देहरादून:कोरोना को मात देने के लिए उत्तराखंड भी प्लाज्मा थेरेपी को प्रयोग में लाया जा रहा है. दून मेडिकल कॉलेज में एक तरफ थैरेपी से जुड़ी मशीनों को लाने पर काम चल रहा है, तो दूसरी तरफ इसके फौरन बाद इससे जुड़े लाइसेंस की प्रक्रिया को भी शुरू किया जाएगा. हालांकि, ऋषिकेश एम्स पहले ही प्लाज्मा थेरेपी के लिए आवेदन कर दिया है.
देश के कई राज्यों में कोरोना मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसके काफी सकारात्मक परिणाम भी आए हैं. थेरेपी के दौरान देखने में आया है कि इससे कोरोना मरीज काफी तेजी से स्वस्थ्य हो रहे हैं. इसी को देखते हुए उत्तराखंड में भी अब प्लाज्मा थेरेपी को प्रयोग में लाने का निर्णय लिया गया है. प्रदेश में जिस तरह से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है, जिसे देखते हुए प्लाज्मा थेरेपी यहां काफी कारगर साबित हो सकती है. उत्तराखंड में प्लाज्मा थेरेपी के लिए अभीतक किसी भी अस्पताल के पास अनुमति नहीं है. उधर, ब्लड बैंक में प्लाज्मा जुटाने का भी लाइसेंस लेने की कोशिश की जा रही है.
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स्वास्थ्य महानिदेशक अमिता उप्रेती ने बताया कि ब्लड यूनिट की तरफ लाइलेंस के लिए आवेदन प्रकिया पूरी की जा रही है. इसके मद्देनजर संबंधित अधिकारियों से भी बात कर ली गई है. ऐसे में जल्द ही लाइसेंस की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाएगा ताकि प्लाज्मा थेरेपीथेरेपी पर तेजी से काम हो सके.
क्या है प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी को मेडिकल साइंस की भाषा में प्लास्माफेरेसिस (plasmapheresis) नाम से जाना जाता है. प्लाज्मा थेरेपी से तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें खून के तरल पदार्थ या प्लाज्मा को रक्त कोशिकाओं (blood cells) से अलग किया जाता है. इसके बाद यदि किसी व्यक्ति के प्लाज्मा में अनहेल्थी टिश्यू मिलते हैं, तो उसका इलाज समय रहते शुरू किया जाता है.
कैसे काम करती है प्लाज्मा तकनीक?
प्लाज्मा हमारे खून का पीला तरल हिस्सा होता है, जिसके जरिए सेल्स और प्रोटीन शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुंचते हैं. आप यह समझ लें कि हमारे शरीर में जो खून मौजूद होता है उसका 55 प्रतिशत से अधिक हिस्सा प्लाज्मा का ही होता है.
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प्लाज्मा के बारे में यह जान लेना उचित रहेगा कि अगर कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ठीक हुआ रहता है और अपना प्लाज्मा डोनेट करता है, तो इससे डोनेट करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है. किसी प्रकार की कोई कमजोरी नहीं होती है. इसमें जो लोग अपना प्लाज्मा डोनेट करते हैं, उनके प्लाज्मा को दूसरे मरीजों से ट्रांसफ्यूजन के माध्यम इंजेक्ट करके इलाज किया जाता है.
इस तकनीक में एंटीबॉडी का इस्तेमाल होता है, जो किसी भी व्यक्ति के बॉडी में किसी वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ बनता है. इसी एंटीबॉडी को मरीज के शरीर में डाला जाता है. ऐसे में एक मेथड से जो व्यक्ति ठीक हुआ रहता है, ठीक वही मेथड दूसरे मरीज पर कार्य करता है और दूसरा मरीज भी ठीक होने लगता है.