देहरादून: उत्तराखंड राज्य में कई हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मौजूद हैं, जहां से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है. एशिया के सबसे बड़े डैम में शुमार टिहरी डैम उत्तराखंड राज्य में ही स्थित है. टिहरी डैम से मीथेन गैस निकलने का दावा वैज्ञानिक कई बार कर चुके है, लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है कि डैम से कितनी मात्रा ने मीथेन गैस रिलीज हो रही है. लेकिन अब डैम से निकलने वाले मीथेन गैस की असल जानकारी प्राप्त हो सकेगी. क्योंकि वाडिया इंस्टीट्यूट ने ट्रेस गैस एनालाइजर (Trace Gas Analyzer) मशीन खरीद ली है, जो टिहरी डैम से निकलने वाली मीथेन गैस की मात्रा को बताएगी.
राजधानी देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिक डॉ. समीर का कहना है कि टिहरी डैम से भारी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. डैम से निकलने वाली मीथने गैस एक ग्रीन हाउस गैस है, जिस वजह से टिहरी डैम और आसपास का तापमान हमेशा सामान्य से 2°C ज्यादा रहता है. वैज्ञानिक डॉ. समीर ने बताया कि उन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के सटीक अध्ययन के लिए करीब एक करोड़ रुपये कीमत की एक मशीन खरीदी है, जिसका नाम ट्रेस गैस एनालाइजर (Trace Gas Analyzer) है. इस मशीन को ग्रीन हाउस गैस एनालाइजर (Green House Gas Analyzer) भी कहते हैं.
टिहरी डैम से निकलने वाली मीथेन गैस खतरनाक. पढ़ें- उत्तराखंड: ग्रेड पे को लेकर पुलिसकर्मियों के परिजन मुखर, प्रदर्शन कर जताया विरोध
उन्होंने बताया कि इस उपकरण के माध्यम से टिहरी डैम समेत अन्य डैम से निकलने वाले मीथेन गैस का अध्ययन किया जाएगा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस डैम से कितनी मात्रा में मीथेन गैस निकल रही है. इस उपकरण की कीमत करीब एक करोड़ रुपये बतायी जा रही है. ऐसा ही एक उपकरण देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी खरीदा है.
कितनी खतरनाक मीथेन: वैज्ञानिक डॉ. समीर ने बताया कि मीथेन गैस एक ग्रीन हाउस गैस है. अगर मीथेन गैस अगर किसी वजह से वातावरण में चली जाए तो वह कार्बन डाई ऑक्साइड से करीब 20 से 60 गुना अधिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है. यानी मिथेन गैस में कार्बन डाइऑक्साइड से 60 गुना ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग के लिए पोटेंशियल है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में नेचुरल गैस से करीब 1500 गुना अधिक मीथेन गैस हाइड्रेंट के रूप में मौजूद है.
डैम में कहां से आती है मीथेन:वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर के तिवारी ने बताया कि अगर किसी भी कार्बनिक पदार्थों के अपघटन (Organic matter decomposition) की वजह से मीथेन गैस निकलती है. ऐसे में जब किसी क्षेत्र में बाढ़ या आपदा जैसी स्थिति होती है तो पानी आपने साथ भारी मात्रा में बायोमास अपने साथ लेकर के आता है, जो डैम में डंप हो जाता है. कुछ महीनों या सालों बाद वह बायोमास डीकंपोज (decompose) होना शुरू हो जाता है, जिससे मीथेन गैस निकलने लगती है. डैम से मीथेन गैस छोटे-छोटे बुलबुले के रूप में बाहर निकलती है और वातावरण में चला जाती है, उन्होंने बताया कि जितना बड़ा डैम होगा उतनी ज्यादा मीथेन गैस निकलेगी.
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डैम के क्षेत्र में बादल फटने की घटना पर शोध जारी: ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण मीथेन गैस है, जिससे सामान्य बादल बनता है. बादल फटने की घटना का मुख्य कारण हो सकता है, जिस पर शोध चल रहा है. सामान्य दिनों में बादल फटने की घटना भी इसी का ही असर है.
डॉ. समीर ने बताया कि जब डैम से ज्यादा मात्रा में मीथेन गैस निकलती है, जिससे आस-पास का तापमान भी बढ़ेगा, क्योंकि मीथेन गैस सोलर रेडिएशन को ऑब्जर्व करती है और वहां के तापमान को बढ़ाती है. जब उस क्षेत्र का तापमान बढ़ता है, तो वो बादल को आकर्षित करते हैं, जिसकी वजह से भारी बारिश या बादल फटने की घटनाएं होती हैं. डॉ. समीर ने बताया कि इसपर अभी शोध किया जा रहा है, ताकि भारी से भारी बारिश और बादल फटने की घटना में डैम के रोल का पता किया जा सके.
उत्तराखंड में मुख्य रूप से 12 नदियां मौजूद हैं, जो प्रदेश के 11 जिलों से होकर मैदानी क्षेत्रों की ओर जाती हैं. इन प्रमुख नदियों पर छोटे और बड़े लगभग 32 से ज्यादा बांध और विद्युत परियोजनाएं बनी हुई हैं, जिसमे टिहरी डैम भी शामिल है. टिहरी बांध दुनिया के पांचवें नंबर का सबसे गहरा और मानव निर्मित बांध है, जो 2400 मेगावाट बिजली बनाता है. दुनियाभर में जितने भी मानव निर्मित बांध हैं, उन बांधों से बहुत ज्यादा में मात्रा मीथेन गैस निकल रही है.
इन बांधों में से निकलने वाले मीथेन गैस को रोकना हमेशा से ही एक बड़ा सवाल है, क्योकि ये गैस ना सिर्फ हानिकारक है बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है. इसी तरह टिहरी बांध के आसपास के तापमान और टिहरी बांध के तापमान में 2 डिग्री तक का हमेशा फर्क रहता है.