देहरादूनःवर्ष 2002 से केंद्र सरकार द्वारा देशभर में शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) लागू किया गया. इस कानून को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं है. इसके तहत गरीब परिवार के बच्चों के अलावा सड़क पर भिक्षावृत्ति व बाल मजदूरी जैसे असहाय बच्चों के नाम पर मिलने वाली सालाना प्रायोजित (स्पॉन्सर) धनराशि को लेकर उत्तराखंड शिक्षा विभाग 16 वर्षों तक कितना लापरवाह बना हुआ था, इसका खुलासा बाल आयोग ने किया है.
आयोग के मुताबिक, प्रदेशभर के सभी 13 जिलों में RTE योजना के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली अतिरिक्त स्पॉन्सर राशि का उत्तराखंड के किसी भी जनपद ने कानून लागू होने वर्ष 2002 से 2018 तक उपयोग ही नहीं किया जा रहा था.
जिसके चलते आर्थिक तंगहाली के कारण शिक्षा से पूरी तरह वंचित रहने वाले बच्चों को इस केंद्र पोषित योजना का लाभ नहीं मिल रहा था, जबकि केंद्र सरकार द्वारा देश में सभी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के तहत प्रत्येक जनपद को कम से कम 40 बच्चों के स्कूली खर्चे के लिए सालाना 10 लाख रुपए की धनराशि अतिरिक्त स्पॉन्सर के तौर जारी होती हैं.
शिक्षा विभाग की लचर कार्यशैली व इच्छाशक्ति की कमी के चलते केंद्र द्वारा मुहैया होने वाली धनराशि इस्तेमाल न होने के चलते हर साल लेप्स हो जाती थी. 2018 में इस मामले में खुलासा होने के बाद बाल आयोग ने पिछले 1 साल से इस पर कार्य करना शुरू किया और आज सैकड़ों बच्चों को इसका योजना का लाभ मिल रहा है.
उत्तराखंड बाल आयोग ने किया मामले का खुलासा
उत्तराखंड बाल आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने इस पूरे मामले का खुलासा किया. उनकी मानें तो सड़क पर भिक्षा मांगने व बाल मजदूरी के साथ गरीबी की तंगहाली में जीने वाले बच्चों के शिक्षा स्पॉन्सर राशि के संबंध में जब राज्य के सभी जिलों से 2018 में रिपोर्ट तलब की, तो पता चला कि इस राशि को शिक्षा विभाग इस्तेमाल ही नहीं करता है, जिसके कारण केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली यह प्रायोजित राशि हर वर्ष लैप्स हो जाती है.