देहरादून:देवभूमि उत्तराखंड में पारंपरिक जागर का अपना अलग महत्व है. मौका चाहे खुशी का हो या फिर गम का. प्रदेश के दुरस्थ पहाड़ी जनपदों में हर मौके पर जागर गाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. जागर को और बेहतर तरीके से समझने के लिए ईटीवी भारत ने जागर सम्राट पद्मश्री डॉ प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत की.
पद्मश्री प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत प्रीतम भरतवाण ने पवित्र सावन माह का जिक्र करते हुए बताया कि जागर का मूल महादेव शिव हैं. देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में शिव बसे हुए हैं. यही कारण है कि पहाड़ों में दुआ-सलाम भी 'शिवमान्य' कहकर की जाती है.
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बता दें, जागर गाते समय ढोल, सागर, हुड़का और थाली का इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधे तौर पर मनुष्य के अंतर्मन को जगाता है और उसे ईश्वर के करीब होने का एहसास कराता है. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि जागर अनिष्टकारी शक्तियों को भी दूर करता है. जागर मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है. इसलिए उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में आज भी गम हो या खुशी हर मौके पर जागर गाने की परंपरा है.
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आधुनिकता के इस दौर में जागर को देश के साथ ही विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाने में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का बहुत बड़ा योगदान रहा है. विदेशों के कई जाने माने विश्वविद्यालयों में जागर पर शोध किए जा रहे हैं.