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तीरथ रावत ने संसद में उठाया कंडी मार्ग का मुद्दा, बताई उत्तराखंड के लोगों की परेशानी - लोकसभा में उठा कंडी मार्ग का मुद्दा

उत्तराखंड में कंडी मार्ग गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए सबसे सुगम मार्ग है. लेकिन पहले कार्बेट और फिर राजाजी नेशनल पार्क की स्थापना होने के बाद इसका बड़ा हिस्सा पार्क क्षेत्रों में आ गया और ये मार्ग आम आवाजाही के लिए बंद कर दिए गए. जिसका मुद्दा आज सदन में उठा.

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सांसद तीरथ रावत

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Published : Nov 29, 2019, 7:55 PM IST

Updated : Nov 29, 2019, 11:04 PM IST

नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को लोकसभा के शीतकालीन सत्र में कंडी मार्ग का मुद्दा उठाया. सांसद रावत ने केंद्रीय सड़क एंव परिवहन मंत्री को सदन में बताया कि कंडी मार्ग नहीं बनने से उत्तराखंड के लोगों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है. एक कमिश्नरी से दूसरी कमिश्नरी जाने के लिए यूपी से होकर जाना पड़ता है.

तीरथ रावत ने संसद में उठाया कंडी मार्ग का मुद्दा.

सांसद रावत ने सदन में कहा कि उत्तराखंड को बने हुए डेढ दशक हो चुके हैं. लेकिन आज भी उत्तराखंड के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने के लिए यूपी से होकर गुजरना पड़ता है. हरिद्वार से कोटद्वार और वहां से कंडी मार्ग से होते हुए सीधे रामनगर जाया जा सकता है. ये सड़क अंग्रेजों के समय में चलती थी. लेकिन बाद में वन मंत्रालय ने जो कानून बनाया था उसके कारण कंडी मार्ग को बंद कर दिया गया था.

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सांसद रावत ने सदन को बताया कि इस रोड के बंद होने की वजह से हरिद्वार से रामनगर जाने के लिए उन्हें यूपी के बिजनौर, धामपुर और नगीना से होते हुए दूसरी कमिश्नरी नैनीताल को जाना पड़ता है. इसके लिए दूसरे प्रदेश यानि यूपी के दायरे से होते हुए करीब 100 से 150 किमी की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है. इतना ही नहीं उन्हें अपनी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली रामनगर विधानसभा के लिए भी यूपी से ही होकर जाना पड़ता है.

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कंडी मार्ग क्या है?

लालढांग के जरिये हरिद्वार और पौड़ी के रास्ते कुमाऊं तक जाने वाले कंडी रोड को उत्तराखंड की महत्वपूर्ण सड़क माना जाता है. लंबे समय से इस सड़क के निर्माण की मांग उठती रही है. उत्तराखंड में कंडी मार्ग गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए सबसे सुगम मार्ग है. यूपी से होकर गुजरने वाला वर्तमान प्रचलित मार्ग नजीबाबाद-रामनगर की अपेक्षा कंडी मार्ग 85 किलोमीटर कम है. लेकिन पहले कार्बेट और फिर राजाजी नेशनल पार्क की स्थापना होने के बाद इसका बड़ा हिस्सा पार्क क्षेत्रों में आ गया और ये मार्ग आम आवाजाही के लिए बंद कर दिए गए थे. दशकों से इस मार्ग को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए खोलने की मांग उठती रही है. कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक आंदोलन भी चले, लेकिन वाइल्ड लाइफ एक्ट और फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के सख्त प्रावधान इसके आड़े आ गए.

Last Updated : Nov 29, 2019, 11:04 PM IST

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