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'मैंने परिवार से कहा शायद जिंदा ना लौटूं', काबुल से देहरादून लौटीं सविता ने बताया कभी न भूलने वाला सफर

अफगानिस्तान के काबुल में फंसीं सविता शाही को भारतीय सेना ने 17 अगस्त को सकुशल रेस्क्यू कर लिया. देहरादून निवासी सविता शाही अपने घर पहुंच चुकी हैं और भगवान का शुक्रिया अदा कर रहीं हैं.

Dehradun Latest News
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Published : Aug 19, 2021, 8:31 PM IST

Updated : Aug 20, 2021, 10:18 AM IST

देहरादून: अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद खराब होते हालात के बीच भारत अपने फंसे नागरिकों को निकालने में लगा हुआ है. काबुल में नाटो (North Atlantic Treaty Organization) और अमेरिका सेना के मेडिकल टीम के साथ पिछले 8 सालों से काम करने वाली सविता शाही दो दिन पहले ही देहरादून सही सलामत पहुंची हैं. देहरादून लौटने पर सविता शाही से ईटीवी भारत ने विशेष बातचीत की है.

अचानक हुआ कब्जा: सविता शाही ने बताया कि नाटो और अमेरिकीन सेना की मेडिकल टीम में काम करने के दौरान ऐसा कुछ आभास नहीं हुआ था कि अफगानिस्तान में सब कुछ इतना जल्दी बदल जाएगा और चारों तरफ हाहाकार मच जाएगा. 13 और 14 अगस्त को तालिबान ने अचानक काबुल पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद लोग अपना जीवन बचाने का जद्दोजहद करने लगे.

काबुल से सकुशल लौटीं सविता शाही से खास बातचीत.

एयरपोर्ट पर उड़ानें बंद: सविता शाही ने बताया कि 15 अगस्त रविवार को काबुल एयरपोर्ट पर तालिबान का पूर्ण रूप से कब्जा हो गया था, जिसकी वजह से सभी उड़ानें बंद हो गईं थी. ऐसे में 16 अगस्त की शाम अमेरिकन सेना के मिलिट्री एयरपोर्ट जो सिविल एयरपोर्ट के बेहद नजदीक ही है, वहां से मेडिकल टीम मेंबर सहित दूसरे लोगों को रेस्क्यू की तैयारी होने लगी.

वायुसेना के विमान में बैठे भारतीय.

करना पड़ा इंतजार: शाम को लगभग शाम 6 बजे के आसपास मिलिट्री एयरपोर्ट पर जैसे ही अमेरिकी और नाटो सेना के साथ काम करने वाले लोग एयरपोर्ट के करीब पहुंचे तो अचानक तालिबान लड़ाकों ने गोलाबारी शुरू कर दी. ऐसी स्थिति में सभी लोगों को एयरपोर्ट से वापस उनके कैंप लौटा दिया गया और देर रात या अगली सुबह तक इंतजार करने को कहा गया.

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इंडियन एंबेसी से किया संपर्क: सविता शाही बताती है कि बाहर स्थिति ऐसी थी कि सभी लोग अपने वतन वापसी की जुगत कर रहे थे. इसी बीच उनके कैंप के एक सदस्य जो लगातार इंडियन एंबेसी के अधिकारी के संपर्क में थाे, उन्हें जानकारी मिली की इंडियन एयरफोर्स का एयरक्राफ्ट भारतीय राजनयिकों, कर्मचारियों और उनके परिवारों के रेस्क्यू करने के लिए मिलिट्री एयरपोर्ट पर आने वाला है.

भारतीय दूतावास के अधिकारी और कर्मचारी.

राहत की सांस: जिसके बाद भारतीय दूतावास के उस अधिकारी की मदद से अमेरिकी सेना के मेडिकल कैंप से कुल 7 लोग सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर भारतीय वायुसेना के विमान में बैठ गए. सुबह लगभग 7:30 बजे भारतीय वायुसेना के विमान ने 150 लोगों को लेकर जामनगर गुजरात के लिए उड़ान भरी, जिसके बाद सभी लोगों ने राहत की सांस ली. 17 अगस्त के सुबह साढ़े सात बजे अफगानिस्तान से इंडियन एंबेसी से जुड़े कर्चारियों और अन्य लोगों को लेकर ITBP कमांडो की टीम गुजरात के गांधीनगर स्थित इंडियन एयर फोर्स एयरपोर्ट पहुंची थी. इसी इंडियन एयर फोर्स क्राफ्ट के रेस्क्यू ऑपरेशन में जिन लोगों को काबुल से लाया गया था. उनमें सविता शाही भी शामिल थीं.

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इंडियन एयरफोर्स के विमान में सीट न मिलने के बाद भी कई लोगों ने जमीन पर बैठकर सफर तय किया और वतन वापसी की. करीब 3.30 बजे अलग-अलग विमानों से काबुल से आए लोगों को दिल्ली ले जाया गया.

विदेशियों को भारतीय वायुसेना ने किया रेस्क्यू.

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बचीं सैकड़ों जान: सविता शाही कहती हैं कि पिछले 8 साल के दौरान अमेरिकी और नाटो सेना के साथ काम करने के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन, भारतीय वायुसेना ने ग्लोबल लीडर की क्षमता दिखाते हुए न सिर्फ भारतीय राजनयिकों और कर्मचारियों को रेस्क्यू किया. बल्कि, नाटो और अमेरिका सेना के साथ-साथ कई दूसरे लोगों को भी सुरक्षित बचाते हुए अपने विमानों से दोहा, कतर, दुबई और नॉर्वे तक पहुंचाया.

अफगानिस्तान में लोगों की स्थिति दयनीय: तालिबान ने अमेरिका को हराने की घोषणा करके गुरुवार को अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया, लेकिन अब उसके सामने देश की सरकार को चलाने से लेकर सशस्त्र विरोध झेलने की संभावना जैसी कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं.

अफगानिस्तान के एटीएम में नकदी समाप्त हो गई है और आयात पर निर्भर इस देश के तीन करोड़ 80 लाख लोगों के सामने खाद्य संकट पैदा हो गया है. इस बीच, अफगानिस्तान के पंजशीर घाटी में पहुंचे विपक्षी नेता नदर्न अलायंस के बैनर तले सशस्त्र विरोध करने को लेकर चर्चा कर रहे हैं.

यह स्थान नदर्न अलाइंस लड़ाकों का गढ़ है, जिन्होंने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया था. यह एकमात्र प्रांत है जो तालिबान के हाथ नहीं आया है. तालिबान ने अभी तक उस सरकार के लिए कोई योजना पेश नहीं की है, जिसे चलाने की वह इच्छा रखता है. उसने केवल इतना कहा है कि वह शरिया या इस्लामी कानून के आधार पर सरकार चलाएगा.

वहीं, तालिबान ने इसको लेकर कहा कि शरिया कानून के तहत ही अफगानिस्तान में महिलाओं को रहना होगा और उन्हें मुस्लिम कानून के तहत ही आजादी मिलेगी, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि तालिबान के राज में शरिया कानून की कैसी व्याख्या है या तालिबान की नजर में शरिया कानून क्या है. ऐसे में जानना जरूरी है कि तालिबान के शासनकाल में शरिया कानून कैसा होगा और इससे महिलाओं के हालातों पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

Last Updated : Aug 20, 2021, 10:18 AM IST

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