश

किसने बनाई है ये टोपी? वर्ष 2014 में सोहम हिमालयन म्यूजियम के संस्थापक मसूरी निवासी समीर शुक्ला और कविता शुक्ला उनके संपर्क में आए और पहाड़ की संस्कृति और परंपरा वेशभूषा को नए क्लेवर के साथ पुनर्जीवित करने की चर्चा की. इस दौरान पहाड़ी टोपी के निर्माण पर विचार बना. अजय पुरी ने बताया कि 2017 में पहाड़ी टोपी के निर्माण के लिए जाड़ समुदाय की काती गई ऊन के कपड़े का परीक्षण शुक्ला दंपत्ति ने एसोसिएशन के सदस्य सरदार सिंह गुसाईं के साथ शुरू किया.

टोपी निर्माण करती महिलाएं.

उसके बाद उत्तरकाशी में ही पहली बार पारंगत टेलर बाजगी समुदाय के लोगों से इस टोपी का निर्माण कराया गया. जिसमें टोपी पर ब्रह्मकमल को विशेष स्थान दिया गया. अजय पुरी ने बताया कि इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शुक्ला दंपत्ति ने पहाड़ी टोपी को नए क्लेवर के साथ एक विशेष पहचान दिलवाई. जो आज प्रधानमंत्री के सिर पर भी सुशोभित हो रही है. फिलहाल इस टोपी को मसूरी में काले और लाल दो रंगों के साथ तैयार किया जा रहा है.

ब्रह्मकमल का महत्‍व: ऐसी मान्‍यता है कि रामायण में लक्ष्मण के बेहोश से ठीक होने के बाद देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्मकमल ही थे. इसका इस्तेमाल कई देशी नुस्खों में किया जाता है और यहां पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सर्दी के कपड़ों में भी इस फूल को रखा जाता है और माना जाता है कि इससे सर्दी के कपड़े खराब नहीं होते हैं. ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में उगता है और नंदा अष्टमी को लेकर इस फूल का खास महत्व है. पीएम मोदी की टोपी पर न सिर्फ ब्रह्मकमल का निशान बना था, बल्कि इसमें चार रंगों की एक पट्टी भी बनी नजर आई, जो धरती, आकाश, जीवन और प्रकृत‍ि के सामंजस्‍य का संदेश देती है.

Last Updated : Jan 26, 2022, 6:17 PM IST

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