देहरादूनःउत्तराखंड में लोगों के रहस्यमयी गुमशुदगी का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. एनसीआरबी (National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट का कहना है कि उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में से रहस्यमयी गुमशुदगी के मामले में सबसे खराब स्थिति में है. ऐसा नहीं है कि पुलिस इस मामले पर कोई प्रयास नहीं कर रही है. लेकिन पुलिस के प्रयासों के बावजूद भी कोई सफलता नहीं मिल पा रही है. आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड के सात हजार से ज्यादा लोग लापता हैं. हैरानी के बात तो ये है कि इनमें 900 से ज्यादा तो छोटे बच्चे हैं.
उत्तराखंड में 7 हजार लोगों की मिसिंग 'मिस्ट्री'. तेरह जिलों वाले छोटे से उत्तराखंड में 7 हजार से ज्यादा लोगों की रहस्यमयी गुमशुदगी हैरान करने वाली है. इसमें भी बच्चों का 900 से ज्यादा का आंकड़ा इस मामले की गंभीरता को बढ़ा देता है. दरअसल उत्तराखंड पुलिस के 7 हजार से ज्यादा लोगों के लापता होने की शिकायतें दर्ज हैं.
मानव तस्करी भी है बड़ी वजहः इस मामले में मानव तस्करी की बेहद ज्यादा संभावनाएं व्यक्त की गई है. मानव तस्करी से जुड़े विषयों पर आवाज उठाने वाले एनजीओ के संचालक ज्ञानेंद्र कुमार लोगों के इस तरह लापता होने को बेहद गंभीर बताते हैं. ज्ञानेंद्र कहते हैं कि राज्य में बच्चों का इस तरह गायब होना बेहद गंभीर विषय है. इससे भी गंभीर बात यह है कि पुलिस बड़ी संख्या में बच्चों की बरामदगी नहीं कर पा रही है. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में मानव तस्करी की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
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बड़ी संख्या में लोगों का इस तरह लापता होना एक नहीं बल्कि वजहों की तरफ इशारा कर रहा है. हालांकि इस मामले में जो आंकड़े आए हैं, वह बेहद चौंकाने वाले हैं. आंकड़ों बताते हैं कि
- उत्तराखंड में पिछले 22 सालों में 7072 लोग लापता हुए हैं, जिनका अब तक कोई सुराग नहीं मिला.
- साल 2021 में 3451 लोग हुए लापता, इसमें 1594 पुरुष और 1857 महिलाएं शामिल हैं.
- दर्ज की गई गुमशुदगी में 987 बच्चे शामिल हैं. इसमें 450 बालक और 537 बालिकाएं मौजूद हैं.
- पुलिस ने 22 सालों में 5886 लोगों को बरामद किया है. यह आंकड़ा गुमशुदा 7072 से अतिरिक्त है.
- पड़ोसी राज्य हिमाचल की तुलना में लापता होने वाले लोगों का आंकड़ा उत्तराखंड में 2 गुना है.
परिवार छोड़कर जाना भी कारणः पुलिस भी मानती है कि लोगों का इतनी बड़ी संख्या में गायब होना बड़ी बात है. हालांकि इसके पीछे कुछ सामान्य कारण भी पुलिस को महसूस होते हैं. इसमें लोगों का खुद-ब-खुद बिना बताए परिवार को छोड़कर कहीं दूर चले जाना पुलिस बड़ी वजह मानती है. हालांकि इसके अलावा अपराधिक रूप से देखें तो किडनैपिंग और मानव तस्करी भी इसके पीछे एक वाजिब वजह है. उत्तराखंड में किडनैपिंग और मानव तस्करी के आंकड़े बताते हैं कि
- NCRB के आंकड़े जाहिर करते हैं कि किडनैपिंग और मानव तस्करी के मामले में भी उत्तराखंड का रिकॉर्ड हिमाचल से खराब है.
- किडनैपिंग को लेकर उत्तराखंड में 2019 में 967 मामले आए. 2020 में 768 तो 2021 में 819 मामले दर्ज हुए.
- हिमाचल में किडनैपिंग के मामलों को देखें तो 2019 में 455, 2020 में 343 और 2021 में 430 मामले दर्ज हुए.
- किडनैपिंग में तुलनात्मक रूप से हिमाचल से 2 गुना मामले उत्तराखंड में दर्ज हैं.
- मानव तस्करी के लिहाज से साल 2019 में 11, साल 2020 में 9 तो साल 2016 में उत्तराखंड में कुल 16 मामले पुलिस ने दर्ज किए.
- मानव तस्करी में साल 2021 में 49 लोगों की पुलिस ने गिरफ्तारी की.
- हिमाचल में 2021 में 11, 2020 में 4 और 2021 में केवल 5 मामले दर्ज किए गए.
- मानव तस्करी में भी उत्तराखंड की स्थिति हिमाचल से खराब है.
- बच्चों के लापता होने के 3 दिन बाद मामला किडनैपिंग में कन्वर्ट होता है.
- महिलाओं के मामले में 1 हफ्ते तक पता ना लगने पर किडनैपिंग के तहत पुलिस मामला दर्ज कर करती है
वैसे तो पुलिस लोगों के गुमशुदगी से जुड़े मामलों पर तय एसओपी के तहत काम करती है. लेकिन इसके बावजूद जिन लोगों की खोज खबर अब तक नहीं लग पाई है, उनके आंकड़ों को देखकर लगता है कि यह विषय केवल अपनी मर्जी से घर छोड़ने तक का ही नहीं है. बल्कि आपराधिक पृष्ठभूमि भी इसके पीछे बड़ी वजह हो सकती है. इस मामले में अपर पुलिस महानिदेशक वी मुरुगेशन कहते हैं कि पुलिस को कई बार ऐसे लोगों को लेकर क्लू नहीं मिल पाता और इसीलिए इन लोगों को पता लगाना मुश्किल हो जाता है.