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कोरोना इफेक्ट: उत्तराखंड में बिना प्रैक्टिकल डॉक्टर कैसे बनेंगे मेडिकल के छात्र ?

कोरोना महामारी की वजह से सभी छात्रों की पढ़ाई बाधित हुई. वहीं, छात्रों के लिए वैकल्पिक तौर पर ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई है, लेकिन मेडिकल छात्रों के सामने प्रैक्टिकल की समस्या आ रही है. ऐसे में भविष्य में डॉक्टर बनने वाले छात्रों को अपने भविष्य की चिंता सता रही है.

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कोरोना इफेक्ट

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Published : Jul 11, 2020, 2:43 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 8:57 PM IST

देहरादून:अस्पतालों में कोरोना वायरस से जहां चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी दिन-रात लड़ाई लड़ रहे हैं तो वहीं, भविष्य में डॉक्टर बनने वाले मेडिकल छात्र भी इस वायरस को लेकर कम चिंतित नहीं है. पिछले 4 महीनों में चिकित्सा शिक्षा कोरोना की वजह से इस कदर प्रभावित हुआ है कि मेडिकल छात्र की पढ़ाई सिर्फ बंद कमरों में थ्योरी तक ही सिमट कर रह गई है. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

बिना प्रैक्टिकल कैसे डॉक्टर बनेंगे मेडिकल के छात्र ?

देशभर में डॉक्टरों की भारी कमी

देश मे चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी किसी से छिपी हुई नहीं है. एक आंकड़े के मुताबिक, देश में 900 मरीजों पर एक डॉक्टर ही उपलब्ध है. हालांकि, सही रूप से सेवाएं दे रहे चिकित्सकों को अनुपातिक रूप में देखें तो हालात और भी खराब है. यह अनुपात करीब 1600 मरीज पर एक डॉक्टर होगा. अब अंदाजा लगाइए देश में मरीजों की क्या हालत होगी.

ऑनलाइन के जरिए पढ़ाई

बहरहाल, कोरोना काल में डॉक्टर्स की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ गई है. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी देश की तरह ही चिकित्सकों की संख्या अनुपातिक रूप से बेहद कम है, लेकिन चिंता अब भविष्य के उन डॉक्टर को लेकर भी है, जो कोरोना काल में अपनी पढ़ाई से दूर हो गए हैं. दरअसल, मेडिकल एजुकेशन में भी ऑनलाइन क्लासेज के जरिए छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. मेडिकल कॉलेज छात्रों की थ्योरी को लेकर दो सिलेबस कंप्लीट करने की कोशिश में जुटा है, लेकिन परेशानी उन्हें प्रैक्टिकल्स को लेकर है, जो मेडिकल फील्ड में सबसे जरूरी माने जाते हैं.

प्रैक्टिकल की समस्या से जुझ रहे छात्र

आपको बता दें कि कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते पहले ही छात्रों को हॉस्टल से उनके घर भेज दिया गया है. करीब 4 महीने से छात्र ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहे हैं. जबकि, प्रैक्टिकल पर फिलहाल कोई आदेश नहीं मिला हैं. जिससे फिलहाल प्रैक्टिकल करना मुश्किल लग रहा है. एक तरफ छात्रों का दूरदराज जिलों या राज्यों से कॉलेज आना बेहद मुश्किल है. ऊपर से अस्पताल में जाकर प्रैक्टिकल करना और इंटर्नशिप करना संक्रमण के लिहाज से बेहद खतरनाक है. हालांकि, दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना कहते हैं कि कॉलेज की तरफ से बच्चों के सिलेबस को पूरा करवाने की कोशिश हो रही है. बाकी प्रैक्टिकल्स के लिए आदेश आने पर ही कदम उठाए जाएंगे.

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नेटवर्क प्रॉब्लम और ऑनलाइन क्लास की समस्या

मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए नेटवर्क प्रॉब्लम और ऑनलाइन क्लास में तमाम बातों को समझना काफी मुश्किल भरा है, लेकिन यदि थ्योरिटिकल सिलेबस को कवर कर भी लिया जाता है तो प्रैक्टिकल में छात्रों को परेशानी आना तय है. ईटीवी भारत मेडिकल की पढ़ाई कर रही ऐसी ही एक छात्रा से ऑनलाइन बात की और उससे पढ़ाई में आ रही तमाम दिक्कतों के बारे में जाना. मे़िकल छात्रा का कहना था कि हमें ऑनलाइन थ्योरी तो पढ़ाई जा रही है, लेकिन प्रैक्टिकल्स को लेकर अभी कुछ नहीं बताया गया है. साथ ही ऑनलाइन क्लास में हम किसी पिक्चर को जूम इन नहीं कर सकते है और नहीं समझने के लिए ज्यादा देर तक नहीं देख सकते हैं. जिससे हमें उसका स्क्रीन शॉट लेना पड़ता है. साथ ही नेटवर्क की भी समस्या रहती है.

उत्तराखंड में मेडिकल की सीटें

उत्तराखंड में मेडिकल की कुल करीब 650 सीटें हैं. इसमें 150 सीटें निजी कॉलेज एसजीआरआर, 150 सीटें हिमालयन कॉलेज, 100 सीटें श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, 100 सीटें हल्द्वानी मेडिकल और 150 सीटें दून मेडिकल कॉलेज की हैं. इसी तरह 100-100 सीटें बीडीएस और करीब 1000 सीटें नर्सिंग की हैं. वैसे आपको बता दें कि कोरोना काल के दौरान बड़ी संख्या में चिकित्सकों की भर्ती की गई है और करीब 700 चिकित्सक भर्ती किए जा रहे हैं. जिसके बाद राज्य में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के सभी पद भर जाने की बात कही जा रही है, लेकिन हकीकत यह है कि चिकित्सकों के ढांचे के रूप में मौजूदा जनसंख्या के लिहाज से अभी बेहद ज्यादा संख्या में डॉक्टर की राज्य को जरूरत है.

डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी

कई सालों पहले प्रदेश में जरूरत को देखते हुए 2400 डॉक्टरों का सरकार द्वारा ढांचा स्वीकृत हुआ था, लेकिन वर्तमान में राज्य में केवल 1700 डॉक्टर ही हैं. वहीं, समय के साथ साथ बढ़ती आबादी को देखते हुए प्रदेश में और भी अधिक डॉक्टरों की दरकार है. इसी तरह प्रदेश में 3000 नर्सिंग स्टाफ का ढांचा स्वीकृत है, जिसमें से अब भी 2000 पद खाली पड़े हैं. जबकि, मौजूदा मानकों के लिहाज से देखें तो प्रदेश में 5000 नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है यानी अब भी करीब 4000 नर्सिंग स्टाफ की जरूरत राज्य को है. इस आंकड़े को जानने की इसलिए जरूरत है क्योंकि एक तरफ पहले ही चिकित्सक और नर्सिग स्टाफ की भारी कमी है. वहीं, दूसरी तरफ भविष्य के डॉक्टरों के भविष्य पर भी कोरोना ने संकट खड़े कर दिए हैं. मौजूदा स्थितियों को देखकर कहा जा सकता है कि इस साल मेडिकल छात्रों का समय से कोर्स को पूरा कर पाना काफी मुश्किल है और एमसीआई की तरफ से छात्रों को सेमेस्टर में कुछ समय दिया जा सकता है.

Last Updated : Jul 11, 2020, 8:57 PM IST

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