देहरादून:उत्तराखंड के सीमांत जिला मुख्यालय के भोटिया जनजाति के लोगों ने सरकार से 'भोटिया कुत्ता' शब्द पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. लोगों ने कहा है कि सरकार शासन और जनजाति आयोग को पत्र लिखकर इस शब्द पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगना चाहिए. क्योंकि इससे भोटिया समुदाय के लोगों की भावनाएं आहत हो रही है. इसके बाद राज्य सरकार के धर्मस्य और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि कानूनी रूप से देखा जाएगा कि आखिरकार इसमें क्या कुछ हो सकता है.
कुत्ते के नाम पर लोगों को आपत्ति :दरअसल, उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भेड़ बकरियों और घरों की रक्षा के लिए लोग इस कुत्ते को पालते हैं. इस कुत्ते की खासियत होती है कि यह बाघ जैसे जानवर से भी दो दो हाथ कर लेता है. इतना ही नहीं चरवाहे इस कुत्ते को इसलिए अपने साथ रखते हैं क्योंकि उनकी बकरियां हमेशा जंगलों में रहती है और ये कुत्ते उनकी बकरियों की रक्षा करते हैं. ऐसे में इस कुत्ते को लोग भोटिया नस्ल का कुत्ता कहते हैं. जबकि यह कुत्ता असल में शिप डॉग है, यानी झबरा कुत्ता जिसके शरीर पर बाल अधिक होते हैं.
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विशेष समुदाय की भावनाएं आहत:ये हर मौसम में पाला जा सकता है. लेकिन पहाड़ों में लोग इसे 'भोटिया कुत्ता' कहते हैं. ऐसे में भोटिया समुदाय के लोगों ने इस शब्द पर आपत्ति जताई है. बाकायदा राष्ट्रीय पंचायती राज संगठन ने शासन के साथ-साथ सरकार और जनजाति आयोग को एक पत्र लिखकर यह कहा है कि यह शब्द एक विशेष समुदाय की भावनाओं को आहत हो रही हैं और इस शब्द को चलन से हटाया जाए.
उत्तराखंड के इन जिलों में निवास करता है ये समुदाय:किसी जमाने में भोटिया समुदाय के लोग पहाड़ों में इस कुत्ते और भेड़ बकरियों को बेचा करते थे. तभी से यह शब्द चलन में आने लगा. लेकिन अब इसको लेकर लोगों का विरोध शुरू हो गया है. उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, बनबसा और उत्तरकाशी के ऊपरी क्षेत्रों में यह समुदाय रहता है. ऐसे में सभी ने इस पर आपत्ति जताई है. उत्तराखंड सरकार में धर्मस्य और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज कहते हैं कि कानूनी रूप से हम इस मुद्दे को देख रहे हैं कि आखिरकार इस पर क्या कुछ हो सकता है. कोई पत्राचार में इस शब्द का प्रयोग नहीं होता. लेकिन लोग अगर अमूमन इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं तो प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है. ताकि लोग 'भोटिया कुत्ता' ना कहें, साथ ही इसे कुछ अन्य नाम से भी जाना या पुकारा जा सकता है.
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