देहरादून: उत्तराखंड में हर बार मानसून आफत (Disaster Monsoon in Uttarakhand) लेकर आता रहा है. मानसून में कभी लोगों के घर उजड़ जाते हैं, तो कभी मानसून की बारिश इतनी तबाही लेकर आती है कि इसमें कई जिंदगियां काल के गाल में समा जाती हैं. हाल ही में देहरादून, टिहरी में आई आपदा ने ऐसे जख्म दिये हैं, जो बेहद दर्दनाक हैं. इस आपदा में कई लोगों के घर उजड़ गये हैं, कई लोग अभी भी लापता हैं. मानसून सीजन में उत्तराखंड की नदियों में अन्य सीजन की अपेक्षा अधिक शव मिलते हैं. जिसके बाद हाल में में लालतप्पड़ में दिखाई दिये शवों (Dead bodies seen in Laltappad) को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये कि ये शव आपदा में लापता लोगों के हैं या फिर ये शव कहीं और से बहकर आये हैं.
उत्तराखंड में जब साल 2013 में आपदा आई थी भी तब राज्य की तमाम छोटी-बड़ी नदियों में कई शव दिखाई दिए थे. कई शवों की शिनाख्त हुआ तो कई ऐसे थे जिनकी सालों तक पहचान नहीं हो पाई. बीते रोज भी राजधानी देहरादून के लालथप्पड़ में तीन शवों (Three dead bodies seen in Dehradun Lalthappad) की सूचना से जिले में हड़कंप मच गया. इस दौरान बरसाती नदी इतनी तेज थी कि जब शव दिखने की सूचना मिली तब तक तीनों डेड बॉडी बहुत आगे पहुंच चुकी थी. लिहाजा एसडीआरएफ और स्थानीय पुलिस की मदद से एक महिला के शरीर को बमुश्किल बाहर निकाला गया, जबकि दो डेड बॉडीज की तलाश अब भी जारी है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि इन बरसाती नदियों और दूसरी नदियों में ये शव कहां से आये?
मानसून सीजन में बढ़ जाती है नदियों में मिलने वाली डेड बॉडीज की संख्या पढ़ें-देहरादून में भारी बारिश ने बरपाया कहर, ऐसी हैं बारिश से तबाही की तस्वीरें, देखें Ground Zero रिपोर्ट
उत्तराखंड में भागीरथी, अलकनंदा, हल्द्वानी की गौला नदी या फिर टनकपुर में बहने वाली नदियां बेहद तेज और गहरी हैं. ऋषिकेश, हरिद्वार में लगभग हर दिन ऐसे ही शव गंगा में दिखाई देते हैं. जिनकी या तो पहचान नहीं हो पाती या फिर यह किसी कारणवश नहाते हुए गंगा में डूब जाते हैं, लेकिन इस बार मानसून के दौरान राजधानी देहरादून और अन्य जगहों पर ऐसे कई शव मिले हैं जिनकी ना तो पहचान हो पाई है और न ही इनके बारे में कोई जानकारी है. तमाम रेस्क्यू किए गए शवों के आंकड़े चिंता का विषय है. जिसके बाद नदियों में बहकर आने शवों को लेकर तमाम तरह के सवाल उठते हैं.
शवों को रेस्क्यू करती एसडीआरएफ. पढ़ें-उत्तराखंड में बारिश से तबाही, यमकेश्वर में बादल फटने से वृद्धा की मौत, टिहरी में दो की जान गई
राजधानी देहरादून के लालतप्पड़ सौंग नदी में एसडीआरएफ को सूचना मिली के तीन शव नदी में दिखाई दिये हैं. जिसके बाद एसडीआरएफ सेनानायक मणिकांत मिश्रा ने अपनी टीम को इसकी जानकारी दी. मौके पर पहुंची एसडीआरफ की टीम ने शवों को निकाले के प्रयास किये. इस दौरान बरसाती नदी इतनी तेज थी कि जब शव दिखने की सूचना मिली तब तक तीनों डेड बॉडी बहुत आगे पहुंच चुकी थी. लिहाजा एसडीआरएफ और स्थानीय पुलिस की मदद से एक महिला के शरीर को बमुश्किल बाहर निकाला गया, जबकि दो डेड बॉडीज की तलाश अब भी जारी है.
