मसूरी: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज जयंती है. उत्तराखंड के उनका गहरा नाता है, खासकर देहरादून और मसूरी से. मसूरी से चाचा नेहरू को बेइंतहा मुहब्बत थी. 27 मई 1964 को जब चाचा नेहरू का निधन हुआ था, उससे तीन पहले भी वे मसूरी में थे.
दिल में बसता था मसूरी: इतिहासकार बताते है कि किशोरावस्था से ही वह देहरादून और मसूरी आते रहे. आजादी की जंग के दौरान भी वह लगातार मसूरी आए. देहरादून की पुरानी जेल में वह अंतरालों में कई महीनें जेल में कैद रहे. पं. नेहरू 1932, 1933, 1934 और 1941 में कैद रहे. यहां पर उन्होंने भारत एक खोज पुस्तक के कुछ अंश भी लिखे थे. नेहरू राजनीतिक बंदी के तौर पर कैद थे.
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मसूरी के इस होटल में रुकते नेहरू: इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते है कि नेहरू का मसूरी से खासा लगाव था और जब भी उन्हें अपने कामों से फुर्सत मिलती थी, वे पहाड़ों की रानी मसूरी आराम करने आ जाते थे. मसूरी का मशहूर होटल सवॉय में रहते थे, जहां आज भी उनके चित्रों से सजी एक गैलरी है.
मसूरी में घुड़सवारी की फोटो भारद्वाज ने बताया कि नेहरू ने भारत की आजादी के लिए अपना अहम योगदान दिया है, जिसके वजह से देश आजाद हुआ है. उन्होंने अंग्रेजों से भारत को आजाद करवाने के लिए बड़ी यातनाएं झेली. लेकिन उनके आत्मविश्वास और देश को आजाद कराने के जज्बे ने उन्हें कभी भी अंग्रेजों के सामने झुकने नहीं दिया.
मसूरी की वादियां के कायल थे नेहरू:देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल को मसूरी की वादियां और प्राकृतिक सौंदर्य खूब भाता था. अपने जीवनकाल में कई बार मसूरी आए. भारद्वाज ने बताया कि अपने निधन से तीन पहले भी वे मसूरी आए थे. यहां से लौटते वक्त रास्ते में अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई थी, जिसके बाद दिल्ली पहुंचकर उन्होंने अंतिम सांस ली.
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25 मई को मसूरी से रवाना हुआ थे नेहरू: चाचा नेहरू का निधन 27 मई 1964 को हुआ था. 25 मई को सुबह करीब 9.30 बजे नेहरू मसूरी से देहरादून के लिए रवाना हुआ थे. यहां पर वे सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे. 26 मई को वो दून में रुके थे. तभी अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई थी. इसके बाद उन्हें हेलीकॉप्टर से सहारनपुर के सरवासा हवाई अड्डे ले जाया गया और वहां से हवाई जहाज से दिल्ली भेजा गया, जहां 27 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली.
चाचा नेहरू को थी मसूरी से बेइंतहा मुहब्बत पहली बार 1906 में आए मसूरी आए थे नेहरू: इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री के पिता मोतीलाल नेहरू अस्थमा के मरीज थे. स्वास्थ्य लाभ के लिए वह अक्सर मसूरी आते थे. पहली बार वह वर्ष 1906 में मसूरी आए थे. मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य का जिक्र उन्होंने यहां आने के बाद पिता मोतीलाल नेहरू के स्वास्थ्य में हो रहे सुधार का संदेश देने के लिए एक जून 1914 को माता स्वरूप रानी को लिखे पत्र में भी किया था.
प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बॉन्ड ने भी अपनी रचना टेल्स ऑफ मसूरी में जिक्र किया है कि नेहरू परिवार समयांतर पर मसूरी आता रहता है. इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार पं. जवाहर लाल नेहरू मई 1920 में पत्नी कमला और पुत्री इंदिरा के साथ मसूरी आए तो होटल सवाय में ठहरे थे. उन दिनों अफगानिस्तान और ब्रिटिश के बीच राजनीतिक संधि पर बातचीत के लिए दोनों देशों के डेलीगेट्स भी मसूरी आए थे और सवॉय होटल में ही ठहरे हुए थे.
