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Medical Education Department का भगवान मालिक, 10 साल में पूरा नहीं हुआ 14 करोड़ का प्रोजेक्ट - uttarakhand news

एक लोकोक्ति है- 'बीरबल की खिचड़ी'. इसका अर्थ है- आसान काम को बहुत मुश्किल बनाना. ऐसा ही कुछ हाल उत्तराखंड के चिकित्सा शिक्षा विभाग का है. विभाग में 14 करोड़ की लागत से बनने वाले नर्सिंग हॉस्टल और प्रशासनिक भवन के निर्माण की ढिलाई देखकर शायद आज बीरबल होते तो वो भी अपनी खिचड़ी पर शर्मा जाते.

मेडिकल शिक्षा
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Published : Feb 28, 2023, 3:39 PM IST

Updated : Feb 28, 2023, 7:27 PM IST

10 साल में पूरा नहीं हुआ 14 करोड़ का प्रोजेक्ट

देहरादूनः सरकारी योजनाओं की हकीकत बताती एक तस्वीर चिकित्सा शिक्षा महकमे के हालातों को जगजाहिर कर रही है. कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत तीन मंजिला बड़े भवन को खंडहर बनता देखकर भी अनजान हैं. शासन से लेकर विभाग तक सब करोड़ों की इस योजना पर पलीता लगते देख रहे हैं, लेकिन ताज्जुब इस बात पर है कि इसके बावजूद विभाग के अधिकारी इसका भी तर्क अपने पास रखे हुए हैं. उधर स्थानीय लोग भी सरकारी सिस्टम की लापरवाही का हर्जाना भुगतना पड़ रहा है.

फाइलों में ही थक जाती हैं सरकारी योजनाएं: सरकारी योजनाएं कई बार फाइलों से निकलकर धरातल पर आते-आते धराशायी हो जाती हैं. देहरादून के नर्सिंग हॉस्टल और प्रशासनिक भवन का भी यही हाल हुआ है. हैरानी की बात है कि करीब 14 करोड़ की लागत से बनने वाले इस प्रोजेक्ट को सालों से अधर में ही छोड़ दिया गया है. इतना ही नहीं, कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत से लेकर शासन के सचिव और विभाग के अधिकारी तक सभी योजना की बदहाली पर बेपरवाह दिखाई देते हैं.

एक आपत्ति दूर करने में लग गए सालों: ऐसा इसलिए क्योंकि एक आपत्ति का समाधान निकालने में विभाग को सालों लग गए लेकिन 2013 में स्वीकृत इस योजना को 2023 तक भी पूरा करना तो दूर इसके अधूरे काम को शुरू ही नहीं किया जा सका. बहरहाल, इन हालातों के बीच भी विभाग के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है.

अब हो रही है थर्ड पार्टी जांच: राजकीय नर्सिंग कॉलेज के प्रिंसिपल राम कुमार शर्मा कहते हैं कि नियोजन विभाग की एक आपत्ति के चलते काम को रोकना पड़ा और विभाग की तरफ से अब इसके लिए थर्ड पार्टी जांच करवाई जा रही है, जिसके बाद ही काम शुरू होगा. राजकीय नर्सिंग कॉलेज के प्राचार्य का तर्क चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि एक तरफ वो नियोजन विभाग की तकनीकी आपत्ति का तर्क दे रहे हैं और दूसरी तरफ थर्ड पार्टी जांच के लिए अभी केवल फाइल आगे भेजे जाने तक ही सीमित होने के बात भी कह रहे हैं. यानी जांच कराने के लिए भी सालों तक केवल फाइलें ही चलाई जा रही हैं.

  • योजना में कब क्या हुआ
    नर्सिंग के छात्रों को हॉस्टल उपलब्ध कराने के लिए 2013 में योजना को मिली थी मंजूरी.
    साल 2015 में हॉस्टल और प्रशासनिक भवन का निर्माण काम शुरू हुआ.
    नियोजन विभाग ने भवन का निरीक्षण कर इसके निर्माण में तकनीकी खामियां पाईं.
    नियोजन विभाग ने जांच कराने का फैसला लिया.
    नियोजन विभाग की आपत्ति के बाद साल 2017 में रुक गया हॉस्टल निर्माण का काम.
    करीब 14 करोड़ की लागत से बनाया जाना था हॉस्टल और प्रशासनिक भवन.
    इसमें 6 करोड़ रुपए तक का भुगतान किया गया.
    यूपी निर्माण निगम को दिया गया था हॉस्टल बनाने का ठेका.
    करीब 3000 नर्सिंग छात्रों के लिए बनाए जाने थे हॉस्टल में कमरे.

