देहरादून:उत्तराखंड में इन दिनों UKSSSSC पेपर लीक मामला, विधानसभा बैक डोर भर्ती मामला, सचिवालय दल रक्षक भर्ती अनियमिमता मामले को लेकर बवाल मचा हुआ है. भर्ती में हुई इन अनिमितताओं के कारण उत्तराखंड सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों की सुर्खियों में है. वहीं, राज्य में सरकारी नौकरियों में हुई धांधली को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी हल्ला मचा हुआ है. जहां विपक्ष इन सब मामलों पर आक्रामक हैं, वहीं राज्य सरकार इसे लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है. मगर ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में इस तरह की धांधली या घोटाले की खबर पहली बार सामने आई है, इससे पहले भी कई विभागों में भी इस तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं.
ये विभाग हैं चर्चाओं में: मौजूदा समय में फॉरेस्ट भर्ती, सचिवालय भर्ती, विधानसभा भर्ती, दरोगा भर्ती के साथ साथ सहकारिता पर भी सवाल उठने लगे हैं. चर्चा सबसे पहले UKSSSC पेपर लीक मामले से शुरू हुई. जिसमें हाकम सिंह का नाम आने और उसकी गिरफ्तारी के बाद ये मामला पॉलिटिकल हो गया. इस मामले में जैसे-जैसे सफलता हाथ लगी वैसे ही सफेदपोशों से इसके तार जुड़ने लगे. मामले में विपक्ष आक्रामक हुआ और सीबीआई जांच की मांग उठने लगी. ये मामला अभी चल ही रहा था कि विधानसभा बैक डोर से हुई भर्तियों के मामले में धामी सरकार घिर गई. इसके बाद प्रदेश में एक के बाद भर्ती अनियमितता मामले सामने आए. जिस पर आज भी धामी सरकार बैकफुट पर है.
विधानसभा भर्ती मामले में जिस तरह से रुख सरकार अपना रही है, उसके बाद अभी तक कोई एक्शन किसी पर होता दिखाई नहीं दे रहा है. अब लोगों के जहन में भी ये बात आने लगी है कि जिस तरह से पूर्व में हुए झोलझाल का हल्ला कुछ दिन चलने के बाद बंद हो गया, वैसे ही इन मामलों में भी होगा.
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उत्तराखंड में घोटालों और फर्जीवाड़े का इतिहास: लंबे आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 में राज्य गठित किया गया. राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में कोई सजा नहीं हुई. साल 2002-03 में इंस्पेक्टर भर्ती घोटाला भी काफी चर्चाओं में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. हालांकि, इस पूरे मामले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई. लेकिन, कोई भी अधिकारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा.
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प्रदेश में भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैंचा बीज प्रकरण सामने आया जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में रहा. इस मामले में कई स्तर की जांच तो हुई. लेकिन, जांच रिपोर्ट के परिणाम सामने ही नहीं आए. साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में चर्चाओं में स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन का मामला सामने आया. इस गड़बड़ी के मामले में पूर्व सीएम और मौजूदा सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पावर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया.
साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया. घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में केदारनाथ में आपदा आई थी, जिसके पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे. साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में एनएच-74 घोटाला चर्चाओं में आया. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस फाइल हुए.
यही नहीं, कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सजा नहीं हुई. मामला के लीपापोती के लिए दो आईएएस अधिकारियों को कुछ समय के लिए निलंबित जरूर किया गया था. लेकिन, कुछ समय बाद ही दोनों अधिकारी बहाल कर दिए गए.