देहरादून: देश में जब कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचाया तो अस्पतालों में व्यवस्था की कमी साफ नजर आने लगी थी. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं था. यहां भी हॉस्पिटलों में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की कमी देखने को मिली थी. कई हॉस्पिटलों में तो कोरोना मरीजों के लिए बेड तक नहीं थे. ऐसे में कई समाजसेवी संगठन आगे आए और उन्होंने सरकार को काफी मेडिकल उपकरण दान में दिए थे, ताकि कोरोना की तीसरी लहर में मेडिकल उपकरण के अभाव में किसी को अपनी जान न गंवानी पड़े, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते ये मेडिकल उपकरण खुले में धूल फांक रहे हैं.
हालात ये है कि स्वास्थ्य विभाग कोरोना की तीसरी लहर की संभावनाओं के बीच स्वास्थ्य उपकरणों की बेकद्री करने में लगा है. करोड़ों का सामान खुले आसमान के नीचे बारिश में इस तरह छोड़ दिया गया है, जैसे मानो अब इनकी जरूरत ही नहीं है.
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स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही न केवल विभाग के अधिकारियों पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह उन दानदाताओं की भी उम्मीदें तोड़ रही है, जिन्होंने इंसानी जिंदगी को बचाने के लिए उस दौरान गंभीर प्रयास किए थे. लेकिन उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग दानदाताओं की तरफ से किए गए इस प्रयास का शायद ज्यादा महत्व नहीं दे रहा है. क्योंकि दानदाताओं की तरफ से दिए गए मेडिकल उपकरणों की उपेक्षा केंद्रीय औषधि भंडारण में दिखाई दी है.
खुले आसमान के नीचे हजारों ऑक्सीजन सिलेंडर भी हैं और तीसरी लहर के दौरान बच्चों के लिए प्रयोग में आने वाले छोटे ऑक्सीजन सिलेंडर के पैकेट्स भी. इसमें सिलेंडर के साथ मास्क और पाइप भी मौजूद हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बारिश में यहां पर दर्जनों डीप फ्रीज भी भीग रहे हैं.
हैरानी की बात यह है कि केंद्रीय औषधि भंडारण में दानदाताओं की तरफ से दिया गया सामान लाया जाता रहा और इन्हें खुले में बरसात के मौसम में स्टोर भी कर लिया गया. लेकिन न तो भंडारण के इंचार्ज की तरफ से इनकी व्यवस्था के लिए कुछ किया गया और न ही स्वास्थ्य महानिदेशालय स्तर पर इस पर ओर कोई कार्यवाही हुई.