भवन बना असामाजिक तत्वों का अड्डा: साल 2017 में काम रुकने के बाद से ही यह भवन खंडहर में तब्दील हो गया है. यहां न केवल झाड़ियां और गंदगी का अंबार लग रहा है, बल्कि असामाजिक तत्व भी लावारिस पड़े इस खंडहर का जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो ये स्थान नशा करने वालों का अड्डा बन गया है. यही नहीं, कई गलत कार्यों के लिए भी इस खंडहर का उपयोग हो रहा है. ऐसी गतिविधियों से आसपास के लोग भी परेशान हो रहे हैं.

नर्सिग हॉस्टल और प्रशासनिक भवन की केस हिस्ट्री

नशेड़ियों से परेशान हैं लोग: वहीं, इसके पास बने कुष्ठ रोगियों के भवन में रहने वाले लोग भी यहां आने वाले असामाजिक तत्वों की गुंडागर्दी से परेशान हैं. नर्सिंग कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को वाहन उपलब्ध कराने वाले संचालक जगीर सिंह कहते हैं कि यहां दिनोंदिन नशा करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, जिससे स्थानीय लोग बेहद परेशान हो गए हैं.

विभाग की कार्यशैली सवालों के घेरे में: देहरादून में नर्सिंग छात्रों के लिए बनने वाले हॉस्टल के काम के रुकने के पीछे एक तरफ जहां निर्माण में तकनीकी गड़बड़ी के बाद जांच का अब तक न होना माना जा रहा है तो वहीं निर्माण एजेंसी यूपी निर्माण निगम और ठेकेदार के बीच विवाद होने के कारण भी इस काम के आगे न बढ़ पाने की बात कही जा रही है. इस सबके बीच 2017 से काम बंद होने के बावजूद अब तक विभाग के अधिकारियों का यह कहना कि थर्ड पार्टी जांच के लिए विभाग की तरफ से चिट्ठी पत्री लिखी जा रही है, बेहद हास्यास्पद और चौंकाने वाला है. ऐसे तर्क विभाग के कार्य को लेकर सवाल खड़ा कर रहे हैं.

क्या कहते हैं डायरेक्टरः वहीं, मेडिकल एजुकेशन में डायरेक्टर डॉ आशुतोष सयाना ने बताया कि इस योजना में ₹6 करोड़ का भुगतान एजेंसी को किया जा चुका है. मामले में दो जांच चल रही हैं. एक जांच उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड (यूपीआरएनएन) और ठेकेदार के बीच के विवाद को लेकर यूपीआरएनएन अपने स्तर पर करवा रहा है, जो चिकित्सा शिक्षा विभाग से संबंधित नहीं है. दूसरी जांच चिकित्सा शिक्षा विभाग थर्ड पार्टी से करवा रहा है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही तमाम खामियों को लेकर स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. हालांकि इससे पहले नियोजन विभाग ने इसके निर्माण में तकनीकी खामियां होने की बात कहकर जांच करवाने की बात कही थी.
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ईटीवी भारत ने जब पूछा कि इतने सालों तक योजना ठप होने से इसकी लागत में भी बढ़ोतरी होगी तो निदेशक ने कहा कि अब तक उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की तरफ से इस पर कोई बात नहीं रखी गई है. जब काम शुरू होगा तब चिकित्सा शिक्षा विभाग की तरफ से डीपीआर पर ही काम कराने की बात रखी जाएगी. हालांकि, तब की स्थिति पर तभी विचार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जांच के बाद निर्माण एजेंसी को बदले जाने पर भी विचार किया जा सकता है.

Last Updated : Feb 28, 2023, 7:27 PM IST

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