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लॉकडाउन संकटकाल में एक फैसले ने 20 हजार बंगाली ज्वेलरी कारीगरों की बदली तकदीर

उत्तराखंड में ज्वेलरी कारीगरी से जुड़े हजारों पश्चिम बंगाल के कामगारों ने अपने गृह राज्य न लौटकर बड़ा उदाहरण पेश किया है. आज लॉकडाउन तीन के आखिरी दौर में ये कारीगर अपने उस फैसले को सही ठहराते हैं.

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Published : May 14, 2020, 6:09 PM IST

Updated : May 14, 2020, 8:29 PM IST

देहरादून: कोरोना काल में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कामकाज बंद होने के चलते रोज़ी रोटी के संकट में लाखों कामगार प्रवासी लोग अपने-अपने गृह राज्यों में लौटने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. लेकिन दूसरी तरफ उत्तराखंड में ज्वेलरी कारीगरी से जुड़े हजारों पश्चिम बंगाल के कामगारों ने अपने गृह राज्य न लौटकर बड़ा उदाहरण पेश किया है. आज लॉकडाउन तीन के आखिरी दौर में ये कारीगर अपने उस फैसले को सही ठहरा रहे हैं.

एक फैसले ने 20 हजार बंगाली ज्वेलरी कारीगरों की बदली तकदीर

हम बात कर रहे हैं स्वर्ण शिल्पी समिति के अंतर्गत आने वाले लगभग 20 हजार से अधिक पश्चिम बंगाल के कारीगरों की. ये कारीगर उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर ज्वेलरी की कारीगरी का कार्य करते हैं. लॉकडाउन के पहले चरण से ही इनका कामकाज पूरी तरह बंद हो गया था. बावजूद इसके, उत्तराखंड सर्राफा मंडल ने सभी कारीगरों की अहमियत को समझते हुए उन्हें सहारा दिया और अपने घर जाने से रोक दिया. आज इसका नतीजा ये है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में सर्राफ़ा बाजार खुलने के बाद एक बार फिर से हजारों ज्वेलरी कारीगर अपने कामकाज में जुट गए हैं.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में एक कारीगर गौतम सरकार ने बताया कि लॉकडाउन के पहले चरण में उनके जैसे हजारों बंगाली कारीगरों ने कामकाज बंद होने के चलते उत्तराखंड से अपने घर लौटने का फैसला कर लिया था. लेकिन संकट की इस घड़ी में उत्तराखंड सर्राफा मंडल द्वारा उनको हर तरह का सहयोग दिया गया. आज सर्राफा बाजार खुलने से उन्हें काम मिलने लगा है.

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उधर, देहरादून सर्राफा मंडल के पदाधिकारी सुनील मेसोन के मुताबिक, लॉकडाउन के पहले चरण में ही सर्राफा मंडल ने हजारों पश्चिम बंगाल प्रवासी कामगारों की अहमियत को समझते हुए उन्हें सहारा दिया था. उसी का नतीजा यह है कि आज बाज़ार खुलने के बाद हजारों स्वर्ण शिल्पी कारीगर फिर कामकाज मिलने से अपने रोजगार से जुड़ गए हैं.

Last Updated : May 14, 2020, 8:29 PM IST

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