देहरादून: ऐतिहासिक कनॉट प्लेस (Historic Connaught Place) के गिरासू भवन के ध्वस्तीकरण का आदेश (Order for demolition of Girasu building) दिया जा चुका है. जिसको लेकर प्रशासन की टीम ध्वस्तीकरण से पहले 18 कब्जेदारों को हटाने पहुंची. जहां उन्हें को भारी विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि, बमुश्किल टीम एक गोदाम को ही खाली करवा पाई. भारी विरोध की वजह से टीम को बैरंग वापस लौटना पड़ा.
भारी पुलिस बल के साथ प्रशासन की टीम कार्रवाई के लिए आज कनॉट प्लेस के उन भवनों पर पहुंची. जहां एक अर्से से कब्जेदार व्यापार करने के साथ ही निवास कर रहे हैं. प्रशासन की कार्रवाई से पहले ही यहां मौजूद कब्जाधारियों ने उन्हें बसाने की गुहार लगाते हुए जमकर हंगामा किया. जिसकी वजह से प्रशासन की टीम को एक बार फिर ठोस कार्रवाई किए बिना बैरंग लौटना पड़ा.
कब्जेदारों को हटाने पहुंची टीम बैरंग लौटी ऐतिहासिक कनॉट प्लेस के गिरासू घोषित भवन में सन 1934 से रहने वाली धर्मी देवी ने प्रशासन की कार्रवाई पर दुख जताते अपनी पीड़ा बयां की है. उन्होंने कहा कि वह 80 साल की हो गई हैं, उनके पास अधेड़ उम्र के दो अपाहिज संतान हैं. परिवार में और कोई घर नहीं है. अब यहां जिस तरह से हटाने की कार्रवाई हो रही है, उसके चलते वह सड़क पर आ गई हैं. सरकार पहले उन्हें रहने का कोई ठिकाना दे. उसके बाद अपनी दुकान और मकान वापस लेने की कार्रवाई करें.
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धर्मी देवी ने कहा जब कनॉट प्लेस भवन की ईंट सेठ मंसाराम ने रखी थी. तभी से वह यहां किराए पर दुकान और उसके ऊपर बने मकान में रहती हैं. अब दशकों बाद उनका यह हाल होगा, यह उन्होंने कभी सोचा न था. वहीं, कनॉट प्लेस के भवन के प्रथम तल में 1965 से रहने वाली आशा रानी (78 वर्ष) ने भी दुख जताया. उन्होंने कहा हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उन लोगों को बुला बुलाकर बसाया गया था. रोजी रोटी के लिए दुकानें और रहने के लिए किराए पर मकान दिए गए थे. आज कितने वर्षों बाद यहां से बेघर कर हटाया जा रहा है. इससे बड़ी दुख की बात क्या हो सकती है? अब हम कहां जाएं, यह हमें सूझ नहीं रहा. ऐसे में अब हम यहीं मरेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कनॉट प्लेस के गिरासू भवनों को कब्जेदारों से खाली कराने पहुंचे तहसीलदार सोहनलाल ने कहा कि कोर्ट के आदेश का पालन हर हाल में किया जाएगा. पुलिस बल को लेकर कार्रवाई के लिए प्रशासन पहुंचा था. कुछ लोगों को हटाया गया है, लेकिन कई तरह का व्यवधान आया है. जिसकी रिपोर्ट आगे पेश की जाएगी. विरोध करने वाले कब्जेदारों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है. मौखिक तौर पर ही दावा किया जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत है.