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यूं ही नहीं कहते उत्तराखंड को देवभूमि, 14 प्रयागों में से 5 प्रयाग हैं यहां, हर प्रयाग का अपना अलग महत्व

देश में कुल 14 प्रयाग हैं. जिसमें से 5 प्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में है. जिसके नाम देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग हैं. इन पांचों प्रयागों पर विभिन्न नदियां अलकनंदा नदी से मिलती हैं.

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Published : Apr 28, 2019, 5:40 PM IST

Updated : Apr 28, 2019, 7:49 PM IST

पंच प्रयाग में स्नान से होती है मोक्ष की प्राप्ति

देहरादून: उत्तराखंड देश-दुनिया में देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है. जिसकी वजह यह है कि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के साथ ही देशभर के 14 प्रयागों में से पांच प्रयाग सिर्फ उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं. उत्तराखंड लंबे समय से पर्यटन का केंद्र बिंदु रहा है. उत्तराखंड राज्य न सिर्फ अध्यात्म बल्कि रोमांच की दृष्टि से भी अपना एक अलग पहचान बना चुका है. ETV Bharat आज आपको देवभूमि के पंच प्रयागों के बारे में बताने जा रहा है.

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प्रयाग शब्द आते ही सभी के जहन में बस एक ही ध्यान आता है उत्तरप्रदेश के शहर प्रयागराज (इलाहाबाद) का, इसका मूल नाम प्रयाग है और यहां गंगा और यमुना का संगम होता है. साथ ही कहा जाता है कि अदृश्य रूप से यहां पर सरस्वती का संगम भी होता है. इसी तरह देश में कुल 14 प्रयाग हैं. जिसमें से 5 प्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में है. जिसके नाम देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग हैं. इन पांचों प्रयागों पर विभिन्न नदियां अलकनंदा नदी से मिलती हैं. इन प्रयागों का उत्तराखंड में बहुत महत्व है. लोग इन नदियों पर किसी खास पर्व या आम दिनों में स्नान करने आते हैं.

1- देवप्रयाग

देवभूमि उत्तराखंड के पंच प्रयागों में से देवप्रयाग का विशेष महत्व है. देवप्रयाग में उत्तर भारत की दो दैविक नदियां अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और ये दोनों दैविक नदियां मिलकर पवित्र गंगा का स्वरूप धारण करती हैं. मान्यता है कि भगीरथ के ही कठोर तपस्या के बाद मां गंगा धरती पर आने के लिए राजी हुई थीं. देवप्रयाग वही स्थान है जहां सबसे पहले गंगा प्रकट हुई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम लंका विजय करने के बाद लक्ष्मण और सीता सहित यहां तपस्या करने आए थे. देवप्रयाग पर्यटकों के लिए विशेष महत्त्व रखता है.

देवप्रयाग में आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ कई तरह के एडवेंचर एक्टिविटी का लुफ्त उठा सकते हैं. बदरीनाथ मार्ग पर स्थित यह स्थल एक विशेष हॉल्ट के रूप में विख्यात है. शांत जगह खोजने वाले सैलानी यहां आकर अपनी थकान दूर सकते हैं.

कैसे पहुंचें

देवप्रयाग पहुंचने के लिए दिल्ली से NH-58 से पहुंच सकते हैं. इसके लिए आपको दिल्ली से महज 295 किलोमीटर का सफर तय करना होगा. अगर आप उत्तराखंड में हैं तो ऋषिकेश से मात्र 73 किलोमीटर का सफर तय कर देवप्रयाग पहुंच सकते हैं. हालांकि, ऋषिकेश से देवप्रयाग जाने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं मिल जाएंगी.

2- रुद्रप्रयाग

उत्तराखंड के पंच प्रयाग में से दूसरा प्रयाग, रुद्रप्रयाग है, जहां दैविक नदियों का मिलन होता है. इस स्थल पर अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम होता है. बदरीनाथ से होकर आने वाली अलकनंदा और मंदाकिनी यह दोनों दैविक नदियां एक दूसरे में विलीन होती हैं और इन दोनों ही नदियों के विलीन होने का दृश्य काफी रोमांचक अनुभव देता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के 'रुद्र' नाम पर ही इस स्थान का नाम रुद्रपुर पड़ा.

इसी स्थान पर नारद मुनि ने भगवान शिव की तपस्या की थी और इसी स्थान पर भगवान शिव ने नारद मुनि को अपना रौद्र रूप दिखाया था. रुद्रप्रयाग में रोज शाम को होने वाली आरती काफी प्रसिद्ध है. पर्यटन के लिहाज से सर्दियों के मौसम में यहां प्राकृतिक खूबसूरती का भरपूर आनंद लिया जा सकता है. अगर आप पहाड़ी ट्रैकिंग के साथ-साथ आध्यात्मिक अनुभव चाहते हैं तो यहां की आरती का अनूठा अनुभव जरूर लें.

कैसे पहुंचें

दिल्ली से अगर ऋषिकेश के रास्ते रुद्रप्रयाग तक पहुंचना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ऋषिकेश से 140 किलोमीटर का सफर तय करना होगा. ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग के लिए बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाएगी. इस दैविक स्थान से होकर आप केदारनाथ और बदरीनाथ के लिए भी जा सकते हैं. यहां टैक्सी, होटल-लॉज साथ ही पार्किंग की व्यवस्था भी उपलब्ध है.

