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छात्रों के लिए मोबाइल फोन एडिक्शन बेहद खतरनाक, जानें क्या कहते हैं मनोचिकित्सक - युवाओं में सोशल मीडिया की लत

कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के कारण छात्र अपना अधिक से अधिक समय मोबाइल पर बिता रहे हैं. इसके अलावा भी युवा सोशल मीडिया, इंटरनेट गेम्स खेलते हुये भी फोन और कम्प्यूटर पर ही समय बिता रहे हैं, जिसके कारण उन्हें इलेक्ट्रानिक उपकरणों की लत लग गई है.

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फोन एडिक्शन बच्चों और युवा के लिए है खतरनाक

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Published : Aug 20, 2020, 10:24 PM IST

Updated : Aug 22, 2020, 3:24 PM IST

देहरादून:वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन के कारण सभी की जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरोना के कारण आज लोग घरों में कैद हैं, सभी स्कूल कॉलेज बंद हैं. ऐसे में बच्चों की शिक्षा बाधित न हो, इसके लिए केंद्र सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया है ताकि छात्र घर पर ही शिक्षा ग्रहण कर सकें. ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से जहां फायदा हुआ है तो वहीं, इसके कुछ नुकसान भी निकलकर सामने आये हैं.

दरअसल, अधिक समय फोन के सामने बिताने के बाद बच्चों और युवाओं को फोन की लत लग गई है. छात्र घंटों अपना समय फोन पर बिता रहे हैं, जिसके कई नुकसान भी हैं.

ऑनलाइन पढ़ाई करते बच्चे.

लॉकडाउन के दौरान बच्चों को शिक्षा देने का विकल्प न होने के चलते ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया गया. मगर वास्तविक स्थिति यह है कि लॉकडाउन से पहले भी बच्चे और युवा मोबाइल फोन की लत से ग्रसित थे. वहीं, जब से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू की गई है तब से ये लत और बढ़ गई है. हो ये रहा है कि इस आदत से छात्रों की आंखें कमजोर हो रही हैं, जबकि इससे भविष्य में मानसिक तौर पर भी कई परेशानियां सामने आ सकती हैं.

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मनोचिकित्सक मेजर नंद किशोर बताते हैं कि देश में ई-क्लासेस शुरू होने से पहले भी बच्चे अपना ज्यादा समय मोबाइल फोन पर बिता रहे थे. ई-क्लास शुरू होने के बाद ये समय और ज्यादा बढ़ गया है. लिहाजा, स्क्रीन डिपेंडेंसी से न सिर्फ आंखों पर असर पड़ रहा है बल्कि आने वाले समय में एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, दिमागी थकावट, एंजायटी आदि बीमारियां भी बच्चों और युवाओं में देखने को मिल सकती हैं.

युवाओं के लिए मोबाइल फोन एडिक्शन है खतरनाक

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मनोचिकित्सक ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मोबाइल, इंटरनेट, स्क्रीन डिपेंडेंसी जैसी बीमारी धीरे-धीरे स्थापित हो रही थीं, जो कोरोना काल में उभरकर सामने आ रही हैं. ऐसे में बच्चों को इस लत से निकालने की जरूरत है. इसके लिए सबसे पहले पेरेंट्स को पहल करनी होगी कि वह खुद स्क्रीन डिपेंडेंसी से बचें.

घंटों कंप्यूटर पर पढ़ाई करते हैं बच्चे.

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वहीं, अभिभावकों का भी मानना है कि इन दिनों मोबाइल के जरिए ही बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. अगर भविष्य में भी ई-क्लासेस का ही दौर जारी रहता तो ये बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए ठीक नहीं है क्योंकि, मोबाइल के लत से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा, जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ेगा.

मोबाइल फोन एडिक्शन है खतरनाक.

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अभिभावक संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार किसी को भी 3 घंटे से अधिक मोबाइल के संपर्क में नहीं रहना चाहिए. मगर मौजूदा समय में बच्चे पढ़ाई के लिए 4 घंटे से अधिक समय मोबाइल फोन पर बिता रहे हैं. इसके साथ ही इससे अतिरिक्त टाइम भी वे इंटरनेट आदि के लिए फोन का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने चिंता जताई कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो बच्चे खुद ही गलत दिशा में चले जाएंगे.

डिजिटल एडिक्शन को समझें-

  • लगातार फोन, कंप्यूटर या अन्य गैजेट्स का इस्तेमाल करते रहना.
  • एक बार प्रयोग के बाद फिर आपके रुकने में समस्या आए और फिर आप मोबाइल उठा लें.
  • नुकसान का पता होने के बाद भी मोबाइल या स्क्रीन न छोड़ पाना.
इस तरह पढ़ाई से भविष्य में हो सकती हैं बड़ी परेशानियां.

सावधानी

  • 30 मिनट से ज्यादा न हो स्क्रीन एक्सपोजर.
  • एक बार में 30 मिनट से अधिक स्क्रीन पर न रहें.
  • अगर ज्यादा देर तक रहना है, तो हर 30 मिनट बाद 10 बार पलकें झपकाएं.
  • 10 बार सिर को लेफ्ट-राइट और अप-डाउन करें, कलाइयों को क्लॉक और एंटी क्लॉक वाइज घुमाएं.
ऑनलाइन क्लासेस के कारण बढ़ा कंम्यूटर का इस्तेमाल.

फोन के ज्यादा इस्तेमाल के दुष्परिणाम-

  • रीढ़ की हड्डी पर असर

लगातार फोन का उपयोग करने पर कंधे और गर्दन झुके रहते हैं. झुकी गर्दन की वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने लगती है.

  • फेफड़ों की क्षमता पर पड़ता है दुष्प्रभाव

झुकी गर्दन की वजह से गहरी सांस लेने में समस्या होती है. इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है.

  • टेक्स्ट नेक

मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखनेवाले लोगों को गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है. इसे ‘टेक्स्ट नेक’ कहा जाता है. यह समस्या लगातार टेक्स्ट मैसेज भेजने वालों और वेब ब्राउजिंग करने वालों में ज्यादा पाई जाती है.

  • नींद की कमी

2 घंटे तक चेहरे पर मोबाइल की रोशनी पड़ने से 22% तक मेलाटोनिन कम हो जाता है. इसकी कमी से नींद आने में मुश्किल होती है. एक सर्वे में 12% लोगों ने कहा कि स्मार्टफोन के ज्यादा उपयोग से उनके निजी संबंधों पर भी असर पड़ा है.

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कोरोना महामारी के इस दौर में स्मार्टफोन पर हमारी निर्भरता जरूर बढ़ गई है. बच्चों को शिक्षा, जानकारी, देश-दुनिया की खबरें बच्चों को यहीं से मिलती हैं, मगर इसका ये मतलब नहीं हैं कि बच्चों को इसके ही भरोसे ही छोड़ा जाये. अभिभावकों को इसके दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए जरूरी एहतियात बरतने की जरूरत है, जिससे आने वाले समय में परेशानियों से बचा जा सके.

Last Updated : Aug 22, 2020, 3:24 PM IST

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