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जीना इसी का नाम है: रमिंद्री के 'बगिया' से निकले एक से बढ़कर एक 'पौधे', कई बेसहारा को दिया सहारा

रमिंद्री मंद्रवाल से मदर्स डे के मौके पर ईटीवी भारत ने की खास बातचीत. रमिंद्री ने साझा किये जीवन से जुड़े कई अहम पल.

रमिंद्री मंद्रवाल से खास बातचीत.

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Published : May 12, 2019, 5:47 AM IST

Updated : May 12, 2019, 1:20 PM IST

देहरादून: 'मां' जिसे धरती पर ईश्वर का रूप माना गया है. Mothers Day के इस खास मौके पर हम आपकी मुलाकात एक ऐसी मां से कराने जा रहे हैं, जिन्होंने इस बात को सार्थक किया है. ये एक ऐसी मां हैं, जिन्होंने शादी नहीं की, बावजूद देश और विदेशों के लोगों ने इन्हें मां का दर्जा दिया है.

रमिंद्री मंद्रवाल से खास बातचीत.

जीवनदायिनी मां से भी ऊपर का दर्जा पालन पोषण करने वाली मां को मिलता है. उत्तराखंड महिला आयोग की पूर्व सचिव रमिंद्री मंद्रवाल का नाम भी ऐसी ही मां में शुमार है. रमिंद्री पिछले 25 सालों से अनाथ बच्चों के उत्थान के लिए काम कर रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में रमिंद्री मंद्रवाल ने बताया की जब वो 10वीं में थीं तभी से उन्होंने बेसहारा बच्चों का सहारा बनने की ठान ली थी. रमिंद्री मंद्रवाल मानती हैं कि यदि किसी भी मासूम को जरूरत के समय सहारा दिया जाए तो उसकी जिंदगी सवारी जा सकती है. यही कारण है कि आज देश के साथ ही विश्वभर में उन्हें 2000 से ज्यादा लोग मां कहकर पुकारते हैं. रमिंद्री भी अपने इन सभी बच्चों पर खूब प्यार लुटाती हैं.

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ये सभी 2000 बच्चे बेसाहरा और अनाथ नहीं थे. बल्कि इनमें कई ऐसे युवा भी शामिल हैं, जिनका अपना घर-परिवार भी है, लेकिन रमिंद्री के साथ उनका इतना ज्यादा लगाव है कि वो उन्हें मां कहकर पुकारते हैं. रमिंद्री बताती हैं कि इसकी शुरुआत उसी समय से हो गई थी जब वो झुग्गी-झोपड़ी में पढ़ाती थीं, उनके स्टूडेंट्स उनको दीदी कहकर बुलाते थे. आगे चलकर उनके साथ अच्छी बॉन्डिग के चलते उन्हें मां कहकर पुकारने लगे. उन्होंने बताया कि हर किसी का उनसे इतना लगाव है कि हर नई उपलब्धी को पाने के बाद वो रमिंद्री को फोन करना नहीं भूलते. इतना ही नहीं किसी तरह कि मुश्किल घड़ी में वो उनसे सुझाव भी लेते हैं.

दरअसल, रमिंद्री ने अपने घर को ही अनाथ आश्रम बना लिया है. साल 2007 में देहरादून के बद्रीपुर के पास उन्होंने ‘अपना घर’ आश्रम शुरू किया, जिसमें वो सैकड़ों बच्चियों और युवतियों को सहारा दे चुकी हैं. 'अपना घर' में सरकार और अन्य संस्थाओं के जरिये भेजे गए बच्चों और युवा लड़कियों को भी रखा जाता है. देश के कोने-कोने के बच्चे आज रमिंद्र के 'अपना घर' में रहते हैं. रमिंद्री 13 लड़कियों की अबतक शादी करवा चुकी हैं. इसके अलावा फिलहाल 'अपना घर' में 22 लड़कियां रह रही हैं. रमिंद्री ने बताया कि पाकिस्तान की बच्चियां भी उनसे जुड़ी हुईं हैं. रमिंद्री बताती हैं कि सभी बच्चे उनके साथ बातों को शेयर करते हैं. यादों को साझा करते हुए वो कहती हैं कि उनके एक बच्चे ने मलेशिया में सेटेल होते ही उन्हें कॉल किया था, जो उनके अपनत्व के भाव को दर्शाता है. इससे उन्हें काफी खुशी मिलती है.

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मूल रूप से उत्तरकाशी निवासी रमिंद्री मंद्रवाल बताती हैं कि जिन्दगी में कभी भी उन्होंने शादी के बंधन में बंधने की नहीं सोची. इसका प्रमुख कारण यह है कि बचपन से ही उनका आध्यात्म की तरफ झुकाव रहा. ऐसे में वो बच्चपन से ही वो लड्डू गोपाल जी को अपना बेटा मानती आईं. इसी भाव के चलते उन्होंने कभी शादी करने की नहीं सोची. वो बताती हैं कि आज वो खुद को काफी खुशनसीब मानती हैं कि उन्होंने कभी शादी नहीं की और आज विश्वभर में उनके कई ऐसे बच्चे हैं. रमिंद्री ने मासूम बच्चों को याद करते हुए कहा कि वह किसी भी मनुष्य के जीवन में शिक्षा को सबसे ज्यादा जरूरी मानती हैं. यही कारण है कि जो बेसहारा अनाथ बच्चे उनकी जिंदगी में आए उन्हें उन्होंने शिक्षित किया और आज वह बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं और एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं.

Last Updated : May 12, 2019, 1:20 PM IST

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