देहरादूनःदेवभूमि की 'मशरूम गर्ल' किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मशरूम की खेती से शुरू हुआ दिव्या रावत का सफर आज एक बिजनेस का रूप ले चुका है. उनकी कामयाबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार ने उन्हें मशरूम का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. मशरूम से स्वरोजगार अपनाने वाली दिव्या की इस मुहिम से अब सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं. कुछ अलग करने की चाह और जज्बे से ही दून की रहने वाली दिव्या ने ये मुकाम पाया है.
महिला सशक्तिकरण में एक नाम उत्तराखंड की 'मशरूम गर्ल' यानि दिव्या रावत का भी आता हैं. दिव्या देश में ही नहीं बल्कि, दुनिया में मशरूम उत्पादन में एक अलग पहचान बनाई है. सूबे में लगातार हो रहे पलायन को रोकने में भी दिव्या की ये मुहिम खासी कारगर साबित हो रही है.
ईटीवी भारत से बातचीत में दिव्या रावत ने बताया कि पहाड़ों में खंडहर हो चुके मकानों को मशरूम उत्पादन के लिए प्रयोग में लाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया जा रहा है. उनका कहना है कि मशरूप उत्पादन की इस मुहिम से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के कई लोग जुड़ चुके हैं. जो मशरूम का उत्पादन कर 15 से 20 हजार प्रतिमाह कमा रहे हैं. उनके इस अभियान से अब उत्तराखंड के अलावा यूपी, बिहार, पंजाब, दिल्ली समेत कई राज्यों के लोग भी जुड़ रहे हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत करती 'मशरूम गर्ल' दिव्या रावत.
मूल रूप से चमोली जिले के कोट कंडारा गांव की रहने वाली दिव्या रावत सैनिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. दिव्या अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी है. उनके पिता तेज सिंह रावत रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं. दिव्या ने बताया कि उन्होंने यूपी के नोएडा से एमबीए की पढ़ाई की. जिसके बाद वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगी. इस दौरान उन्होंने कई नौकरियां बदली. लेकिन, उनका मन कुछ अलग करने का था. इसी तमन्ना को लेकर उन्होंने स्वरोजगार की ठानी.
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दिव्या का कहना है कि देहरादून के डिफेंस कॉलोनी में स्थित उत्तराखंड मशरूम विभाग में मशरूम उत्पादन के विषय में उन्होंने बेसिक ट्रेनिंग ली. उसके बाद हिमाचल के सोलन स्थित "डायरेक्टर ऑफ मशरूम रिसर्च सेंटर" में जाकर मशरूम उत्पादन की बारीकियां सीखी. जिसके बाद 2013 में उन्होंने अपने गांव जाकर मशरूम उत्पादन का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया. गांव में पलायन से खंडहर हुए घरों में उन्होंने मशरूम का उत्पादन शुरू किया और समय बीतने के साथ-साथ कई लोग उनके साथ जुड़ते चले गए.
दिव्या ने बताया कि उन्होंने देहरादून के मथुरावाला इलाके मशरूम उत्पादन लैब को बनाने का निर्णय लिया और लोन लेकर मशरूम बीज तैयार करने के लिए स्पॉन लैब बनाया. उन्होंने इस लैब में मशरूम के बीज (स्पॉन) को एक प्रोसेस से तैयार कर नए-नए तरीके से मशरूम उत्पादन शुरू किया. उन्होंने हिमालय में पाई जाने वाली कीड़ा जड़ी को भी अपनी लैब में कृत्रिम तरीके से तैयार किया. जिसके बाद उन्होंने बेल्जियम, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में जाकर एडवांस तरीके से मशरूम के जुड़ी अन्य ट्रेनिंग ली. दिव्या रावत के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति मशरूम का घरेलू उत्पाद 30 हजार की लागत से शुरू कर सकता है.
दिव्या आज देहरादून के मथुरावाला में मशरूम बीज उत्पादन से लेकर रोजगार से जुड़ने वाले लोगों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. साथ ही मशरूम की कई प्रजातियों को लेकर देश के अलग-अलग राज्य से लोग आकर दिव्या के संस्थान से ट्रेनिंग लेकर स्वरोजगार अपना रहे हैं. दिव्या रावत को उत्तराखंड सरकार की तरफ से मशरूम की ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है. जबकि, महिला सशक्तिकरण के लिए दिव्या राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है.
वर्तमान में उत्तराखंड मशरूम उत्पादन परियोजना को दिव्या रावत संचालित कर रही हैं. जिसमें मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक का प्रशिक्षण देकर दिव्या लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही है. अभी तक सैकड़ों लोगों को दिव्या ने मशरूम के माध्यम से स्वरोजगार उपलब्ध कराया है.