3- कर्णप्रयाग

देवभूमि के पंच प्रयागों में से ही एक प्रयाग, कर्णप्रयाग है. जहां अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम होता है. बागेश्वर स्थित पिंडारी ग्लेशियर से होकर पिंडर नदी यहां पहुंचती है. मान्यता है कि यह स्थान महाभारत काल के समय का है और महाभारत के योद्धा एवं दानवीर कर्ण के नाम पर इस स्थान नाम कर्णप्रयाग पड़ा है. यहां स्नान के बाद दान करने की परंपरा है. यहां की आबोहवा में शांति व्याप्त है जो किसी का भी मन मोह सकती है. कर्ण प्रयाग में आध्यात्मिक अनुभव के साथ ही विभिन्न वाटर स्पोर्ट्स का लुफ्त भी उठा सकते हैं.

कैसे पहुंचें

देवभूमि के पंच प्रयागों में शामिल कर्णप्रयाग NH-58 पर स्थित है, जोकि बदरीनाथ को सीधा दिल्ली से जोड़ता है. कर्णप्रयाग पहुंचने के लिए ऋषिकेश से लगभग 170 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा. इसके लिए आपको पहाड़ी सड़क मार्गों का सहारा लेना होगा. कर्णप्रयाग के बाद आप बदरीनाथ जा सकते हैं जो कर्णप्रयाग से महज 127 किलोमीटर की दूरी पर है.

4- नंदप्रयाग

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित पंच प्रयागों में से एक प्रयाग, नंदप्रयाग है. नंदप्रयाग वह स्थल है जहां दो दैविक नदियां मंदाकिनी और अलकनंदा का मिलन होता है. दोनों दैविक नदियों का संगम स्थल सैलानियों के बीच काफी प्रसिद्ध है. मान्यता है कि राजा नंद ने पुत्र प्राप्ति के लिए यहां तपस्या की थी और उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था.

इसी स्थान के पास गोपाल जी मंदिर के नाम से एक मंदिर स्थित है, जहां भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है. अध्यात्मिक और पर्यटन के लिहाज से नंदप्रयाग अपनी अलग पहचान रखता है. इस स्थल में भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों सैलानी पहुंचते हैं. यहां प्राकृतिक सुंदरता के भरपूर आनंद उठा सकते हैं. साथ ही ट्रैकिंग, नाइट कैंपेनिंग, रिवर राफ्टिंग आदि का लुफ्त उठा सकते हैं.

कैसे पहुंचें

नंदप्रयाग स्थल उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग के मध्य स्थित है जो कर्णप्रयाग से मात्र 21 किलोमीटर की दूरी पर है. हालांकि बाकी प्रयागों की तरह ही नंदप्रयाग भी बदरीनाथ के रास्ते में ही पड़ता है. ऋषिकेश से नंदप्रयाग स्थल के लिए टैक्सी और बस सर्विस आसानी से उपलब्ध हो जाती है, इसके लिए ऋषिकेश से कुल 191 किलोमीटर का सफर तय करना होगा. इसके लिए आपको पहाड़ी सड़क मार्गों का सहारा लेना होगा.

5 - विष्णुप्रयाग

देवभूमि उत्तराखंड के पंच प्रयाग में से पांचवां व आखरी प्रयाग, विष्णुप्रयाग है. जो भगवान विष्णु के दरबार बदरीनाथ के बिल्कुल नजदीक है. विष्णुप्रयाग में अलकनंदा और विष्णु गंगा नदी का मिलन होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस प्रयाग पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी. इस स्थल पर भगवान विष्णु का मंदिर भी है जिसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था. विष्णु प्रयाग स्थल पर दो दैविक नदियों का संगम होता है और इस संगम के बाद नदियों का वेग तेज हो जाता है जिस वजह से यहां रिवर राफ्टिंग करना चुनौतीपूर्ण है. लेकिन विष्णुप्रयाग में ट्रैकिंग और रिवर क्लाइंबिंग के रोमांच का अनुभव ले सकते हैं.

कैसे पहुंचें

विष्णुप्रयाग पांचों प्रयागों में से एक है जो बदरीनाथ धाम के बेहद करीब है. ऋषिकेश से विष्णुप्रयाग जाने के लिए लगभग 272 किलोमीटर का सफर तय करना होगा, जिसके लिए आपको पहाड़ी सड़कों का सहारा लेना पड़ेगा. हालांकि, अगर आप अपने पर्सनल वाहन से नहीं आना चाहते हैं तो ऋषिकेश से बस या टैक्सी आसानी से मिल जाएगी. विष्णुप्रयाग में प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक अनुभव का आनंद लेने के बाद बदरीनाथ धाम भी जा सकते हैं.

पंच प्रयागों की व्यवस्था की जानकारी देते हुए सचिव अमित नेगी ने बताया कि उत्तराखंड के बदरीनाथ रूट पर पांच प्रयाग पड़ते हैं और राज्य सरकार का पूरा प्रयास है इन पंच प्रयागों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि जो यात्री यहां आ रहे हैं. वह प्रयाग में भी घूम सकें. इसके साथ ही प्रयागों पर बने स्नान घाटों की सफाई व्यवस्था चाक-चौबंद हो, पार्किंग की व्यवस्था, लाइटिंग की व्यवस्था से संबंधित निर्देश भी दिए गए हैं.

उन्होंने बताया कि प्रयागों को जोड़ने वाली सड़क कई जगह व्यवस्थित नहीं हैं, जिसको ठीक करने के लिए पीडब्लूडी विभाग को निर्देश दिया गया है. सरकार द्वारा का लगातार प्रयास किया जा रहा है कि पंच प्रयागों को साफ-सुथरा रखा जाए, जिससे यहां आने वाले सैलानी अच्छा एक्सपीरियंस लेकर जाएं.

Last Updated : Apr 28, 2019, 7:49 PM IST

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