देहरादूनःउत्तराखंड में एक तरफ चुनावी मौसम के बीच जनता जनादेश देकर अब परिणामों का इंतजार कर रही है. वहीं, दूनवासियों का मेट्रो को लेकर लंबे समय से चला आ रहा इंतजार अब भी बरकरार है. करीब 8 महीने पहले राज्य सरकार ने जिस नियो मेट्रो की मंजूरी दी थी, जिसका प्रस्ताव राज्य सरकार ने केंद्र को भेज दिया है. अब सरकार से लेकर जनता की निगाहें केंद्र की मंजूरी पर है. हालांकि, इस इंतजार के फिलहाल खत्म होने की उम्मीद कम ही नजर आ रही है.
उत्तराखंड में मेट्रो चलने का जो सपना जनता ने साल 2016 में देखा था, उसको लेकर धरातल पर 2022 तक भी कुछ नहीं हो पाया है. करीब 6 सालों में मेट्रो के नाम पर उत्तराखंड में केवल मेट्रो कॉर्पोरेशन का गठन किया गया और यहां एमडी से लेकर दूसरे कर्मचारियों की नियुक्ति भी कर दी गई. इतना ही नहीं कई बार इसको लेकर विदेश दौरे भी हो चुके हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार 5 सालों तक यह भी तय नहीं कर पाई कि आखिरकार उत्तराखंड में ट्रांसपोर्ट के किस सिस्टम को स्थापित करना है. राज्य में मेट्रो के नाम पर अलग-अलग विकल्प पर चिंतन हुए और अब 8 महीने पहले नियो मेट्रो को चलाने की मंजूरी दी गई.
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राजनीतिक दृष्टिकोण से मेट्रो का सपनाःखास बात ये है कि करीब 6 महीने बाद अब भारत सरकार को भी इसका प्रस्ताव भेज दिया गया है और अब केंद्र के पाले में इस मामले को लेकर गेंद है. अब इसको राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो राज्य में चुनाव चल रहे हैं और 2022 में किसकी सरकार आएगी इसका इंतजार किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट को लेकर राजनीतिक जानकार कहते हैं कि आने वाली सरकार का भी काफी अहम रोल होगा. प्रदेश में यदि कांग्रेस सरकार आती है तो इस प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकेगा. इस पर कुछ संदेह नजर आता है.
उधर बीजेपी सरकार आने पर भी फिलहाल इस प्रोजेक्ट को लेकर तेजी से काम होने की संभावना कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि, आने वाले करीब 6 महीने सरकार बनाने और राजनीतिक घटनाक्रम पर ही केंद्रित रहेंगे. सब कुछ अनुकूल रहा तो इस प्रोजेक्ट पर केंद्र की मंजूरी के बाद काम होने की उम्मीद भी है. ऐसे में राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो मामला लंबा खींचेगा.
कभी मेट्रो, कभी लाइट मेट्रो तो कभी रोपवेःबता दें कि सरकार बड़े बजट के इस प्रोजेक्ट में खर्च होने के कारण बार-बार कभी मेट्रो, कभी लाइट मेट्रो, कभी रोपवे के विकल्प पर बदलाव करती रही है. अब नियो मेट्रो के विकल्प को फाइनल किया गया है. क्योंकि इसमें काफी कम बजट लगता है, लेकिन इसके बावजूद भी पहले चरण में देहरादून और दूसरे चरण में देहरादून से ऋषिकेश को जोड़ने के इस प्रोजेक्ट पर भी करीब 1800 करोड़ रुपए का खर्च आने की संभावना है. जबकि राज्य सरकार को भी इस प्रोजेक्ट में करीब 40 से 50% की हिस्सेदारी करनी है. ऐसे में इतनी बड़ी मात्रा में बजट की व्यवस्था करना भी राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है.
नियो मेट्रो का ये रहेगा ट्रैकःउधर, खबर ये भी है कि इस प्रोजेक्ट में कुछ आंशिक बदलाव भी किए गए हैं. जिससे इसका खर्च कम हो सके और प्रोजेक्ट में आने वाली दिक्कतों से भी रूबरू ना होना पड़े. इसके तहत अब आईएसबीटी से जाखन तक के इस ट्रैक को कम किया गया है और फिलहाल गांधी पार्क तक ही इस रूट को रखा जाएगा. वैसे देहरादून एकमात्र शहर नहीं है, जहां पर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जा रहा है. देहरादून जैसे छोटे शहरों के लिए नियो मेट्रो को मुफीद माना जा रहा है और इसलिए देशभर के दूसरे ऐसे ही छोटे शहरों के लिए इसी टेक्नॉलॉजी की डिमांड भी की गई है.