देहरादून:पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी आवास का बकाया किराया बाजार दर पर 6 माह के भीतर जमा करने के हाई कोर्ट के आदेश को लेकर सियासी गलियारों में हलचल है. हाई कोर्ट के इस फैसले की जद में आए पांचों पूर्व मुख्यमंत्रियों को बचाने के लिए माथा पच्ची शुरू हो चुकी है.
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हालांकि उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों की आवसीय सुविधा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने सरकारी आवास की कोई सुविधा नहीं ली थी. हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद उत्तराखंड के 5 पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, बीसी खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी, विजय बहुगुणा और दिवंगत एनडी तिवारी को 6 महीने भीतर सरकारी आवासों का बकाया किराया देना होगा.
कोर्ट के इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा मुश्किल बीजेपी नेताओं के लिए है. क्योंकि पांच में से चार पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी के ही हैं. हालांकि सबसे बड़ी रकम सवा एक करोड़ रुपए कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एनडी तिवारी के ऊपर खर्च हुई है. उनके बेटे रोहित शेखर तिवारी के निधन के बाद राज्य संपत्ति विभाग एनडी तिवारी की बकाया रकम को सरकारी बट्टे खाते में डालने की सोच रहा है. जिसे डेड मनी माना जायेगा. अन्य बाकी नेताओं पर कितना बकाया है वो भी आपको बताते हैं.
पूर्व मुख्यमंत्रीयों के सरकारी आवास की बकाया राशि
नाम | राशि |
एनडी तिवारी | 1,12,98182 ₹ |
भगत सिंह कोश्यारी | 47,57758 ₹ |
भुवन चंद खंडूड़ी | 4695776 ₹ |
रमेश पोखरियाल निशंक | 4095560 ₹ |
विजय बहुगुणा | 37,50638 ₹ |
बता दें कि राज्य संपत्ति विभाग ने अबतक केवल पूर्व मुख्यमंत्रियो के सरकारी आवास पर हुए खर्च का ही आंकलन किया है. मंत्रियों पर वाहन, सुरक्षा सहित अन्य खर्चों का अभी विभाग के पास कोई ब्यौरा नहीं है. राज्य संपति अधिकारी बंशीधर तिवारी ने बताया कि इससे पहले भी कैबिनेट के माध्यम से कोर्ट को ये राशि माफ करने के लिए निवेदन किया गया था. लेकिन कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया था. सरकार इस पर फिर से कैबिनेट में चर्चा करने की तैयारी कर रही है.
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हाई कोर्ट का ये फैसला सरकार और बीजेपी संगठन के गले नहीं उतर रहा है. यहीं कारण है कि सरकार हाई कोर्ट के इस फैसले का हल खोजने में लगी हुई है. हालांकि सरकार के पास सबसे पहला विकल्प कोर्ट ही है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का इस मामले पर कहना है कि नियमों का पालन तो जरुर होना चाहिए, लेकिन इसके पीछे सभी पहलुओं को देखा जाना जरुरी है. अपनी बात को कोर्ट में रखने का विकल्प अभी खुला है. गौर हो कि जब इस बारे में कोर्ट ने सरकारी सुविधा ले रहे पूर्व सीएम से पूछा था तो उन्होंने कहा था कि सरकारी सुविधा उनके द्वारा मांगी नहीं गई तो इसकी वसूली उन से क्यों की जाए?
हाई कोर्ट के इस फैसले को विपक्ष के चश्मे से देखें तो कांग्रेस सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती है. क्योंकि कांग्रेस सरकार के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पहले ही सरकारी सुविधाओं को नमस्ते कर दिया था. जिसके कारण उन पर इस आदेश का कोई खास असर नहीं होना है. इसके अलावा एनडी तिवारी और उसने बेटे रोहित के निधन के बाद ये वसूली मुश्किल दिख रही है. बचे अन्य चार पूर्व मुख्यमंत्री चारों बीजेपी के बड़े नेता हैं. जिन ये वसूली की जानी है.
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यहीं कारण है कि कांग्रेस खुलकर मैदान में आ गई है. कांग्रेस प्रवक्ता गरीम दसौनी ने हाई कोर्ट के फैसले का का स्वागत करते हुए कहा कि प्रदेश लगातार कर्जे में डूबता जा रहा है. कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए भी सरकार के पास पैसा नहीं है. ऐसे में ये पैसा अधिक से अधिक रेट पर सभी पूर्व सीएम से वसूला जाना चाहिए क्योंकि यह पैसा जनता की गाढ़ी कमाई का है.