लचर व्यवस्था ने अपनों पर ही ढाया सितम देहरादून: उत्तराखंड में कई योजनाएं यूं तो सिस्टम की लापरवाही का शिकार होती रही हैं, लेकिन इस बार मामला वन विभाग में कर्मचारियों की मांग से जुड़ा है. वैसे तो सहायक वन कर्मचारी संघ की कई मांगे लंबित हैं, लेकिन, एक मांग ऐसी है जिसकी गंभीरता को देखते हुए राज्य के दो मुख्यमंत्री इसे पूरा करने की घोषणा कर चुके हैं. इतना ही नहीं मौजूदा वन मंत्री भी इस पर अमल करने का आश्वासन कर्मियों को दे चुके हैं. इसके बावजूद विभाग के ही बड़े अधिकारी अपने ही कर्मचारियों की मांग पर कागजी कार्यवाही में कुछ कमजोर पैरवी करते दिखते हैं.
राज्य में वन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए जंगलों के भीतर वन कर्मी जूझते हुए नजर आते हैं. इस दौरान कई वन कर्मियों को वन्य जीवों का शिकार भी होना पड़ता है. शिकारियों के हमलों में जान भी गंवानी पड़ती है. फील्ड में वन कर्मियों की इस स्थिति पर सरकारी सिस्टम बेहद लचर दिखाई देता है. शायद यही कारण है कि अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए जान गवाने वाले वन कर्मियों के परिवारों को 15 लाख रुपए दिए जाने की घोषणा अब तक धरातल पर नहीं उतारी जा सकी है.
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स्थिति यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी वन कर्मियों की इस मांग को पूरा करने के लिए घोषणा तक कर चुके हैं. यही नहीं वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी इस पर अमलीजामा पहनाने के लिए कर्मियों को आश्वासन दिया था. घोषणा और आश्वासन के बाद भी इस पर अब तक कुछ काम नहीं हो पाया है.
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जिस विभाग में अपने कर्मचारियों की मांग को लेकर ही गंभीरता ना हो वहां योजनाओं का क्या हाल होता होगा यह तो आसानी से समझा जा सकता है. इस मामले में वन विभाग के बड़े अधिकारियों की तरफ से पैरवी भी कुछ खास नहीं दिखाई देती. बहरहाल, वन कर्मचारी अपनी विभिन्न मांगों के साथ सरकार को मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं की भी याद दिला रहे हैं. उत्तराखंड सहायक वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष स्वरूप चंद रमोला ने बताया संघ की तरफ से विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को अपनी मांगों को लेकर बात रखी गई है. जल्द ही वह उत्तराखंड के नए वन मुखिया के समक्ष भी अपनी मांगों को रखेंगे.