मोती लाल नेहरू ने पं. नेहरू को लिखा पत्र. अग्रेजों को था डर: रस्किन बांड के उपनाय के मुताबिक अंग्रेजों को जब पता चला कि पं. नेहरू भी उसी होटल में ठहरे हुए हैं तो वह इस बात को लेकर सशंकित हो गए कि कहीं जवाहरलाल बातचीत को प्रभावित न कर दें. उन्होंने पं. नेहरू से मुलाकात की और एक पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा, जिसमें लिखा था कि वह इस बातचीत में कोई दखलअंदाजी नहीं करेंगे. नेहरू ने ऐसा करने से मना कर दिया. इस पर अंग्रेज अधिकारियों ने अपने उच्चाधिकारियों से आदेश लेकर पं. नेहरू से 24 घंटे के भीतर होटल खाली करवा लिया. इसके बाद पं. नेहरू इलाहाबाद वापस लौट गए.
1928 में जवाहरलाल पत्नी कमला नेहरू के साथ फिर मसूरी पहुंचे और सवॉय होटल में ही ठहरे. अक्टूबर 1930 में वह पिता और पत्नी के साथ मसूरी आए. तीन दिन यहां रुकने के बाद वापस इलाहाबाद लौटने पर एक आंदोलन में भाग लेने के चलते उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया.1946 से 1964 के बीच जवाहरलाल कई बार मसूरी आए.
दलाई लामा से मसूरी में की मुलाकात: वर्ष 1959 में मसूरी आने पर पं. नेहरू ने हैप्पी वैली स्थित बिरला हाउस में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने दलाई लामा से तिब्बतियों के विस्थापन पर विस्तार से वार्ता की. मसूरी की इस घटना ने भारत-चीन संबंधों में एक बदलाव देखा गया जिसके परिणामस्वरूप 1962 का युद्ध हुआ. दलाई लामा और नेहरू के बीच हुई बातचीत के कारण वर्तमान में मसूरी में कई हजारों तिब्बती रह रहे हैं.
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गुस्से में छोड़ दिया था होटल: गोपाल भारद्वाज के अनुसार एक बार पं. जवाहर लाल नेहरू सवाय होटल में डिनर के लिए सादे कपड़ों में चले गए. तब ब्रिटिश काल था और डिनर पर ड्रेस कोड के हिसाब से कपड़े पहनकर जाना होता था. होटल के महाप्रबंधक ने पं. नेहरू को ड्रेस कोड में आने के लिए कहा तो वह बिगड़ गए. इसपर होटल प्रबंधन ने नेहरू को होटल खाली करने का फरमान जारी कर दिया. पं. नेहरू रात में ही सवॉय छोड़कर लाइब्रेरी बाजार में अपने दोस्त पीएन तन्खा के होटल कश्मीर पहुंच गए.
भारद्वाज ने बताया कि पिता मोती लाल नेहरू ने जवाहर लाल नेहरू को जन्मदिन के अवसर पर दिल्ली से बधाई संदेश पत्र के माध्यम से भेजा था, जिसका जबाब उन्होंने पत्र के माध्यम से उनको भेजा और आज भी वह पत्र उनके पर संरक्षित है.
भारद्वाज ने बताया कि 1954 में नेहरू ने नगर परिषद के तत्कालीन सदस्यों, भोला सिंह रावत और चौधरी राजे लाल से मुलाकात की. उन्होंने उनसे मसूरी में एक डिग्री कॉलेज खोलने का अनुरोध किया. आज कहा जा सकता है कि मसूरी में वर्तमान एमपीजी कॉलेज की स्थापना में नेहरू का योगदान था.