पढ़ें-उत्तराखंड में बादलफाड़ मुसीबत, सड़क से लेकर कस्बे तक डूबे, कहीं मकान ढहे तो कहीं गाड़ियां बहीं
राजधानी में मिले शव के बाद हमने एसडीआरएफ से सूचना प्राप्त की तो मालूम हुआ है की इस मानसून में बहुत अधिक शवों को नदियों से रेस्क्यू किया गया है. एक आंकड़े के मुताबिक ये संख्या बहुत अधिक है. जून महीने से लेकर अगस्त 26 तक ये आंकड़ा लगभग 58 शवों का है. इनमें से ऋषिकेश, देहरादून सौंग, गंगा की बरसाती नदियों से लगभग मानसून के दौरान 30 शव बरामद किये गए हैं, टिहरी से 3 शव बरामद हुए हैं.
शवों की संख्या ने बढ़ाई चिंता. ऐसा ही हाल उत्तरकाशी का भी है. यहां चिन्यालीसौड़ से दो शव बदामद हुए हैं. हरिद्वार, लक्सर से एसडीआरएफ ने इस मानसून के दौरान 2 शव बरामद किये हैं. नैनीताल की टीम ने 10 शव बरामद किये हैं. टनकपुर की नदियों से भी 3 शव बरामद किये गये हैं. ये आंकड़े सिर्फ एसडीआरएफ द्वारा बरामद किये शवों के हैं, जबकि स्थानीय पुलिस के आंकड़े अलग हैं.
एक अनुमान के मुताबिक अकेले हरिद्वार में ही गंगा में मानसून के दौरान 7 से अधिक शव बरामद हुए हैं. हालांकि इन शवों में से कुछ की पहचान समय रहते होती रहती है. वहीं कुछ शव ऐसे भी होते हैं, जिनकी पहचान ही नहीं हो पाती है. जिसके कारण पुलिस विभाग को भी इन शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है.
पढ़ें-बादल फटने के बाद बुलडोजर पर आपदाग्रस्त क्षेत्र पहुंचे CM धामी, सेना से भी मदद ले सकती है सरकार
क्या होता है इन शवों का: पुलिस के मुताबिक जहां भी शव मिलता है, कोशिश रहती है कि आसपास के क्षेत्र से इसकी जानकारी जुटाई जाए. पास के थानों, अस्पतालों से इस बारे में तुरंत पता लगाया जाये. जिससे पहचान को पुख्ता किया जा सके. शवों की शिनाख्त होने पर पोस्टमार्टम या अन्य कार्रवाई कर शव परिजनों को सौंप दिये जाते हैं. जिन मामलों में शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती है, उन्हें मोर्चरी में रखवा दिया जाता है. साथ ही उनके बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास भी किया जाता है. तय समयावधि तक भी अगर शव के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है तो शवों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.
मानसून सीजन में क्यों अधिक मिलते हैं शव:उत्तराखंड में मानसून सीजन में अधिक शव क्यों मिलते हैं इसका भी कारण हैं. दरअसल, मानसून सीजन में हुई बारिश के कारण नदी-नाले उफान पर रहते हैं. ऐसे में नदी की तेज धारा में नदी के कोने-किनारों में अटके शव बह जाते हैं, जो नदी की धारा के साथ आगे निकल जाते हैं. साथ ही मानसून की आपदा में कई लोग नदी नालों की चपेट में भी आ जाते हैं. जिसके कारण नदी-नालों में मिलने वाले शवों की संख्या अन्य सीजन की अपेक्षा बढ़ जाती है. मानसून सीजन में पहाड़ों में लैडस्लाइड की भी घटनाएं बढ़ जाती है. जिसके कारण भी कई लोग नदी, नालों में बह जाते हैं. साथ ही मानसून सीजन में एक्सीडेंट की घटनाएं भी बढ़ जाती है. इस सड़क दुर्घटनाओं में भी कई लोग लापता हो जाता है.