देहरादून: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बसे तमाम ऐसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं, क्योंकि बरसात के मौसम में इन ग्रामीण इलाकों पर खतरा और भी बढ़ जाता है. उत्तराखंड में मॉनसून सीजन ने भी दस्तक दे दी है, जिस वजह से एक बार फिर नदियों, झीलों और संवेदनशील क्षेत्रों में बसे गावों पर खतरा मंडरा रहा है. सरकारी तंत्र इन सभी गांवों को विस्थापित करने के दावे तो खूब कर रहा है, बावजूद इसके धरातल पर हकीकत करीब-करीब शून्य ही नजर आ रही है. ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है.
उत्तराखंड में मॉनसून के दस्तक देते ही संवेदनशील माने जाने वाले कई पहाड़ी क्षेत्रों से विस्थापित किए जाने वाले ग्रामीणों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना बनाने का दावा कर रहे हों, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.
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गांवों के विस्थापन का मामला बेहद गंभीर होने के चलते कुछ समय पहले मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी इस दिशा में उचित कदम उठाने के सम्बंधित अधिकारियों को भी कहा था. वहीं, अब आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के निदेशक पीयूष रौतेला का कहना है कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव किसी भी प्रकार के रिस्क जोन में आते हैं. ऐसे गांवों की मैपिंग पहले ही कर ली गयी है. लिहाजा, इन गांवों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालों की सहमति के आधार पर ही की जायेगी.
प्रदेश के भीतर पुनर्वास की नीति नहीं है व्यवहारिक
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि विस्थापन को लेकर जो सरकार ने नीति बनायी है, वह मानवीय और व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने कहा कि विस्थापन की नीति पर पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एतराज जताया था. उनका कहना था कि पुनर्वास नीति को हरियाणा की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए.
प्रदेश के 395 गांवों का होना है विस्थापन
उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में है. आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे के जद में हो. वहीं, पिथौरागढ़ जनपद में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं, बावजूद इसके यहां सिर्फ एक गांव को ही विस्थापित किया गया है. आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव खतरे की जद में हैं.
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